सम्पादकीय

जिम्मेदारी से दूर

Subhi
14 Feb 2023 4:48 AM GMT
जिम्मेदारी से दूर
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Written by जनसत्ता: इससे उपजी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक स्थितियों के कारण आज की युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है। क्या यह बात आज विशेष रूप से जानने योग्य नहीं है कि हमारा देश विश्व में सर्वाधिक युवाओं वाला देश है, तब उसकी दिशा और दशा को सही दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी किसकी है? लगता है कि हमारे टीवी चैनल यह नहीं कर रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि नई बनाई जा रही फिल्मों से लेकर अन्य कार्यक्रमों में अश्लीलता, हिंसा को बढ़ावा देने के माध्यम के रूप में वे अग्रणी क्यों बन रहे हैं।

टीवी चैनलों पर व्यक्तियों के शव, घायल व्यक्तियों के खून में डूबे हुए दृश्य, अश्लीलता को बढ़ाने देने वाले दृश्य, महिलाओं से छेड़छाड़ वाले दृश्य, पुरुषों और बच्चों के ऐसे दृश्य जिनमें बेरहमी से पिटाई की जाती है जैसे अनेक दृश्य आम हो चुके हैं। सवाल है कि क्या आपराधिक घटनाओं को उसके मूल स्वरूप में प्रदर्शित करना पूरी तरह जरूरी है? इसका कोमल मन-मस्तिष्क वाले बच्चों पर कैसा असर पड़ता होगा?

मगर इस तरह के प्रसारण से टीवी चैनल अपनी रेटिंग बढ़ाने का प्रयास करते हैं और उन्हें सिर्फ अपनी कमाई की फिक्र होती है। जबकि कोशिश यह होनी चाहिए कि टीवी चैनल दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का भी पालन करें। आजकल सोशल मीडिया पर भी कुछ वीडियो ऐसे दिख जाते हैं, जिनमें प्रस्तुत हिंसक गतिविधियों में कोई काट-छांट नहीं की जाती है। इसका महिलाओं और बच्चों पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसी खबरें बच्चों पर प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रही है। इसलिए प्रसारण मंत्रालय का इस क्षेत्र में और भी अधिक सख्ती दिखाना जरूरी है।

इस मामले में हम दूरदर्शन को एक सही दिशा में चलता नेटवर्क कह सकते हैं, जहां आपत्तिजनक दृश्यों पर हमेशा ध्यान रखा जाता है। चाहे आज हम दूरदर्शन को पुरातनपंथी लीक पर चलने वाला चैनल कह दें, पर वही आज देश का सही ढंग से प्रतिनिधित्व करता दिखाई देता है। देश की संस्कृति और कला साहित्य को दिखाने में दूरदर्शन की जितनी भूमिका है, वहां जितनी जिम्मेदारी और गंभीरता दिखाई देती है, वह अन्य निजी चैनलों में शायद ही कभी दिखता है।

इससे उपजी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक स्थितियों के कारण आज की युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है। क्या यह बात आज विशेष रूप से जानने योग्य नहीं है कि हमारा देश विश्व में सर्वाधिक युवाओं वाला देश है, तब उसकी दिशा और दशा को सही दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी किसकी है? लगता है कि हमारे टीवी चैनल यह नहीं कर रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि नई बनाई जा रही फिल्मों से लेकर अन्य कार्यक्रमों में अश्लीलता, हिंसा को बढ़ावा देने के माध्यम के रूप में वे अग्रणी क्यों बन रहे हैं।

टीवी चैनलों पर व्यक्तियों के शव, घायल व्यक्तियों के खून में डूबे हुए दृश्य, अश्लीलता को बढ़ाने देने वाले दृश्य, महिलाओं से छेड़छाड़ वाले दृश्य, पुरुषों और बच्चों के ऐसे दृश्य जिनमें बेरहमी से पिटाई की जाती है जैसे अनेक दृश्य आम हो चुके हैं। सवाल है कि क्या आपराधिक घटनाओं को उसके मूल स्वरूप में प्रदर्शित करना पूरी तरह जरूरी है? इसका कोमल मन-मस्तिष्क वाले बच्चों पर कैसा असर पड़ता होगा?

मगर इस तरह के प्रसारण से टीवी चैनल अपनी रेटिंग बढ़ाने का प्रयास करते हैं और उन्हें सिर्फ अपनी कमाई की फिक्र होती है। जबकि कोशिश यह होनी चाहिए कि टीवी चैनल दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का भी पालन करें। आजकल सोशल मीडिया पर भी कुछ वीडियो ऐसे दिख जाते हैं, जिनमें प्रस्तुत हिंसक गतिविधियों में कोई काट-छांट नहीं की जाती है। इसका महिलाओं और बच्चों पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसी खबरें बच्चों पर प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रही है। इसलिए प्रसारण मंत्रालय का इस क्षेत्र में और भी अधिक सख्ती दिखाना जरूरी है।

इस मामले में हम दूरदर्शन को एक सही दिशा में चलता नेटवर्क कह सकते हैं, जहां आपत्तिजनक दृश्यों पर हमेशा ध्यान रखा जाता है। चाहे आज हम दूरदर्शन को पुरातनपंथी लीक पर चलने वाला चैनल कह दें, पर वही आज देश का सही ढंग से प्रतिनिधित्व करता दिखाई देता है। देश की संस्कृति और कला साहित्य को दिखाने में दूरदर्शन की जितनी भूमिका है, वहां जितनी जिम्मेदारी और गंभीरता दिखाई देती है, वह अन्य निजी चैनलों में शायद ही कभी दिखता है।

देश में हर ओर नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर मिलने वाले आसानी से उपलब्ध नशे के सामान अन्य लोगों के साथ साथ युवाओं को भी नशे की लत लगा खोखला और कमजोर कर रहे हैं। देखने में यही आ रहा है कि ये नशे की आदतें ही आपराधिक प्रवृत्ति में भी कई बार वृद्धि का कारण बन रही हैं।

नशे की आदतें धीरे-धीरे नशाखोरों को महंगी नशीली चीजों की ओर धकेलती हैं, जिन्हें पाने के लिए नशे के लत में डूबे लोग चोरी-झपटमारी, घरेलू चीजों को चोरी-छिपे बेचना और अन्य अपराधों को अंजाम देते हैं। घर-परिवार के लोग सचेत रहते हुए नशाखोरी की आदत को शुरुआती दौर में ही दूर करने के प्रयास करें तो किसी भी सदस्य को नशे की लत से मुक्त रखा जा सकता है। समाज में जागरूकता लानी जरूरी हो जाती है।




क्रेडिट : jansatta.com

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