सम्पादकीय

बिगड़ती हवा

Subhi
18 Oct 2021 1:40 AM GMT
बिगड़ती हवा
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दिल्ली और आसपास के इलाकों में बढ़ता वायु प्रदूषण फिर से गंभीर चिंता का विषय बन गया है। हर साल की तरह इस बार भी हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में किसान खेतों में पराली जला रहे हैं।

दिल्ली और आसपास के इलाकों में बढ़ता वायु प्रदूषण फिर से गंभीर चिंता का विषय बन गया है। हर साल की तरह इस बार भी हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में किसान खेतों में पराली जला रहे हैं। इसका सीधा असर दिल्ली की हवा पर पड़ रहा है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले इस बार कम पराली जलाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जिस तेजी से हवा खराब हुई है, उसे देखते हुए पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत महसूस हो रही है।

दिल्ली और आसपास के इलाकों का वायु गुणवत्ता सूचकांक अभी से खराब श्रेणी में आ गया है। अगर पराली का धुआं इसी तरह आता रहा, तो कुछ ही दिनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में पहुंच जाने से कोई नहीं रोक पाएगा और राजधानी सहित आसपास के इलाकों में स्थिति वैसे ही गंभीर हो जाएगी जैसे हर साल होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आंकड़े बता रहे हैं कि इस बार राज्यों में पराली जलाने के चार सौ सात मामले दर्ज किए गए हैं और इसमें से आधे से ज्यादा यानी दो सौ उनतीस मामले अकेले पंजाब से हैं।
हालांकि प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार काफी सतर्क है। इसके लिए उसने पहले ही हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों को ऐसे उपाय करने के बारे में लिखा भी था, जिससे पराली जलाने की घटनाओं पर लगाम लगे। मगर लगता नहीं कि सरकारें इसे लेकर गंभीर हैं। पराली जलाने के मुद्दे पर अगर राज्य सरकारें थोड़ी-बहुत हरकत में आई भी हैं, तो ऐसा सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के कारण ही हुआ है।
हैरानी की बात तो यह है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य पिछले कई सालों में ऐसे ठोस कदम उठा पाने में नाकाम रहे हैं, जिससे किसानों को पराली जलाने से रोका जा सके। पराली को खेत में ही नष्ट करने के लिए डी-कंपोजर जैसे रसायन तक किसानों को मुहैया नहीं करवाए जा सके हैं। ऐसे किसान के पास पराली को जलाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता। पराली जलाने पर जुर्माना लगाना समस्या का समाधान नहीं है। बजाय इसके उन्हें वे विकल्प मुहैया करवाए जाने की जरूरत है, जिससे उन्हें पराली जलाने को मजबूर ही न होना पड़े।
दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भवन निर्माण संबंधी गतिविधियों से उड़ने वाली धूल भी हवा को खराब करने का बड़ा कारण बनती रही है। सरकारें चाहे कितने ही सख्त नियम क्यों न बना लें, उन पर अमल किसी चुनौती से कम नहीं है। निर्माण संबंधी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दिल्ली सरकार के धूल-निरोधी अभियान भी छेड़ रखा है। जांच दल निर्माण स्थलों का दौरा कर रहे हैं और धूल उड़ाने वालों के खिलाफ जुर्माना भी लगा रहे हैं। लेकिन समस्या नियमों का पालन करने में लोगों की ओर से बरती जा रही उदासीनता की है।
इसी तरह पुराने वाहन भी वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। दिल्ली में ही ऐसे वाहनों की तादाद लाखों में है। ऐसे वाहनों के पंजीकरण रद्द कर दिए जाने के बाद भी ये सड़कों पर दौड़ रहे हैं। सरकार के सामने बड़ी और व्यावहारिक दिक्कत यह है कि इतने वाहनों को जब्त कैसेकरे और कहां जमा करे। प्रदूषण से निपटने में अगर जनता ही मददगार नहीं बनेगी, तो अकेले सरकार क्या कर पाएगी? इस समस्या से निजात पाना है तो सरकार के साथ जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी और निभानी होगी।

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