सम्पादकीय

देश में शिक्षा का बुरा हाल, छात्र बर्बाद; कर्ज से अभिभावक कंगाल

Gulabi
1 Oct 2021 11:41 AM GMT
देश में शिक्षा का बुरा हाल, छात्र बर्बाद; कर्ज से अभिभावक कंगाल
x
पढ़ने के लिए पलायन, इस निगाह से देखिए तो भारत का युवा जहां भी है वहां से पलायन कर रहा है

पढ़ने के लिए पलायन, इस निगाह से देखिए तो भारत का युवा जहां भी है वहां से पलायन कर रहा है. इस पलायन पर खर्च होने वाले बजट को जोड़ेंगे तो पता चलेगा कि अच्छी शिक्षा के लिए जब कोई पलायन करता है तब उस पर एक एक परिवार के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. ख़राब कालेज और यूनिवर्सिटी के कारण पढ़ने वाला यह आर्थिक बोझ हर परिवार की तरक्की रोक रहा है. एक राज्य के भीतर का नौजवान अपने गांव कस्बे से ज़िले की तरफ भाग रहा होता है. ज़िला-ज़िला भाग लेने के बाद वह अपने राज्य की राजधानी की तरफ पलायन करता है. राजधानी जाकर भी उसकी मुलाकात अच्छी इमारतों वाली घटिया यूनिवर्सिटी और घटिया कालेज से होती है. फिर वहां फंसे कुछ युवकों में से कुछ दूसरे राज्यों की राजधानी की तरफ भागते हैं. वहां से भागते-भागते दिल्ली की तरफ भागते हैं. शिक्षा के निजीकरण के कई दशक बीत जाने के बाद भी भारत में प्राइवेट के नाम पर ज्यादातर घटिया संस्थान ही खुले हैं. जो छात्र वही घटिया शिक्षा सरकारी संस्थान में कम पैसे पर हासिल करता था अब कई गुना देकर प्राइवेट में घटिया तालीम हासिल करता है. कोचिंग के लिए पलायन करता है. कालेज के लिए पलायन करता है. पलायन करता ही रह जाता है. इस बीच उसकी और उसके परिवार की पूंजी का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है लेकिन पलायन करने वाला यह तबका कभी भी रुक कर शिक्षा की नीति और घटिया कालेजों पर बात नहीं करता. अंत में एक दिन अमेरिका, लंदन, चीन, कज़ाखिस्तान, मनीला की तरफ भागने लग जाते हैं. ग्यारह लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं. यह तस्वीर है हमारे नौजवानों की पॉलिटिकल क्वालिटी की.


हर छात्र को हिसाब करना चाहिेए कि स्कूल कालेज की फीस देने के अलावा, ट्यूशन से कोचिंग और पलायन पर वह अपने जीवन में कितना खर्च करता है.कालेजों में अच्छे शिक्षक और पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था होती तो पलायन की यह नौबत ही नहीं आती. अब तो छात्रों ने उम्मीद भी छोड़ दी है इसलिए विदेशों की तरफ पलायन करने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसी 23 सितंबर के बिज़नेस स्टैंडर्ड में रिसर्च करने वाली एक संस्था की रिपोर्ट छपी है. इसके अनुमान के मुताबिक 2024 तक भारत के छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए 75 से 85 बिलियन डॉलर ख़र्च करेंगे.भारतीय रुपये में यह 6.3 लाख करोड़ होता है. 2016 में 4 लाख 40 हज़ार छात्र विदेश गए थे जो 2019 में 7 लाख 70 हज़ार हो गया. 2024 तक 18 लाख हो जाएगा.

चूंकि विदेश जाने की होड़ शुरू हो रही है तो अब विदेश जाने पर स्कालरशिप देने की होड़ शुरू हो रही है. बिल्कुल दी जानी चाहिए लेकिन यह बहाना नहीं बनना चाहिए कि राज्यों के कालेजों को ख़राब हालत में छोड़ दिया जाए. एक ट्रेंड और शुरू हो रहा है. राज्य सरकारें स्कालरशिप और एजुकेशन लोन के नाम पर कैश बांट रही हैं. सवाल है कि कालेज अगर खराब है, पढ़ाई का स्तर औसत है तब इस स्कालरशिप से क्या लाभ होने वाला है.यह राजनीति ठीक उसी तरह की है कि नौकरी नहीं देंगे लेकिन बेरोज़गारी भत्ता देंगे. एक और नई होड़ मची है एजुकेशन लोन की. सरकारी शिक्षा को कमज़ोर कर प्राइवेट शिक्षा के नाम पर छात्रों को लोन के हवाले किया जा रहा है. इस पर बात होनी चाहिए कि एजुकेशन लोन ने अमेरिका के नौजवानों को कितना खोखला कर दिया है.

अमेरिका में हर छठे वयस्क व्यक्ति पर एजुकेशन लोन है. 42 लाख वयस्कों पर चार साल की स्नातक की पढ़ाई के दौरान उस पर तीस हज़ार डॉलर यानी भारतीय रुपये में 22 लाख का कर्ज़ हो गया है. पढ़ाई के बाद लाखों छात्र लोन नहीं चुका पाते हैं और चुकाते-चुकाते लोन में जीते रहते हैं. एक तिहाई लोन कभी चुक नहीं पाता. मई 2019 में CNBC की एक रिपोर्ट में अमेरिकी छात्र का बयान है कि पढ़ाई के लिए कर्ज़ से वह इतना दब गया है कि अमेरिका की तुलना में तीसरी दुनिया में उसका जीवन स्तर कहीं ज्यादा बेहतर होता. इसी रिपोर्ट में है कि अमेरिकी छात्र कर्ज़ से भागने के लिए देश से ही भाग जाते हैं. आप जब इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो ऐसी खूब रिपोर्ट मिलेंगी.

सरकारी अस्पताल और सरकारी शिक्षा का कोई जवाब नहीं है. कम खर्चे में अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा इस देश ने पहले भी दी है और अब भी कुछ संस्थानों में दी जा रही है. सवाल है कि इसका विस्तार राज्यों के ज़िलों में मौजूद कालेजों में क्यों नहीं हो सकता है. अमेरिका में छात्रों पर कर्ज़ का जो बोझ बढ़ा है उसे उतारने की राजनीति होने लगी है. राष्ट्रपति बाइडन दस हज़ार डॉलर तक का लोन माफ करने का समर्थन करने लगे हैं. जबकि मांग थी कि 50000 डॉलर तक का लोन माफ हो. अगर दस हज़ार डॉलर तक का भी लोन माफ हुआ तो 400 बिलियन डॉलर का लोन माफ होगा. भारतीय रुपये में कोई 29 लाख करोड़ होगा. भारत का पूरा बजट ही करीब 35 लाख करोड़ का है. प्राइवेट और महंगी शिक्षा के कारण अमेरिका और उसके छात्रों का यह हाल हो गया है. क्या आप चाहेंगे कि भारत का ग़रीब छात्र अगले दस वर्षों में इस तरह के कर्ज़ में डूब जाए. लोन किस आधार पर माफ हो इसे लेकर वहां तरह-तरह से सवाल उठ रहे हैं जिसमें अभी हमारी दिलचस्पी कम है.

अमेरिका में छात्रों के लोन की माफी को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है, यह बहस एक दिन भारत में भी आएगी. वहां तो लोन के बदले कई शानदार संस्थानों में पढ़ने को मिला है, लेकिन यहां दो चार यूनिवर्सिटी को छोड़ दें तो क्या लोन के बदले ढंग के संस्थान छात्रों को मिले हैं?

सैकड़ों की संख्या में इंजीनियरिंग कालेज खुलकर बंद हो गए. इसका मतलब यह हुआ कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के नाम पर भारत का ग़रीब छात्र बुरी तरह ठगा गया और अच्छी सैलरी की नौकरी भी नहीं मिली. पढ़ाई भी अच्छी नहीं मिली. भारत का हर छात्र ठगा गया उपभोक्ता है. जिसे दाम के बदले घटिया सामान बेचा गया.

इंजीनियरिंग कालेजों के बंद होने की ख़बरों के पीछे एक कारण ख़राब गुणवत्ता भी है. यही कारण है कि भारत के ज्यादातर इंजीनियरिंग कालेजों से निकले छात्रों की गुणवत्ता को लेकर आए दिन इंडस्ट्री से टिप्पणी आती रहती है कि काबिल नहीं है. फिर चार साल जो इन्होंने फीस दी उन्हें पढ़ाई क्यों घटिया मिली, इसकी बात कोई नहीं करता है. टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट है कि 8263 करोड़ का एजुकेशन लोन नॉन परफार्मिंग एसेट NPA हो गया है. 84000 करोड़ से अधिक का एजुकेशन लोन है. ये बैंकों का डेटा है. इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए, नर्सिंग के अलावा अन्य विषयों की पढ़ाई के लिए ये लोन लिए गए हैं. इंजीनियरिंग और नर्सिंग का एनपीए बहुत ज्यादा है. मनीकंट्रोल के दिनेश उन्नीकृष्णन की पिछले साल जनवरी की रिपोर्ट है कि अब बैंक भारतीय छात्रों को एजुकेशन लोन देने में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं. बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है. पढ़ने के बाद नौकरी नहीं मिल रही है तो एजुकेशन लोन के डूब जाने का ख़तरा बढ़ गया है.

अब आते हैं बिहार पर. 12 करोड़ की आबादी वाला राज्य है. क्या यहां एक भी कालेज है जिसमें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए दिल्ली मुंबई या किसी राज्य के माता पिता सपने देखतो हों. पिछले दिनों प्राइम टाइम में आपने पटना यूनिवर्सिटी का हाल देखा था. आज छपरा की जेपी यूनिवर्सिटी का हाल बताते हैं. 2018 में जब हमने यूनिवर्सिटी सीरीज़ की थी और करीब 40 एपिसोड लगातार दिखाए थे तब जेपी यूनिवर्सिटी की खूब चर्चा की थी कि वहां सात सात साल लग जाते हैं तीन साल का बीए पूरी करने में. इसके बाद कुछ सुधार हुआ लेकिन अब सुधार की गति फिर रुक गई है.

यह चमकती हुई जय प्रकाश नारायण यूनिवर्सिटी कहलाती है. इसकी दीवारें बता रही हैं कि जेपी के नाम पर राजनीति तभी होती है जब उनके नाम पर ठगी करनी होती है. हाल ही में इस महान यूनिवर्सिटी का ज़िक्र किसी विवाद के संदर्भ में आया था. लेकिन इसकी दीवारों पर छाई काई बता रही है कि हकीकत क्या है.यूनिवर्सिटी को बाहर से देखिए. गेट तो इस तरह बनाया गया है जैसे भीतर जाने पर आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी दिखाई देगी. गेट के बाहर की सड़क, शुक्र है नहीं बनी है वर्ना मंत्री जी इस पर भी टोल लगा देते. यह कम से कम फ्री तो है. अब आप क्लास रुम में आइए. युवाओं को क्रांति के लिए ललकारने वाले जेपी के नाम पर युवाओं को बर्बाद करने की पाठशाला देखिए.जेपी कैलिफोर्निया की बर्कली यूनिवर्सिटी से पढ़ कर आए थे जहां से वशिष्ठ नारायण सिंह ने पढ़ाई की थी. क्या खुद जेपी अपने नाम पर बने इसे खंडहर को देखकर सहन कर पाते? ख़बरों के अनुसार यहां नए वाइस चांसलर जी आए. इनको आए तीन महीने के करीब हुए हैं, और उन पर 70 करोड़ के गबन का आरोप है और राज्यपाल ने इनकी वित्तीय शक्ति ज़ब्त कर ली. छात्रों का कहना है कि उस आरोप पर जांच के लिए कमेटी बनी. अब आठ महीने बीत गए. राज्यपाल या तो नया वीसी दें या रिपोर्ट के अनुसार कार्रवाई करें. क्या आप अमेरिका की कोई यूनिवर्सिटी देखना चाहेंगे जिस देश में जाने भर से विदेश यात्रा सफल हो जाती है? या जेपी यूनिवर्सिटी देखना चाहेंगे. यह यूनिवर्सिटी बताती है कि बिहार के नौजवानों की पोलिटकल क्वालिटी ज़ीरो है. वर्ना कोई भी छात्र अपनी बर्बादी बर्दाश्त नहीं करता.

इतनी बर्बादी के बाद भी बिहार में शिक्षा राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह नेताओं के लिए कितनी अच्छी बात है. उन्हें यह राहत बिहार के युवाओं ने ही तो दी है. जेपी यूनिवर्सिटी के डीन बता रहे हैं कि 2017, 2018, 2019, 2020 हर साल का सत्र लेट चल रहा है मतलब समय से परीक्षा नहीं हुई है. तालाबंदी अगर कारण है तो 2017 में एडमिशन लेने वाला छात्र अभी तक क्यों लटका हुआ है.

जेपी यूनिवर्सिटी में कुल 33 कालेज हैं. इनमें कुल 1000 शिक्षक हैं. यह संख्या काफी कम है. मुझे नहीं पता कि छपरा के लोग इस यूनिवर्सिटी को लेकर क्या बात करते हैं लेकिन पता चल रहा है कि वहां के माता पिता को भी फर्क नहीं पड़ता कि जेपी यूनिवर्सिटी में उनके बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है. इस यूनिवर्सिटी की वेबसाइट का लिंक चटकाया तो हम घबरा ही गए.

रिसर्च सेक्शन में अल्बर्ट आइंस्टीन की तस्वीर मिल गई. इस पर लिखा है कोई भी मूर्ख समझ सकता है कि बात समझने की है. कमाल का उद्धरण है. इसे जेपी यूनिवर्सिटी की साइट पर ही मिलना था. फिर लोग समझ क्यों नहीं पा रहे हैं कि यह बात समझने की है कि उनके बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है. मैं लोगों से नहीं, आइंस्टीन जी से पूछ रहा हूं.

छपरा के इलाके के युवाओं के लिए कितना बुरा है कि पास में एक ढंग की यूनिवर्सिटी नहीं है अगर वे पटना पलायन करेंगे तो वहां पटना यूनिवर्सिटी की हालत खस्ता है. फिर दिल्ली आएंगे तो परिवार पर लाखों रुपये का आर्थिक बोझ पड़ेगा. नहीं आएंगे तो कितने पीछे चले जाएंगे पता नहीं. इसके बाद भी जे पी यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर लिखा है कि जेपी यूनिवर्सिटी छपरा ने बिहार के पिछड़े इलाके में छात्रों को क्वालिटी एजुकेशन देने में सफलता प्राप्त कर ली है. विद्या कसम. आप भी देख लीजिए.

इसी महीने विवाद हो गया कि जेपी यूनिवर्सिटी से जेपी को ही राजनीति शास्त्र के कोर्स से हटा दिया गया. दीनदयाल उपाध्याय को शामिल कर लिया तब मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री बयान देने लगे. बिल्कुल जेपी यूनिवर्सिटी में लोहिया और जेपी के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए लेकिन यह भी तो देखना चाहिए कि उनके नाम पर बनी यूनिवर्सिटी पढ़ने लायक है भी या नहीं.

इस यूनिवर्सिटी से जुड़ा यह रामजैपाल कालेज है. 1971 से अस्तित्व में है. यहां पांच हज़ार छात्र पढ़ते हैं. इन पांच हज़ार छात्रों के लिए शिक्षकों की मंज़ूर पदों की संख्या 46 है. यह भी कितनी कम है. लेकिन इसमें से भी 50 फीसदी पद खाली हैं. यानी 23 शिक्षक 5000 छात्रों को पढ़ा रहे हैं. उसमें से भी कई शिक्षकों की ड्यूटी पंचायत चुनाव में लगी है. हम आपका दिल नहीं तोड़ना चाहते लेकिन कुछ तो सोचिए कि शिक्षा के नाम बिना शिक्षा के निकल रहे ये बच्चे क्या करेंगे. कालेज की इमारत को लेकर क्या ही रोना रोया जाए जब शिक्षक भी नहीं है. इनदिनों 2017 के बैच का इम्तिहान चल रहा है जिन्हें 2020 में बीए कर जाना चाहिए था. हज़ारों छात्रों के भविष्य के साथ इस तरह खिलवाड़ हो रहा है और दुनिया को भरमाया जा रहा है कि भारत विश्व गुरु बन गया है.

कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या के मामले में इंसाफ़ की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी. जैसे आज एक इंसाफ की घोषणा हुई कि मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी की नौकरी मिलेगी. एक इंसाफ और हुआ है कि मृतक परिवार को दस लाख का मुआवज़ा दिया गया है. इसकी राशि और बढ़ सकती है. अब रही बात कानून के रास्ते मिलने वाले इंसाफ की तो उसकी रिपोर्ट यह है कि छह पुलिस वाले निलंबित हुए. गिरफ्तार नहीं हुए. वे फरार हैं या लापता हैं पुलिस ही पुलिस का हाल बता सकती है. आज पीड़ित परिवार से समाजवादी पार्टी के नेता ने भी मुलाकात की और फिर परिवार की मुलाकात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी हुई. मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने कहा है कि वे मुख्यमंत्री से मिलकर संतुष्ठ है और मुख्यमंत्री ने उनकी सारी बातें मान ली हैं.
क्रेडिट बाय ndtv
Next Story