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'रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि और आहत मानवता का सवाल' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए प्रोफेसर अजय पटनायक ने कहा कि यह युद्ध यूक्रेन और रूस के बीच नहीं, अपितु रूस और अमरीका के बीच लड़ा जा रहा है। वर्ष 1955 में अमरीका द्वारा सैनिक संगठन 'उत्तर अटलांटिक संगठन' (नाटो) बनाया गया था। यह कोई लोकतांत्रिक संगठन नहीं था। इसी के जवाब में सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों ने 'वार्सा संधि' का गठन किया था। वर्ष 1999 में सोवियत संघ के टूटने, जर्मनी के एकीकरण होने और 'शीत युद्ध' समाप्त होने के कारण 'वार्सा संधि' से जुड़े देशों ने महसूस किया कि अब इस संधि की जरूरत नहीं है, लेकिन 'नाटो' संगठन न केवल बना रहा, अपितु वह खुद का विस्तार भी करने लगा। इन्हीं प्रयासों के तहत उसने सोवियत संघ से अलग हुए उन तीनों राष्ट्रों को नाटो में शामिल कर लिया जो रूस की सीमा से लगे हुए थे। नाटो प्रयास करता रहा कि रूस की सीमा के अन्य निकटवर्ती राष्ट्रों को नाटो में शामिल किया जाए। कई सीमावर्ती देशों के साथ रूस का विवाद रहा है। उसी तनाव का लाभ लेते हुए नाटो ने वर्ष 2003 में जार्जिया एवं वर्ष 2004 में यूक्रेन में दखल दिया। वहां उसके पालतू संगठनों द्वारा संपन्न हो चुके चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुने हुए राष्ट्रपति को हटाने के लिए आंदोलन किए और अंततोगत्वा वे अपने कठपुतली राष्ट्रपतियों को बिठा पाने में सफल हो गए। जैसे ही इन देशों में यह परिवर्तन हुआ तो ये शासक नाटो में शामिल होने की इच्छा जाहिर करने लगे।
