सम्पादकीय

बाबा साहेब पुरंदरे स्मृति शेष: आज इतिहास भी अनाथ हो गया, उम्मीद है जाणता राजा का मंचन जारी रहेगा

Neha Dani
16 Nov 2021 1:52 AM GMT
बाबा साहेब पुरंदरे स्मृति शेष: आज इतिहास भी अनाथ हो गया, उम्मीद है जाणता राजा का मंचन जारी रहेगा
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ख्यात इतिहासकार बाबा साहेब पुरंदरे के बारे में पहले भी कई बार ऐसी सूचनाएं मिलीं कि वे अत्यंत गंभीर हैं या उनका निधन हो गया है। हर बार यह बात झूठ निकली। दुर्भाग्य से इस बार यह सूचना सही निकली। ऐसा लग रहा है कि मैं अनाथ हो गया हूं। छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रत्येक को स्फूर्ति देने वाली छवि को बाबा साहेब ने घर-घर तक पहुंचाने का काम किया है।

बाबा साहब कभी भी खुद को इतिहासकार नहीं कहते थे। वे कहते थे कि मैं शाहीर हूं। इतिहास को मनोरंजक तरीके से जन-जन तक पहुंचाने का काम उन्होंने किया।
इतने बड़े इतिहासकार होने के बाद भी वे बेहद विनम्र रहे। वे कभी भी किसी के लिए असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे। यहां तक कि दो-तीन साल के बच्चे तक को सम्मान देते थे। मुझे तो लग रहा है कि मैं ही नहीं, इतिहास अनाथ हो गया है। हम सभी उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे।
मेरी इच्छा है कि जिस तरह उन्होंने छत्रपति शिवाजी का इतिहास हमारे सामने प्रस्तुत किया, उसी तरह वह देवी-देवताओं के सामने भी छत्रपति का चरित्र चित्रण करें। छत्रपति शिवाजी को लेकर उनका जो भव्य, दिव्य काम है, उसे ऐसा ही सतत जारी रखें। मुझे शब्द ही नहीं सूझ रहे हैं। मैं प्रचंड आहत हूं।
आज फेसबुक पर बाबा साहेब के साथ लोग अपने-अपने फोटो डाल रहे हैं। मैंने एक भी फोटो नहीं डाला है। बाबा साहेब के साथ फोटो में आने की मेरी लायकी नहीं है। 'सह्याद्रीतील सात रत्ने' का प्रयोग मैंने उनके सामने किया। वासुदेव बलवंत फड़के का प्रयोग भी उन्होंने देखा। उन्होंने मंच पर आकर मुझे आशीर्वाद दिया था। वह मेरी जिंदगी के लिए अनमोल पल था।
वे कई बात किस्सागोई में ऐसी बातें बता जाते कि हर कोई अचंभित रह जाता-
एक बार हम खाना खा रहे थे। उन्होंने बाल गंधर्व से जुड़ी याद सुनाई। सुबोध भावे की फिल्म में भी यह दृश्य है। एक प्रसंग है। एम्बेसेडर गाड़ी में जाते समय बाल गंधर्व को एक थैली मिलती है। वह लेकर जा रहे होते हैं। उनके साथ एक व्यक्ति है, जिसका नाम फिल्म में नहीं है। उस व्यक्ति को बाल गंधर्व गाड़ी रोकने का बोलते हैं। फिर एक जगह थैली रख देते हैं। बाबा साहेब ने एक बार बताया था कि उस एम्बेसेडर में बैठा व्यक्ति मैं था। यह बात कहीं भी सामने नहीं आई है। ऐसे थे बाबा साहेब।
अब तक उनका छत्र हमारे ऊपर था। बाबा साहेब ने बहुत मेहनत कर जाणता राजा की टीम जुटाई है। बाबा साहेब के जाने से टीम को धक्का लगा होगा। पर मुझे यकीन है कि जाणता राजा के प्रयोग होते रहेंगे। उनकी टीम यह प्रयोग जारी करेगी। जाणता राजा नहीं थमना चाहिए। जाणता राजा के प्रत्येक प्रयोग में बाबा साहेब खुद दर्शक होते थे। शिवाजी मंच पर आते तो वे खुद अभिवादन करते। इस तरह उन्होंने छत्रपति के जीवन को जीया है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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