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- फिर हंगामे की ओर

मानसून सत्र के पहले ही दिन संकेत मिल गए कि आने वाले दिनों में सियासत पर देश का समय और संसाधन कुछ ज्यादा खर्च होने वाला है। चर्चा संसद में प्रस्तावित होने वाले विधेयकों की नहीं, बल्कि अन्य विषयों की ज्यादा हो रही थी, तो यह लगभग परंपरा सी हो गई है। पहले ही दिन हंगामे से बहुत आशा नहीं जगती है। ऐसा कम ही होता है, जब प्रधानमंत्री को नए मंत्रियों का परिचय देने से रोका जाता है। यह व्यावहारिकता रही है, जिसे निभाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। आखिर जिन सांसदों ने नए मंत्रियों से होने वाले औपचारिक परिचय को रोका है, वे भी किसी न किसी काम से उस मंत्री से कभी न कभी संपर्क तो करेंगे या कहीं मिलेंगे? बहरहाल, अपनी सफाई में विपक्षी नेताओं ने गिना दिया कि मंत्रियों का परिचय कराने से डॉक्टर मनमोहन सिंह को भी दो बार रोका गया था। सियासत का यही दुखद पहलू है, किसी गलत परंपरा को भी हमेशा के लिए मिसाल बना लिया जाता है और उसके अनुरूप ही सियासी दल कदम उठाने लगते हैं। किसी गलत या विवादित विरोध की लकीर पीटते रहने के बजाय अच्छाई-बुराई का भेद बनाए रखने के प्रति हमारी राजनीति को ज्यादा सचेत रहना चाहिए।
