सम्पादकीय

ऑस्ट्रेलिया की पहल दुनिया भर के मीडिया संस्थानों-प्रकाशकों के लिए हो सकती है क्रांतिकारी साबित

Gulabi
14 Dec 2020 1:53 PM GMT
ऑस्ट्रेलिया की पहल दुनिया भर के मीडिया संस्थानों-प्रकाशकों के लिए हो सकती है क्रांतिकारी साबित
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टेक दिग्गजों और प्रकाशकों के बीच बढ़ रहा असंतुलन

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ऑस्ट्रेलिया की एक पहल दुनिया भर के मीडिया संस्थानों-प्रकाशकों के लिए बहुत क्रांतिकारी साबित हो सकती है। दरअसल ऑस्ट्रेलियाई सरकार गूगल और फेसबुक जैसे डिजिटल दिग्गजों को मीडिया संस्थानों की खबरें लगाने के एवज में भुगतान से जुड़ा कानून बनाने जा रही है। वैसे तो इन टेक दिग्गजों के साथ मीडिया कंपनियों को भुगतान के तमाम फॉर्मूले बने हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया का यह प्रस्ताव उनसे बेहतर है, जो मीडिया कंपनियों को उनकी सामग्री के बदले कहीं ज्यादा कमाई सुनिश्चित करेगा। यह हाल में फ्रांस में बने ऐसे ही कानून से अधिक कमाई प्रकाशकों की झोली में डालेगा। 'न्यूज मीडिया एंड डिजिटल प्लेटफॉर्म्स मेंडेट्री बार्गेनिंग कोड' नाम की इस विधायी पहल में कई मध्यमार्गी प्रावधान किए गए हैं। दो महीनों के भीतर इसके कानूनी स्वरूप लेने की संभावना है।


टेक दिग्गजों और प्रकाशकों के बीच बढ़ता असंतुलन

टेक दिग्गजों और प्रकाशकों के बीच बढ़ते असंतुलन का संज्ञान लेते हुए ऑस्ट्रेलियाई प्रतिस्पर्धा नियामक ने इसे दूर करने के उपायों पर जोर दिया है। सरकार ने भी इसे पेश करते हुए स्पष्ट और कड़े तेवर दिखाए। ऑस्ट्रेलिया के वित्त मंत्री जोश फ्रेडेनबर्ग ने कहा कि यह कानून डिजिटल दुनिया के तौर-तरीकों को वास्तविकता का आभास कराएगा और इसके पीछे हमारी यही मंशा है कि ऑस्ट्रेलियाई मीडिया परिदृश्य की तस्वीर निरंरतता के साथ बेहतर हो सके। उन्होंने कहा कि इस कानून से न्यूज मीडिया कंपनियों को उनकी सामग्री का उचित मूल्य मिलेगा, जिससे जनपक्ष की पत्रकारिता को मजबूती मिलेगी। हालांकि इसमें प्रकाशक से जुड़े ऑनलाइन ट्रैफिक के मूल्यांकन पर मोलभाव सहित कुछ अन्य रियायतों के साथ टेक दिग्गजों को भी राहत दी गई है।
टेक दिग्गज प्रकाशकों के साथ भुगतान के लिए करें वार्ता

इस संहिता में व्यवस्था की गई है कि टेक दिग्गज प्रत्येक प्रकाशक या प्रकाशकों के समूह के साथ उनकी खबरों या अन्य सामग्री के भुगतान के लिए भली मंशा के साथ वार्ता करें। इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को मानक पेशकश का रेट कार्ड भी जारी करना होगा। इसकी दरें आकार और श्रेणी के हिसाब से निर्धारित होंगी। इसका मुख्य मकसद छोटे प्रकाशकों के हितों से जुड़ा है कि एक क्लिक करते ही उनका सौदा संपन्न हो जाए। इससे बार-बार वार्ता या मोलभाव की जरूरत नहीं रह जाएगी और यह बाध्यकारी भी होगा। यदि वार्ता के 90 दिनों के बाद भी किसी सौदे पर सहमति नहीं बनती तब एक स्वतंत्र मध्यस्थ अंतिम प्रस्ताव देगा। कुछ देशों में इसे 'पेंडुलम आर्बिट्रेशन' भी कहते हैं, जिसमें शामिल दोनों पक्ष अपने-अपने सबसे बेहतरीन प्रस्ताव सामने रखते हैं। फिर मध्यस्थ उनमें से किसी एक पर मुहर लगाता है। यदि मध्यस्थ को दोनों में से कोई भी प्रस्ताव उचित न लगे तब वह अपनी दरें भी लागू कर सकता है। यह संहिता अनिवार्य है। इसके उल्लंघन पर ऑस्ट्रेलियाई राजस्व के दस प्रतिशत के बराबर हर्जाना या प्रत्येक उल्लंघन से हुई कमाई का तीन गुना तक आर्थिक दंड देना पड़ सकता है।

फ्रांस के मुख्य प्रकाशकों को गूगल से सालाना पांच करोड़ यूरो की कमाई होने की उम्मीद

आखिर यह पहल मौजूदा व्यवस्थाओं के मुकाबले कैसी है? ऐसी तुलना के फिलहाल दो पैमाने हैं। पहला फ्रांस में डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रकाशकों के बीच हुआ समझौता और दूसरा कई देशों में कायम वह व्यवस्था, जिसमें डिजिटल दिग्गज अपने हिसाब से प्रकाशकों के साथ अनुबंध करते हैं। जहां तक फ्रांस की बात है तो वहां हुए समझौते का संबंध कॉपीराइट वार्ताओं से है, जो यूरोपीय संघ में अगले वर्ष के अंत तक अनिवार्य रूप से लागू होनी ही हैं। वहीं पिछले महीने हुए समझौते का बहुत विस्तृत ब्योरा भी उपलब्ध नहीं है। हालांकि एक मोटे अनुमान के तौर पर फ्रांस के मुख्य प्रकाशकों को अकेले गूगल से ही कुल मिलाकर सालाना पांच करोड़ यूरो की कमाई होने की उम्मीद है।

सौदेबाजी के मामले में टेक दिग्गजों का रवैया मनमाना होता है, जिसमें कई खिलाड़ी पीछे छूट जाते हैं

फ्रांसीसी कानून के उलट ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित व्यवस्था बौद्धिक संपदा या कॉपीराइट नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा कानून के दायरे में आएगी। स्पष्ट है कि इसमें कॉपीराइट शुल्क की तुलना में कई गुना राशि मिलने की उम्मीद है। यह कम से कम फ्रांस में हुए समझौते के मुकाबले चार से पांच गुना अधिक हो सकती है। गूगल और फेसबुक तमाम देशों में प्रकाशकों के समक्ष खुद अपनी पेशकश रखते हैं। एक तो ये अनुबंध एक से तीन साल की संक्षिप्त अवधि के लिए होते हैं और दूसरा इनके माध्यम से फ्रांस या प्रस्तावित ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था की तुलना में प्रकाशकों की झोली में बहुत कम हिस्सा आता है। साथ ही सौदेबाजी के मामले में टेक दिग्गजों का रवैया भी मनमाना होता है, जिसमें कई खिलाड़ी पीछे छूट जाते हैं।

ऑस्ट्रेलियाई प्रस्ताव में वे सभी प्रकाशक और ब्रांड शामिल होंगे जो पेशेवर पत्रकारिता की श्रेणी में आते हैं

उनकी इस परिपाटी की तुलना में ऑस्ट्रेलियाई प्रस्ताव में वे सभी प्रकाशक और ब्रांड शामिल होंगे जो किसी भी पैमाने पर पेशेवर पत्रकारिता की श्रेणी में आते हैं। यही कारण है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म ऑस्ट्रेलियाई संहिता को कानूनी स्वरूप देने का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

प्लेटफॉर्म की परिभाषा में गूगल सर्च और फेसबुक न्यूजफीड को ही शामिल किया गया

हालांकि संहिता के अंतिम मसौदे को लेकर प्रकाशकों को कुछ शिकायतें भी हैं। जैसे कि संबंधित प्लेटफॉर्म की परिभाषा में फिलहाल गूगल सर्च और फेसबुक न्यूजफीड को ही शामिल किया गया है, जबकि यूट्यूब और इंस्टाग्राम को छोड़ दिया गया है।

बाजार में कम हिस्सेदारी के चलते ट्विटर को शामिल नहीं किया गया

बाजार में बेहद कम हिस्सेदारी के चलते ट्विटर को इसमें शामिल ही नहीं किया गया। वहीं डाटा शेयरिंग जरूरतों के अलावा गूगल और फेसबुक अलॉगरिद्म में पिछले 28 दिनों के नॉटिफिकेशन जैसे पहलुओं को लेकर भी प्रकाशक सशंकित हैं। इसके बावजूद समाचार मीडिया उद्योग ने इस अंतिम मसौदे का व्यापक रूप से स्वागत किया है। अब यह मामला भले ही ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा हो, पर यह डिजिटल दिग्गजों द्वारा पेशेवर रूप से तैयार की गई पत्रकारिता सामग्री के भुगतान की वैश्विक व्यवस्था का आधार बन सकता है। ऑस्ट्रेलियाई नियामक और विधि निर्माताओं को तनिक भी संदेह नहीं होगा कि इस पहल से पूरी दुनिया की निगाहें पर उन पर टिक गई हैं।


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