सम्पादकीय

अयोध्या: बदल रहा है धर्मनगरी का रूप-रंग

Triveni
17 March 2023 2:51 PM GMT
अयोध्या: बदल रहा है धर्मनगरी का रूप-रंग
x
अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण जोरों पर है.

अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण जोरों पर है. उम्मीद है कि अगले जनवरी में जब उसे श्रद्धालुओं के लिए खोला जायेगा, तो वहां भारी जनसमुद्र उमड़ेगा. इसके मद्देनजर धर्मनगरी को नया रूप-रंग देने के लिए उसकी सड़कों को चौड़ी करने की कवायदें चल ही रही हैं. साथ ही, आस्था के दूसरे केंद्रों को भी सजाया-संवारा जा रहा है. उद्देश्य यह है कि श्रद्धालु राममंदिर में दर्शन-पूजन के बाद अन्य आस्था-केंद्रों की ओर जायेंगे, तो व्यवस्था बनाये रखने में सहूलियत होगी. इस लिहाज से सबसे ज्यादा जोर गुप्तारघाट के सौंदर्यीकरण पर है. निर्माणाधीन राममंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरयू के इस घाट के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने अपनी लीला की समाप्ति के बाद वहीं से बैकुंठ धाम कहें, साकेत धाम, परम धाम या दिव्य धाम को प्रस्थान किया था. उसके बाद से ही इस घाट को गुप्तारघाट कहा जाने लगा. इससे पहले उसका नाम गो-प्रतारणघाट था यानी वह घाट, जहां से गायें सरयू पार करती थीं.

मान्यता है कि भगवान राम स्वर्गारोहण के लिए इस घाट पर आये, तो उनके साथ अयोध्या के कीट-पतंगे तक उनके दिव्य धाम चले गये थे, जिससे अयोध्या उजड़-सी गयी थी. बाद में उनके पुत्र कुश ने नगर और घाट को फिर आबाद किया. हालांकि महाराज विक्रमादित्य को भी इसका श्रेय दिया जाता है. वर्तमान में इस घाट पर कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें राम-जानकी मंदिर, चरण पादुका मंदिर, नरसिंह मंदिर और हनुमान मंदिर प्रमुख हैं. जो हनुमान अयोध्या में राम के सेवक और भक्त हैं, वे इस मंदिर में राजा के रूप में विराजमान हैं. प्रायः सारी ऋतुओं में प्रकृति की अठखेलियां इस घाट व उसके मंदिरों के वातावरण को मोहक बनाती रहती हैं.
उन्नीसवीं सदी तक यह घाट खासा जीर्ण-शीर्ण हो चला था, तो राजा दर्शन सिंह ने इसका नवनिर्माण करवाया था. बाद में उसके पास ही मिलिट्री मंदिर के निर्माण, कंपनी गार्डन व राजकीय उद्यान विकसित होने से इसका धर्मस्थल का स्वरूप पर्यटन स्थल में भी बदल गया. अब नवीनीकरण के प्रयासों के तहत इस घाट को अयोध्या के दूसरे वैभवशाली घाटों से जोड़ा जा रहा है. सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो श्रद्धालु, पर्यटक व तीर्थयात्री जल्दी ही गुप्तारघाट से नयाघाट तक लग्जरी क्रूज सेवा से सरयू की सैर भी कर सकेंगे. वाराणसी की तर्ज पर इस सैर में वे आठ किलोमीटर की दूरी डेढ़ घंटे में तय करेंगे. सरयू नदी पर गुप्तारघाट से नयाघाट तक नया तटबंध बनाकर उस पर छह मीटर चौड़ी सडक भी बनायी जा रही है.
इस घाट की ही तरह महाराज दशरथ के अंतिम संस्कार स्थल का भी, जिसे दशरथ समाधि स्थल कहते हैं, सौंदर्यीकरण कर बड़े धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है और वहां तक पहुंच सुगम बनाने के लिए बड़ी सड़क बनायी जा रही है. इसकी व्यवस्था भी की जा रही है कि वहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को उससे जुड़े अपने सभी सवालों के जवाब मिल सकें. अभी बहुत से श्रद्धालु पूछते हैं: महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार किस कारण अयोध्या में नहीं किया गया? वे इसको लेकर भी जिज्ञासु होते हैं कि जब उनके निधन के वक्त उनके बेटे अयोध्या में नहीं थे, तो उनका अंतिम संस्कार किसने किया. जानना दिलचस्प है कि उक्त अंतिम संस्कार स्थल पूराबाजार नामक ग्राम पंचायत के उत्तर बिल्वहरि घाट में स्थित है और ‘अयोध्या महात्म्य’ व ‘अयोध्या दर्पण’ के अनुसार अंतिम संस्कार स्थल के रूप में उसके चुनाव के पीछे भरत की यह इच्छा थी कि यह संस्कार अयोध्या के आग्नेय कोण पर सरयू के समीप स्थित ऐसी भूमि पर किया जाना चाहिए, जहां पहले किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो.
यह तो सर्वविदित ही है कि कुलगुरु वशिष्ठ ने पुत्रों की अनुपस्थिति में स्वयं ही महाराज का अंतिम संस्कार कर देने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था और दूत भेजकर भरत व शत्रुघ्न को ननिहाल से अयोध्या बुलवाया था. मुखाग्नि भरत ने ही दी थी और वनवास की समाप्ति के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे, तो वे दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने यहां आये थे. इस स्थल पर श्वेत संगमरमर से निर्मित समाधि और मंदिर स्थित हैं. अभी तक सरयू में जब भी बाढ़ आती, इनके वजूद के लिए संकट पैदा कर देती रही है. श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचने हेतु अयोध्या से तेरह-चौदह किलोमीटर की दूरी तय करने में भी नाना पापड़ बेलने पड़ते रहे हैं. लेकिन अब अयोध्या-बिल्वहरि घाट से होकर इस स्थल तक चौड़ी सड़क का निर्माण और समाधि परिसर का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है. राममंदिर खोले जाने के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि के नये मूल्यांकन के बाद इसकी सड़क को समीपवर्ती राजमार्ग से भी जोड़ा जा रहा है.

sorce: prabhatkhabar

Next Story