सम्पादकीय

बुरे दिनों की आहट

Subhi
9 Oct 2022 6:00 AM GMT
बुरे दिनों की आहट
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इस संस्था का नाम है इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउन्सिल। नाम से ही स्पष्ट है कि संस्था का मकसद है अमेरिका में भारतीय मुसलमानों की आवाज उठाना। सो, इस विडियो को पहली बार देख कर यकीन नहीं हुआ कि इस तरह का इस्लामी दंड अपने देश में कोई दे सकता है।

तवलीन सिंह: इस संस्था का नाम है इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउन्सिल। नाम से ही स्पष्ट है कि संस्था का मकसद है अमेरिका में भारतीय मुसलमानों की आवाज उठाना। सो, इस विडियो को पहली बार देख कर यकीन नहीं हुआ कि इस तरह का इस्लामी दंड अपने देश में कोई दे सकता है। यकीन तब आया जब इंडियन एक्स्प्रेस अखबार के पहले पन्ने पर इस घटना का पूरा वर्णन पढ़ा और यह भी मालूम हुआ कि पिटाई करने वाले पुलिसकर्मी थे। पिटाई करने वालों ने वर्दी नहीं पहनी थी, लेकिन पास में वर्दी पहने पुलिसवाले खड़े थे। बहुत सारे लोग युवकों की पिटाई का मजा ले रहे थे, अपने फोन पर विडियो बना और तालियां बजा कर 'भारत माता की जय' के नारे लगा रहे थे।

इस वीडियो को जब मैंने ट्वीट करके पूछा कि क्या उन पुलिसवालों को अभी तक गिरफ्तार किया गया है, तो हैरान हुई जब खूब गालियां सुनने को मिलीं मोदी के भक्तों से। इनकी पहचान यह है कि अपने नाम के साथ या तो 'गौरवान्वित हिंदू' लिखते या तिरंगा लगाते हैं। इनकी राय में जो पुलिसवालों ने किया, वह बिलकुल ठीक था, क्योंकि कानूनी कार्रवाई अगर करते तो कई साल लग सकते हैं। यानी अच्छी बात है कि कानून के रखवाले खुद कानून तोड़ने में लगे हुए हैं।

अगले दिन सुबह जब मैंने अखबारों में इस घटना के बारे में खबर ढूंढ़ने की कोशिश की तो किसी भी अखबार में इसका जिक्र तक नहीं था, न ही किसी समाचार चैनल पर इसके बारे में कुछ देखा। समझना मुश्किल है कि देश के मीडिया को इस घटना की अहमियत क्यों नहीं दिखी।

लोकतंत्र मजबूत कानून-व्यवस्था के बिना कायम नहीं रह सकता है। वे लोग, जिन्होंने संविधान की शपथ लेकर ऐसी नौकरी चुनी है, जिसमें उनका प्रथम कर्तव्य है कानून-व्यवस्था को सुरक्षित रखना, खुद कानून को तोड़ने लगते हैं, और वह भी आम लोगों के सामने, तो लोकतंत्र की नीव कमजोर हो जाती है। जिन लोगों ने पुलिसवालों की इस घिनौनी हरकत का खुल कर समर्थन किया है, उनका कहना है कि इसी तरह दंडित करना चाहिए मुसलिम युवकों को, वरना उनको काबू में नहीं लाया जा सकता है।

जिन नौ युवकों की पिटाई की थी गुजरात के खेड़ा पुलिस कर्मियों ने उन पर आरोप था कि नवरात्रि के जलसे में उन्होंने पथराव किया। ऐसा अगर किया था तो उनको गिरफ्तार करके पुलिस ले जाती थाने पूछताछ करने। पिटाई जहां हुई वहां पुलिस की गाड़ी भी दिखती है विडियो में, सो ऐसा आसानी से किया जा सकता था। इसके बदले अगर इनको बीच चौराहे पर पीटा गया, तो इसका संदेश यही जाता है कि पुलिसवाले जानते हैं कि मुसलमानों को इस तरह दंडित करते हुए देख कर आम हिंदू जनता खुश हो जाती है। युवक अगर हिंदू होते तो बात अलग होती।

चिंताजनक है यह, इसलिए कि एक बार फिर साबित होता है कि पिछले कुछ वर्षों में नफरत इतनी फैल गई है देश में कि भाईचारा तकरीबन गायब हो गया है। इस घटना के बारे में मैंने जब एक गुजराती दोस्त से बात की तो उसने बताया कि उसको वे दिन याद हैं, जब हिंदू और मुसलिम मिलकर नवरात्रि में गरबा किया करते थे।

मुसलिम युवकों को दूर रखने की बात तब से शुरू हुई है जब से 'लव जिहाद' के खिलाफ मुहिम चलाई है भारतीय जनता पार्टी के कुछ आला राजनेताओं ने, ताकि आम हिंदू मतदाता हर मुसलिम को शक की नजर से देखने लगें। गुजरात में वैसे भी 2002 वाले दंगों के बाद इतनी कड़वाहट आ गई है इन दोनों कौमों के बीच कि बिलकिस बानो के साथ जिन दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसकी तीन साल की बेटी को उसके सामने सिर फोड़ कर मारा था, उनकी रिहाई के बाद न सिर्फ इनको फूल मालाएं पहनाई गईं, उसका विडियो भी प्रसारित किया, जैसे बहुत बड़े नायक घर लौटकर आए हों।

अब दिख रहा है कि नफरत का जहर कानून के रखवालों में भी इतना फैल चुका है कि जिन पुलिसवालों ने उन मुसलिम युवकों की सरेआम पिटाई की, उनके खिलाफ अभी तक न कोई कार्यवाही हुई है और न गुजरात के किसी राजनेता ने इस घटना की निंदा की है। वे शायद भूल गए हैं कि अभी तक जिहादी सोच से दूर रहे हैं भारत के मुसलमान। बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने दुनिया की जिहादी संस्थाओं के साथ कोई रिश्ता जोड़ा है अभी तक, बावजूद इसके कि इंडोनेशिया के बाद सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं।

शायद भूल गए हैं हमारे राजनेता कि अगर बीस करोड़ मुसलमानों में से दो प्रतिशत भी जिहादी हिंसा में भाग लेने लग जाएंगे तो भारत भूल सकता है शांति और विकास के सपने। अराजकता इतनी बढ़ जाएगी कि आर्थिक मुद्दों को ताक पर रख कर हम उलझे रहेंगे सामाजिक शांति लाने में।

ऐसा एक हिंसक-दशक पहले भी देखा है हमने, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और उनकी गलत और कमजोर नीतियों के कारण अशांति और अराजकता फैल गई थी पंजाब और कश्मीर घाटी में। उस समय इस अशांति का पूरा फायदा उठाया था पाकिस्तान के जरनैलों ने और देखते देखते चिंगारियां विशाल आग में तब्दील हो गईं। ऐसी आग, जिसको बुझाने में कई दशक लग गए। कानून के रखवालों में अगर मुसलमानों का भरोसा समाप्त हो जाएगा तो बहुत बुरे दिन आने वाले हैं।

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