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- बाबा साहेब की विरासत

हर वर्ष 14 अप्रैल को देशभर में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्मदिवस जोश-ओ-खरोश के साथ मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जब हम डा. अंबेडकर की विरासत को समझने का प्रयास करें, ताकि एक शोषणविहीन समाज बनाने के उनके मिशन को समझा जा सके और आधुनिक समाज की दिशा में आगे बढ़ते हुए जाति के नाम पर हो रहे भेदभाव को तार्किक तरीके से समाप्त किए जाने हेतु काम को आगे बढ़ाया जा सके। यह इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस महादेश में तमाम राजनीतिक दल डा. अंबेडकर का गुणगान करने में लगे हुए हैं, लेकिन उनके सर्वोच्च मिशन, जन्म के आधार पर मनुष्यों के मध्य हो रहे भेदभाव को लेकर कोई सकारात्मक पहल करने से बचते रहे हैं। डा. अंबेडकर के बारे में सबसे दुखद बात है कि आमतौर पर उन्हें दलितों और कई बार तो एक खास जातीय समूह का नेता स्वीकार कर लिया जाता है। मजे की बात यह है कि यह केवल उनके विरोधियों की ओर से ही नहीं किया जाता, बल्कि समर्थकों ने भी उनके दायरे को संकुचित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक ओर तो उनके विरोधी उनके बारे में 'नकली भगवान की पूजा' जैसी लेखमाला लिखते हैं और दूसरी ओर उनके तथाकथित अनुयायी उनको अपनी जाति के भगवान के तौर पर प्रस्तुत करते हैं।
