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सिएटल में मैं जब भी एयरबस टूलूज या बोइंग के कोर्स या कॉन्फ्रेंस में शामिल होता
बिक्रम वोहरा।
सिएटल (Seattle) में मैं जब भी एयरबस टूलूज या बोइंग के कोर्स या कॉन्फ्रेंस में शामिल होता था, हमसे कहा जाता था कि हादसों के कारण पर कभी कयास नहीं लगाना चाहिए. वॉशिंगटन (Washington) में नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड में आपको साफतौर पर बताया जाता है कि यदि आप विमान संबंधी हादसों के बारे में लिख रहे हैं तो तथ्यों से चीजों को स्पष्ट होने दें. हादसे का जिक्र अपनी कल्पना के आधार पर न करें. वो कहते हैं कि हादसे के परिदृश्य को तथ्य और पूर्व की घटनाओं के मिसाल से समझा जा सकता है, जिससे कि आगे उनका विश्लेषण किया जा सके. साथ ही देखा जा सके कि क्या तथ्य हालात से मेल खाते हैं. लेकिन सिर्फ इस आधार पर ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता.
आज के वक्त में हेलिकॉप्टर क्रैश (Helicopter Crash) के मामलों में तोड़फोड़ या आतंकवाद का हाथ होने का संदेह जाहिर किया जाता है, लेकिन इसकी संभावना बेहद कम है. क्योंकि ये इतनी आसानी से मुमकिन नहीं होता. ऐसे में वॉयस रिकॉर्डर या ग्राउंड कंट्रोल से बातचीत जैसे साक्ष्यों का इंतजार करना चाहिए, जिससे कि पता चल सके कि क्या हादसा किसी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से हुआ. ऐसा मुमकिन है. हेलिकॉप्टर पिछले करीब नौ साल से सर्विस और मेंटेनेंस में था और तकनीकी समस्या की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ये किसी पर आरोप लगाने की बात नहीं है. लेकिन पहले एक हेलिकॉप्टर हादसा इस वजह से भी हो चुका है क्योंकि काम के दौरान उसमें एक औजार छूट गया था. 2015 में तब ऑस्ट्रेलियन ट्रांसपोर्ट सेफ्टी ब्यूरो (एटीएसबी) ने कबूल किया था कि स्टार्ट करते वक्त बाहरी चीजों की वजह से एक हेलीकॉप्टर का रोटर ब्लेड डैमेज हो गया. वो एक औजार था जो मेंटेनेंस के दौरान अंदर छूट गया था.
खराब मौसम भी होती है क्रैश की वजह
यदि हम कयास को अलग कर दें तो हादसे की सबसे सामान्य वजह खराब मौसम ही बचती है. अहम बात ये है कि कोहरे में उड़ने योग्य मशीनें भी भ्रम की स्थिति में फंस सकती हैं. एविएशन की बात करें तो यहां आकाशीय भटकाव यानि स्पेशल डिसऑरिएंटेशन जैसी स्थिति भी होती है. इसे पायलट की अक्षमता के रूप में बताया जाता है, जिसमें वह जमीन या कुछ पॉइंट्स पर विमान की ऊंचाई, स्थिति और हवा की गति का सही तरह से अंदाजा नहीं लगा पाता है. इससे आप मुश्किल में पड़ जाते हैं.
नीलगिरी की पहाड़ियों पर धुंध और सामान्य रूप से अपेक्षाकृत कम दृश्यता भी इस तरह की स्थिति बना सकती है, जिसे मेडिकल कंडिशन में कोरिओलिस इल्यूजन कहा जाता है. जिसमें दो अर्धवृत्ताकार नहरों के मिलने वाली जगह पर विमान को मोड़ते वक्त अगर पायलट का सिर आगे या पीछे की ओर झुका हुआ है तो वह भ्रम में पड़ सकता है और विमान से अपना नियंत्रण खो सकता है. फिर गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से स्थिति और बिगड़ जाती है.
विजिबिलिटी की कमी की वजह से भ्रम की स्थिति बढ़ जाती है
अगर आपको याद हो तो कोबे ब्रायंट के साथ हुए हादसे के दौरान भी हेलिकॉप्टर खराब मौसम में फंस गया था. जांच के बाद यह निष्कर्ष निकला कि 8500 घंटे की उड़ान का अनुभव होने के बावजूद पायलट ने अपना नियंत्रण खो दिया. उस दौरान एनटीएसबी के अध्यक्ष रॉबर्ट सुमवाल्ट ने घटना के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी. उन्होंने कहा था कि पावरफुल और भ्रामक सेंसेशंस से विमान उड़ा रहा पायलट भ्रमित हो सकता है और विजुअल्स की सही तरीके से पहचान करने में असमर्थ हो सकता है. उन्होंने यह भी बताया था कि इस तरह की स्थितियों में किस तरह की ट्रेनिंग ज्यादा कारगर साबित हो सकती है.
बोर्ड के सदस्य माइकल ग्राहम ने बताया कि दुर्भाग्यवश हमने इस हादसे को देखा था. मौसम संबंधी परिस्थितियों में भी हेलिकॉप्टर ने वीएफआर (दृश्य उड़ान नियम) के तहत उड़ान भरी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश आकाशीय भटकाव के कारण विमान अनियंत्रित हो गया.
आपके पास एक क्लासिक सिचुएशन है, जिसमें आप ऊंचाई पर सीधे उड़ रहे हैं, लेकिन अचानक नीचे की ओर गिरने लगते हैं, फिर क्या होता है? इसे सीएफआईटी या घाटी क्षेत्रों में नियंत्रित उड़ान के रूप में जाना जाता है. वैसे कोई भी अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा, लेकिन क्रैश की स्थिति को देखकर लगता है कि सिस्टम में कुछ न कुछ गड़बड़ी थी, जिसके बाद विजिबिलिटी की कमी की वजह से भ्रम की स्थिति और बढ़ गई.
हेलिकॉप्टर क्रैश के चार में से तीन मामलों में इंजन फेल होने की बात सामने आती है
22 नवंबर, 1963 को पुंछ में एक हेलिकॉप्टर एलौएट III क्रैश हुआ था, जिसमें तीन जनरल और एक एयर मार्शल सवार थे. इस हादसे में आशंका जताई गई थी कि हेलिकॉप्टर बिजली के तारों से टकरा गया था, जिसकी वजह से उसके रोटर बंद हो गए. दरअसल, कोहरे, धुंध, स्मॉग, पहाड़ों, टीलों और ब्लाइंड स्पॉट की वजह से बिजली के तार अक्सर नजर नहीं आते हैं, जो हेलिकॉप्टर के पायलट के लिए नाइटमेयर साबित होते हैं.
हेलिकॉप्टर क्रैश के चार में से तीन मामलों में इंजन फेल होने की बात सामने आती है. इलेक्ट्रिकल समस्याओं की वजह से हेलिकॉप्टर में सबसे ज्यादा गड़बड़ी होती है, जिसमें इलेक्ट्रिकल शॉर्ट्स और इलेक्ट्रिकल कंपोनेंट्स में खराबी आदि शामिल हैं. इसके अलावा मेन रोटर कंट्रोल खराब होने, पहाड़ी या पेड़ से टकराने, वाइब्रेशन की वजह से कंपोनेंट फेल होने, आग लगने, उड़ान के दौरान विस्फोट होने, एटीसी से गलत निर्देश मिलने, मशीन के ढांचे में दिक्कत आने और पायलट की गलती से भी हादसे हो जाते हैं.
हवा की रफ्तार को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है
हवा की रफ्तार को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. तेज हवा भी हेलिकॉप्टर की उड़ान को काफी ज्यादा प्रभावित करती है. क्योंकि वे इसे धकेलती हैं, जिससे हेलिकॉप्टर का नियंत्रण बिगड़ जाता है. जब हम हवा के साथ या हवा के खिलाफ उड़ान भरते हैं तो इसकी रफ्तार के कारण हेलिकॉप्टर धीमा या तेज हो सकता है.
हेलिकॉप्टर से जुड़े हादसों में वीआईपी सिंड्रोम भी सामने आता है. दरअसल, वीआईपी पैसेंजर्स सुरक्षा को नजरअंदाज कर देते हैं. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने आधिकारिक सलाह को दरकिनार करते हुए एक राजनीतिक बैठक के लिए जोरहाट में टीयू 124 से उड़ान भरी थी. ईंधन खत्म होने पर हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया और धान के खेत में गिरने के कारण वे बच गए. हालांकि, चालक दल के सभी पांच सदस्यों की मौत हो गई थी. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी इस तरह के हादसे में बाल-बाल बचे थे. दरअसल, उनका हेलिकॉप्टर उड़ान भरने के तुरंत बाद बिजली के तारों से टकरा गया था. मैं एक बार फिर कहूंगा कि क्रैश को लेकर किसी भी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी और इन्हें सिर्फ पॉसिबल थ्योरीज के रूप में देखा जा सकता है. इसके अलावा कुछ और नहीं.
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