सम्पादकीय

फिर हंगामे की ओर

Triveni
20 July 2021 3:34 AM GMT
फिर हंगामे की ओर
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मानसून सत्र के पहले ही दिन संकेत मिल गए कि आने वाले दिनों में सियासत पर देश का समय और संसाधन कुछ ज्यादा खर्च होने वाला है।

मानसून सत्र के पहले ही दिन संकेत मिल गए कि आने वाले दिनों में सियासत पर देश का समय और संसाधन कुछ ज्यादा खर्च होने वाला है। चर्चा संसद में प्रस्तावित होने वाले विधेयकों की नहीं, बल्कि अन्य विषयों की ज्यादा हो रही थी, तो यह लगभग परंपरा सी हो गई है। पहले ही दिन हंगामे से बहुत आशा नहीं जगती है। ऐसा कम ही होता है, जब प्रधानमंत्री को नए मंत्रियों का परिचय देने से रोका जाता है। यह व्यावहारिकता रही है, जिसे निभाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। आखिर जिन सांसदों ने नए मंत्रियों से होने वाले औपचारिक परिचय को रोका है, वे भी किसी न किसी काम से उस मंत्री से कभी न कभी संपर्क तो करेंगे या कहीं मिलेंगे? बहरहाल, अपनी सफाई में विपक्षी नेताओं ने गिना दिया कि मंत्रियों का परिचय कराने से डॉक्टर मनमोहन सिंह को भी दो बार रोका गया था। सियासत का यही दुखद पहलू है, किसी गलत परंपरा को भी हमेशा के लिए मिसाल बना लिया जाता है और उसके अनुरूप ही सियासी दल कदम उठाने लगते हैं। किसी गलत या विवादित विरोध की लकीर पीटते रहने के बजाय अच्छाई-बुराई का भेद बनाए रखने के प्रति हमारी राजनीति को ज्यादा सचेत रहना चाहिए।

यह समग्रता में विचार का विषय है कि संसद का मानसून सत्र कैसे सबके लिए फलदायी हो सकता है। खतरा बड़ा है कि संसद राजनीति की जगह बनकर ही न रह जाए। इस जगह पर लोग अपने प्रतिनिधियों को बड़ी उम्मीद से भेजते हैं। संसद को सही ढंग से चलने देना चाहिए, बार-बार स्थगन लाने की कोशिश, बार-बार हंगामा, संसदीय गरिमा की अवहेलना क्या संसद की प्रासंगिकता को घटा नहीं रही है? महंगाई, कोरोना महामारी, टीकाकरण इत्यादि अनेक व्यापक मुद्दे हैं, जिन पर संसद में गंभीर बहस हो सकती है। हर मुद्दे को उठाने का समय मिल-जुलकर तय हो सकता है, लेकिन असमय मुद्दे उठाकर हंगामा करना किसके लिए फायदेमंद है, यह सोच लेना चाहिए। अपना देश अभी चौतरफा चुनौतियों से घिरा है, हम बेवजह सियायत की कीमत चुकाने की स्थिति में कतई नहीं हैं। पेट्रोल, डीजल की कीमतें बहुत बढ़ी हैं, लेकिन मंत्रियों के परिचय के समय ही विपक्ष द्वारा यह मुद्दा उठाना क्या अनुकरणीय है? ऐसा भी नहीं है कि आए दिन मंत्रिमंडल में फेरबदल हो रहा हो? यह दौर ऐसा है, जब हमारे प्रतिनिधियों को सावधान रहना चाहिए। संसद सत्र के समय खासतौर पर कुछ ऐसे मुद्दे उड़ाए या उठाए जाते हैं, जिनसे संसद व देश के कामकाज व चिंतन की दिशा भटकती है। ताजा मामला इजरायली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस पर खुलासे का है। सरकार की सफाई के बावजूद यदि विपक्ष को इसमें सार दिखता है, तो इस विषय पर अलग से चर्चा संभव है, इसके लिए संसदीय परंपरा के अनुरूप प्रयास करने चाहिए, लेकिन पूरे सत्र को इस मुद्दे के हवाले कर देना प्रशंसनीय नहीं है। आज के समय में आधुनिक संचार माध्यमों की मदद से जासूसी या सूचनाओं की चोरी कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, लेकिन इसे लेकर जरूरत से भटकाव कतई ठीक नहीं है। यह सत्र निर्णायक मोड़ की तरह है, जब सांसदों को न केवल स्वयं कोरोना संक्रमण से बचना है, देश को भी इस भयानक संक्रमण के चौतरफा दुष्प्रभाव से बचाने में समय-साधन से अपना पूरा योगदान देना है।


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