सम्पादकीय

अजान Vs हनुमान चालीसा : राजनीतिक भोंपू और प्रतिस्पर्धी शोर-शराबा हमारी सेहत और चेतना दोनों के लिए ख़तरनाक है

Rani Sahu
8 April 2022 11:16 AM GMT
अजान Vs हनुमान चालीसा : राजनीतिक भोंपू और प्रतिस्पर्धी शोर-शराबा हमारी सेहत और चेतना दोनों के लिए ख़तरनाक है
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फिल्म मेकर अशोक पंडित ने हाल ही में ट्वीट कर पूछा कि मुंबई के ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) एक्टिविस्ट कहां गायब हो गए हैं

हसन एम कमल

फिल्म मेकर अशोक पंडित ने हाल ही में ट्वीट कर पूछा कि मुंबई के ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) एक्टिविस्ट कहां गायब हो गए हैं. वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MSN) के प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray) की मुंबई की मस्जिदों को लाउडस्पीकर से अज़ान बंद करने की चेतावनी या उनके समर्थकों द्वारा मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा बजाना शुरू कर देने का जिक्र कर रहे थे. इंसान के स्वास्थ्य और लोगों के ज़हनी सुकून पर ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में कोई संदेह नहीं है. इस बारे में उन बेनसीब लोगों से पूछें जो भारत में हाई ट्रैफिक वाली सड़कों, हाईवे या रेल की पटरियों या इंडस्ट्रियल एरिया के पास रहने को मजबूर हैं.
ध्वनि प्रदूषण के निर्धारित मानदंड
ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 में आस-पास के शोर (noise level) को सीमित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जो सार्वजनिक स्थानों पर डेसिबल लेवल को रेगुलेट करने की सिफारिश करता है. हमारे आसपास होने वाले नॉइज़ लेवल को लेकर नियम स्पष्ट है: दिन के समय (सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक) औद्योगिक क्षेत्र के लिए 75 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल, वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए 65 डेसिबल दिन के समय और रात में 55 डेसिबल, आवासीय क्षेत्र के लिए 55 डेसिबल दिन में और 45 डेसिबल रात में, साइलेंस ज़ोन के लिए 50 डेसिबल दिन में और रात में 40 डेसिबल.
एक मर्ज़ की अलग-अलग दवा का सच
राज ठाकरे और अशोक पंडित दोनों एक ही मर्ज़ की दो अलग-अलग दवा पेश कर रहे हैं. ठाकरे का इरादा शोर मचाकर अज़ान की आवाज़ के कारण होने वाली अशांति को समाप्त करना है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख की चेतावनी, कार्रवाई की मांग करने के बजाय, निष्क्रियता को छुपाती है, जो कि भारत में ध्वनि प्रदूषण कानूनों के लिए आम बात है – चाहे कारण एक मस्जिद हो, राजनीतिक सांठगांठ के दम पर पुलिस के संरक्षण में ओपन-एयर पार्टी का जश्न मनाता व्यवसायी हो, आधी रात को अपने स्पीकर पर गाने बजा रहा नशे में धुत्त पड़ोसी हो, या मॉडिफाइड साइलेंसर (modified silencers) में लॉजिक ढूंढने वाला बाइकर्स हो.
सिर्फ मस्जिदों में ही सन्नाटा क्यों? हम ध्वनि प्रदूषण के सभी स्रोतों से क्यों नहीं निपटते? इसके लिए आपको आवाम की सेहत और सुकून को अपने दिमाग में रखना होगा, न कि किसी सांप्रदायिक राजनीतिक एजेंडे को. मंदिरों में लाउडस्पीकरों पर बजने वाले भजन या धार्मिक व्याख्यान अनियंत्रित शोर के लिए जाने जाते हैं. कर्नाटक में इस आशय का एक आदेश फरवरी के महीने में कम से कम पांच मंदिरों को जारी किया गया, जहां बीजेपी सत्ता में है. हालांकि, राज्य में हिंदू संगठनों की आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया.
शोर और सन्नाटे के बीच ध्वनि प्रदूषण कानून
राज ठाकरे के तर्क को देखते हुए अगर कोई मंदिरों के पास क्रिसमस कैरोल (Christmas carol) या गुरबानी (Gurbani) बजाना शुरू कर दे तो क्या होगा? डेसिबल लेवल बढ़ाने की ये सारी प्रतिस्पर्धी आवाजें कब, कहां और कैसे समाप्त होगी? जहां तक ध्वनि प्रदूषण पर कानून के समक्ष समानता का सवाल है, उस हिस्से को 2016 के बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के आदेश में और बाद में उल्लिखित ध्वनि प्रदूषण विनियमन और नियंत्रण नियम 2000 में ध्यान रखा गया था. लेकिन जो लोग अभी भी ध्वनि प्रदूषण कार्यकर्ताओं के ठिकाने के बारे में चिंतित हैं, वे सोशल मीडिया पर सिर्फ चहकने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं. ये ध्वनि प्रदूषण एक्टिविस्ट ही थे, जिन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसके कारण अदालत ने सभी धर्मों और संप्रदायों द्वारा लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था.
ध्वनि प्रदूषण कानून की अनदेखी क्यों?
2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों और अदालतों के आसपास के 100 मीटर के क्षेत्र को साइलेंस जोन घोषित किया था. हालांकि, 2017 में, नियमों में संशोधन के कारण शहर में 1,1573 साइलेंस जोन (silence zone) हटा दिए गए. यह विशेष रूप से मुंबई में गणपति पंडालों की वाहवाही लूटने के लिए किया गया था जो लाउडस्पीकर के साथ जुलूस निकालना चाहते थे.
दुर्भाग्य से संशोधन के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया. कानून को अमल में लाने की कमी की तरफ इशारा करते हुए ध्वनि प्रदूषण कार्यकर्ताओं ने कई जनहित याचिकाएं दायर की हैं. और बॉम्बे हाई कोर्ट ने विवाह स्थलों, गणपति पंडालों और ईद समारोहों में ध्वनि प्रदूषण की अनदेखी के लिए नगर पालिकाओं और पुलिस को फटकार लगाई है.
ध्वनि प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करना लोकल गवर्नमेंट जैसे नगर पालिकाओं और पुलिस की जिम्मेदारी है. लेकिन प्रदूषण फ़ैलाने वालों और राजनेताओं के बीच गठजोड़ ने अधिकारियों को भी असहाय बना दिया है. 2019 में एक हलफनामे में, एक पुलिस अधिकारी ने अदालत को बताया कि कैसे 'राजनीतिक दलों से जुड़े मंडलों (गणपति) ने लाउडस्पीकर का इस्तेमाल जारी रखा और आधी रात के बाद भी शोर के मानदंडों का उल्लंघन किया'. पुलिस अधिकारी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के डर से राजनीतिक रूप से समर्थित गणपति मंडलों के खिलाफ कार्रवाई करने में कठिनाई भी बताई.
शहरवासी जाएं तो जाएं कहां?
तो, वे बदकिस्मत शहरवासी, जो केवल अपनी दुर्बल नसों पर शोर-शराबे के बेरहम हमलों से कुछ राहत पाने के लिए तरस रहे हैं, अपने सपने को अलविदा कह सकते हैं. ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश लगाने का समाधान ठाकरे जैसे राजनेताओं द्वारा वित्त पोषित और भुगतान किए जाने वाले प्रत्येक प्रतिष्ठान से शुरू होना चाहिए, चाहे वह मस्जिद हो, पार्टी हो या पंडाल. ठाकरे जैसे लोग जो कर रहे हैं, वह विपरीत विचार वाले दो समूहों के बीच ख़राब माहौल को और ख़राब करने के लिए है. और क्यों नहीं, जब महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक है?


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