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- सत्ता की कंदराओं से...

'पतझड़ बीत गया' दरअसल अपने भीतर के तंज, व्यंग्य, कसौटियों, उपमाओं, चारित्रिक दोगलेपन, सत्ता के अहम, वहम और भंगिमाओं को तलाशता लेखन है। हिमाचल प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पृथीपाल सिंह जिन बारीकियों से उपन्यास को सत्ता की अंधी कंदराओं से खोज पाते हैं, यह उनकी लेखकीय ईमानदारी के साथ-साथ साहस की प्रशासनिक फाइल की तरह है। उपन्यास के माध्यम से रेखांकित जीवन विन्यास के कई खांचे, खूंटे और खुराफाती मंजर दिखाई देते हैं। जमीन के एक टुकड़े पर घूमती कहानी में बदरंग सत्ता की गलियों का सामना उस मां की ममता से है, जो अपने नौकरीपेशा इकलौते बेटे को ऊना की झुलसाती गर्मी से निजात दिलाना चाहती है, चाहे बदले में मंत्री की जालसाजी में पुश्तैनी भूमि चली जाए। सुभाष केवल कहानी में दंपति रत्नु व निर्मला का बेटा नहीं, बल्कि हमारा बेटा, भाई या पड़ोसी हो सकता है। स्थानांतरण की भाषा में लिखा गया उपन्यास 'एडजस्टमेंट' की कई बोलियां बोलता है।
