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- देश में शिक्षा का बुरा...
पढ़ने के लिए पलायन, इस निगाह से देखिए तो भारत का युवा जहां भी है वहां से पलायन कर रहा है. इस पलायन पर खर्च होने वाले बजट को जोड़ेंगे तो पता चलेगा कि अच्छी शिक्षा के लिए जब कोई पलायन करता है तब उस पर एक एक परिवार के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. ख़राब कालेज और यूनिवर्सिटी के कारण पढ़ने वाला यह आर्थिक बोझ हर परिवार की तरक्की रोक रहा है. एक राज्य के भीतर का नौजवान अपने गांव कस्बे से ज़िले की तरफ भाग रहा होता है. ज़िला-ज़िला भाग लेने के बाद वह अपने राज्य की राजधानी की तरफ पलायन करता है. राजधानी जाकर भी उसकी मुलाकात अच्छी इमारतों वाली घटिया यूनिवर्सिटी और घटिया कालेज से होती है. फिर वहां फंसे कुछ युवकों में से कुछ दूसरे राज्यों की राजधानी की तरफ भागते हैं. वहां से भागते-भागते दिल्ली की तरफ भागते हैं. शिक्षा के निजीकरण के कई दशक बीत जाने के बाद भी भारत में प्राइवेट के नाम पर ज्यादातर घटिया संस्थान ही खुले हैं. जो छात्र वही घटिया शिक्षा सरकारी संस्थान में कम पैसे पर हासिल करता था अब कई गुना देकर प्राइवेट में घटिया तालीम हासिल करता है. कोचिंग के लिए पलायन करता है. कालेज के लिए पलायन करता है. पलायन करता ही रह जाता है. इस बीच उसकी और उसके परिवार की पूंजी का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है लेकिन पलायन करने वाला यह तबका कभी भी रुक कर शिक्षा की नीति और घटिया कालेजों पर बात नहीं करता. अंत में एक दिन अमेरिका, लंदन, चीन, कज़ाखिस्तान, मनीला की तरफ भागने लग जाते हैं. ग्यारह लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं. यह तस्वीर है हमारे नौजवानों की पॉलिटिकल क्वालिटी की.