सम्पादकीय

ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस सुरक्षा समझौता फ्रांस के साथ विश्वासघात

Gulabi
23 Sep 2021 9:23 AM GMT
ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस सुरक्षा समझौता फ्रांस के साथ विश्वासघात
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ऑस्ट्रेलिया द्वारा फ्रांस सरकार के साथ हुए इस 6.6 करोड़ डॉलर के समझौते को तोड़ने से फ्रांस अपने आपको अपमानित और प्रताड़ित महसूस कर रहा है

ज्योतिर्मय रॉय.

ऑस्ट्रेलिया (Australia) ने हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (America) और ब्रिटेन (Britain) के साथ अपने पांच साल पहले फ्रांसीसी सरकार के साथ पनडुब्बी समझौते को तोड़ते हुए नए समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. स्कॉट मॉरिसन की सरकार ने फ्रांस से पारंपरिक पनडुब्बियां खरीदने के बजाय अमेरिका से परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियां खरीदने का फैसला किया है. इस समझौते में ब्रिटेन भी शामिल है. इस समझौते ने पश्चिमी दुनिया की दोस्ती, एकता और विश्वास की आधार को हिला कर रख दिया है.


ऑस्ट्रेलिया द्वारा फ्रांस सरकार के साथ हुए इस 6.6 करोड़ डॉलर के समझौते को तोड़ने से फ्रांस अपने आपको अपमानित और प्रताड़ित महसूस कर रहा है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रोन ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से अपने राजदूतों को वापस बुलाया है, उन्होंने ब्रिटेन के साथ रक्षा वार्ता भी रद्द कर दी है. फ्रांस के विदेश मंत्री, जीन-यवेस ले ड्रियन ने इस घटना को "विश्वास का उल्लंघन और पीछे से छुरा घोंपने" जैसा बताया है.

राष्ट्रीय हितों की रक्षा के आगे भू-राजनीति में भावनाओं का महत्व नहीं
यद्यपि, आकुस (AUKUS-ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस) समझौते से फ्रांस को झटका लगा, लेकिन फिर भी फ्रांस को यह समझने की आवश्यकता है कि जब राष्ट्रीय हितों की रक्षा की बात आती है तो भू-राजनीति में भावनाओं का कोई महत्व नहीं होता. आस्ट्रेलिया का तर्क है कि चीन से सुरक्षा जोखिम का स्तर साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है, और यही वजह है कि उन्हें डीजल से चलने वाली फ्रांसीसी पनडुब्बियों से अधिक आधुनिक परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की जरूरत है, जिनसे चीन के आक्रमण से देश को सुरक्षित रखा जा सकता है.

फ्रांस का कहना है कि, ऑस्ट्रेलिया के समझौते के अनुसार जब डीजल चालित पनडुब्बियों के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है, उस दौरान आपसी परामर्श के बिना इस प्रकार का समझौता तोड़ना आश्चर्यजनक है और अगर ऑस्ट्रेलिया चाहता तो फ्रांस भी परमाणु ऊर्जा चलित पनडुब्बियों की आपूर्ति ऑस्ट्रेलिया को कर सकते था.

फ्रांस केवल हथियारों के सौदे के नुकसान से नाराज नहीं है, बल्कि AUKUS समझौते से यह आभास होता है कि परमाणु तकनीक को लेकर फ्रांस पर अमेरिका का भरोसा नहीं है. शायद इसीलिए फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां-यवेस ले ड्रियन ने AUKUS सौदे की तुलना "पीठ में छुरा घोंपने" से की है. इन परिस्थितियों में फ्रांस का अगला कदम क्या होगा? क्या फ्रांस अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करेगा? या एक अलग यूरोपीय सुरक्षा रणनीति का सहारा लेगा?

अमेरिका की दोस्ती पर विश्वसनीयता और आस्था का प्रश्न
अमेरिका-फ्रांस जैसे दीर्घकालीन दोस्तों के मध्य संघर्ष की घटनाओं से पूरी दुनिया स्तब्ध है. वास्तव में, ऑस्ट्रेलिया के इस कदम से फ्रांस क्रोधित है, जिससे एक अभूतपूर्व राजनयिक संकट पैदा हो गया है. विश्लेषकों का मानना है कि समय रहते अगर इस विषय को आपसी बातचीत के माध्यम से नहीं सुलझाया गया तो फ्रांस और यूरोप के साथ अमेरिकी गठबंधनों को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है. इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा जिस प्रकार अपने सहयोगी मित्र राष्ट्र को अंधेरे में रखते हुए अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया गया, इससे पूरा विश्व स्तब्ध है और अमेरिका के इस आचरण से सहयोगी मित्र देश अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं.
तालिबान के साथ समझौते की बैठक में भारत को आमंत्रित नहीं करने से भारत भी अपने आपको भी ठगा महसूस कर रहा है. अपने मित्र राष्ट्रों के साथ इस प्रकार के आचरण से अमेरिका की विश्वसनीयता और आस्था पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है, जो एक महाशक्ति के लिए हानिकारक हो सकता है.

फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां-यवेस ले ड्रियन ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका पर परमाणु पनडुब्बी बेचने के सौदे को लेकर झूठ बोलने का आरोप लगाया है. बीबीसी के मुताबिक, समझौते के विरोध में फ्रांस ने पिछले शुक्रवार को दोनों देशों में अपने राजदूत भेजे थे. उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों ने सुरक्षा समझौते के जरिए फ्रांस के साथ अनादर और अपमान का व्यवहार किया है. इस विषय को लेकर यूरोपीय संघ के नेताओं ने फ्रांस का पक्ष लिया है. पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया द्वारा एक फ्रांसीसी पनडुब्बी के लिए एक सौदे को रद्द करने के बाद तनाव पैदा हो गया था. यूरोपीय परिषद के प्रमुख चार्ल्स माइकल ने कहा कि यूरोपीय संघ जवाब मांगेगा. पारदर्शिता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन को बुलाया जाएगा. उन्होंने कहा, "हम पारदर्शिता और अखंडता की स्पष्ट कमी देखते हैं." महाशक्ति अमेरिका के विरुद्ध इस प्रकार की टिप्पणी नि:संदेह अमेरिका के लिए लज्जाजनक है. अमेरिका को अपनी सुपरपावर छवि को बनाए रखने के लिए मित्र राष्ट्रों का विश्वास जीतना अति आवश्यक है, क्या जो बाइडेन यह कर पाएंगे?

अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए चीन का कूटनीतिक-शस्त्र-संघर्ष
चीन ने अपनी गुप्त रणनीति के तहत विश्व के विभिन्न राष्ट्रों को कूटनीतिक-शस्त्र-संघर्ष में उलझा कर रखा है, जिससे चीन अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत और सुरक्षित रख सके. 14 देशों के साथ चीन अपनी सीमा साझा करता है, लेकिन 18 से अधिक देशों के साथ चीन का क्षेत्रीय विवाद है. वास्तविकता सच्चाई से बहुत दूर चीन का दावा है कि सभी क्षेत्र उसके अपने हैं. ये 18 देश हैं जिन्होंने पिछली शताब्दी से चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों का सामना किया है- (भूटान, नेपाल, ब्रुनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, लाओस, मलेशिया, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, फिलीपींस, रूस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, तजाकिस्तान, ताइवान, वियतनाम)
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