सम्पादकीय

Australia Election : ऑस्ट्रेलियायी नेताओं के बीच अचानक भगवा की चमक क्यों बढ़ गई ?

Gulabi Jagat
21 May 2022 8:07 AM GMT
Australia Election : ऑस्ट्रेलियायी नेताओं के बीच अचानक भगवा की चमक क्यों बढ़ गई ?
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क्या भारत के दम पर ऑस्ट्रेलिया की सिसायत में वो होने जा रहा है, जो
इशलीन कौर.
क्या भारत के दम पर ऑस्ट्रेलिया की सिसायत में वो होने जा रहा है, जो इससे पहले वहां कभी नहीं हुआ? क्या 2022 के ऑस्ट्रेलिया (Australia) में प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) की छाप दिखेगी? अगर हां, तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह क्या है? ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब वहां की सियासत, सिस्टम और सभ्य समाज को भगवा रंग सबसे ज़्यादा आकर्षित कर रहा है. समझिये ऐसा क्यों और कैसे हो रहा है और इसके क्या मायने हैं? ऑस्ट्रेलिया में 21 मई को मतदान होने वाले हैं. पीएम नरेंद्र मोदी को अपना खास दोस्त मानने वाले ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं.
उन्हें लेबर पार्टी के प्रत्याशी एंथनी ऐल्बनीज़ से चुनौती मिल रही है. ऑस्ट्रेलिया में सात लाख भारतीय किंग मेकर भी भूमिका में हैं. यहां पर ब्रिटिश समुदाय के बाद भारतीय समुदाय दूसरा ऐसा समुदाय है, जिसकी आबादी ऑस्ट्रेलिया में दूसरे मुल्क के लोगों से अधिक है. ऐसे में भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक किसी भी नेता की सियासी किस्मत को तय कर सकते हैं. मॉरिसन और ऐल्बनीज़ इन दिनों मंदिर-गुरुद्वारों में जाकर वोट मांग रहे हैं. अन्य पार्टियों के उम्मीदवार भी भारतीय समुदाय के बीच घूम-घूमकर वोट मांग रहे हैं. दोनों ही बड़ी पार्टियों ने इस चुनाव में सौ से अधिक बाहरी मुल्कों से संबंध रखने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इनमें एक तिहाई टिकटें भारतीय मूल के उम्मीदवारों को दी गई हैं. अल्बनीज़ को भारत के एक दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी समूह द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रतीक के साथ भगवा स्कार्फ पहने हुए फोटो खिंचवाए गए हैं, जिस पर मुसलमानों और ईसाइयों पर क्रूर हमले करने का आरोप लगाया गया है
इतनी आलोचना क्यों झेल रहे हैं स्कॉट मॉरिसन
दुनिया भर में एक नया वातावरण बन रहा है जो कि ऑस्ट्रेलिया में भी रह रहे बौद्धिक मतदाताओं को मंज़ूर नहीं है और इसका विरोध हो रहा है. इस विषय पर हमने चार्ल्ज़ थोंपसन से भी बातचीत की चार्ल्ज़ ऑस्ट्रेलीयन नागरिक हैं, पेशे से लेखक हैं ,फ़िल्मों में काम कर चुके हैं. चार्ल्ज़ का कहना है भारत के अलग अलग शहरों से लोग यहां आए और वो ज़्यादातर हिंदू हैं. लगभग 7 लाख भारतीय ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं तो ज़ाहिर है एक अच्छा ख़ासा वोट बैंक है किसी भी देश के पॉलिटिशियन के लिए . ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कुछ दिन पहले भगवा स्कार्फ पहनकर हिन्दू कॉउन्सिल के कार्यक्रम में शिरकत की थी. प्रवासियों में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए मोदी के साथ अपनी अखंड दोस्ती की बात की. उन्होंने परिषद को साढ़े 13 करोड़ रुपए देने का वादा भी किया. लेबर प्रत्याशी एंथनी ने भी बाद में परिषद के कार्यक्रम में भाग लिया.
चार्ल्ज़ का कहना है की कुछ लेफ़्ट विंग के लोग हैं जो अपना अजेंडा चला रहे हैं और माहौल ख़राब कर रहे हैं, आम नागरिकों को इस तरीक़े के प्रचार से कोई दिक़्क़त नहीं है. कुछ पाकिस्तान प्रांत के लोग और बांग्लादेश से आए लोग भी इस तरीक़े का अजेंडा चलाते हैं, बातों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं क्यूंकि इन्हें डर है कि हिंदुओं की संख्या ज़्यादा ना हो जाए. चार्ल्ज़ का कहना है कि हिंदुओं की संख्या हाल में हुई मतगड़ना के हिसाब से 20 लाख या उससे पार ही होगी इसीलिए यहां इतना शोर मच रहा है परंतु हम ऑस्ट्रेलीयन सबका स्वागत करते हैं और हमें किस्सी भी धर्म se दिक़्क़त है हमें तो लगता है भारतीय ढंग से रहना, खाना खाना हमारे लिए यह सब नया है और हमें इससे कोई दिक़्क़त नहीं है.
ऐसा पहली बार हो रहा है की भारतीय इतनी भारी मात्रा में चुनाव में रुचि दिखा रहे हैं और इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है जो यहाँ आ कर लोगों को भारतीय होने पर गर्व करवाते हैं और कैसे भारत की आवाज़ बढ़ानी है और भारत का नाम और ऊंचा करना है इसका आभास कराते हैं . हमें याद है प्रधानमंत्री डॉक्टर. मनमोहन सिंह जी भी आते थे और काफ़ी अछी पॉलिसीज़ के साथ आते थे लेकिन उनका उतना पब्लिक कनेक्शन नहीं होता था. अब किसी भारतीय को कुछ लिखने कहने से पहले आम लोगों को भी सोचना पढ़ता है क्यूँकि भारत अब हर चीज़ का सावधानी से और मुंह तोड़ जवाब देता है. हमें प्रधानमंत्री मोदी को देख कर अच्छा लगता की कैसे वो कुर्ता पाजामा पहन कर भारतीय संस्कृति को पूरे आत्मविश्वास के साथ दुनिया के सामने पेश करते हैं, जबकि यहां इंडिया के राजदूत टाई कोट में रहते हैं, उन्हें कुर्ता पाजामा पनने में शर्म आती है. हमें आज तक समझ नहीं आया ऐसा क्यों है? हम अंग्रेज लोग इतने गर्व से गमछा और कुर्ता पहनते हैं और हमें बहुत अच्छा लगता है.
सात समंदर पार "भगवा" की ललकार?
सितंबर 2021 में अमेरिका के ट्विन टावर का हमला आपको ज़रूर याद होगा और आपने वो दर्दनाक तस्वीरें भी देखी होंगी, जब दो बड़े टावर गिरते चले गए. यह हमला पूरी दुनिया के लिए आँखें खोलने वाला था. अमेरिका में इस हमले के बाद से जो देश धार्मिक कट्टरता या इस्लामिक कट्टरता को नहीं मानते वो भी इसे स्वीकार करने लगे. इस हमले के बाद कई देशों ने धार्मिक कट्टरता पर सर्विलांस शुरू कर दिया. मुस्लिमों के खिलाफ संदेह करने लगे. हालांकि ये बात कोई भी देश खुलकर स्वीकार नहीं करता है कि वो मुस्लिम के खिलाफ हैं. लेकिन हर देश अपनी सीमाओं में अपनी अभेद्य तैयार करने लगे हैं. ताकि भविष्य में आतंकी ख़तरों से बचा जा सके.
ऑस्ट्रेलिया के राजनेताओं पर भगवा और भारत का 'सुरूर!
पॉलिन हैंसन जो क्वींसलैंड की senator रही हैं. उन्होंने इस्लाम की तुलना एक तरह की बीमारी से की, जिसके ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों को बचाव की ज़रूरत है. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफ़ी भी मांगी थी. इसी के चलते ऑस्ट्रेलिया के मुस्लिम नेताओं ने प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन की बैठक का भी बहिष्कार कर दिया और मुस्लिम नेताओं ने अपने समाज के लोगों ने अति सक्रिय रहने के लिए कहा गया ताकि किसी भी प्रकार के ख़तरनाक हमले से निपटा जा सके. ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी एबॉट ने भी यह कहकर आलोचनाओं का सामना किया जब उन्होंने कहा कि इस्लाम एक "बड़ी समस्या" है और इसमें सुधार की आवश्यकता है.
इस सब के बाद ऑस्ट्रेल्या में इस्लाम के नाम पर कई घटनाएं घटी और यही वजह रही की ऑस्ट्रेलिया को अपना सिस्टम मज़बूत करना पड़ा. दूसरी बात यह की भारत इस्लाम की कट्टरता का विरोध लगातार करता आया है परंतु इससे निपटने के लिए कभी भारत को उतना समर्थन नहीं मिला और आज पूरी दुनिया ऐसे दौर में पहुंच गई है की हर कोई इस्लामिक टेररिज़म के बढ़ते प्रभाव से परेशान हैं और अब इससे निपटने के लिए भारत के समर्थन की मांग कर रहा है. यूरोपिये देश अब समझने लगें हैं और तमाम बार भारत के प्रधानमंत्री से इससे निपटने और सख़्त कदम उठाने की मांग करते हैं .
भारतीयों की धमक पिछले 8 साल में काफ़ी बढ़ी है. भारतीय डायस्पोरा को न सिर्फ लुभाया जाता है बल्कि उन्हें polarise भी किया जाता है. इस बार के चुनाव में भारतीय मूल के कई उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. लेबर पार्टी ने हिगिंस, ला ट्रोब, स्वान और वेर्रवा इलाकों में भारतीय मूल के उम्मीदवारों को तवज्जों दी है. तो दूसरी और लिबरल पार्टी ने यहां की ग्रीनवे सीट से प्रदीप पाठी को टिकट दिया है. इसके अलावा लिबरल पार्टी की ओर से दोनों राज्यों में स्थित भारतीय बहुल इलाकों में पैरामेटा ग्रीनवे, लेलोर, चिफले, होथम और मरीबियोंग में भारतीय मूल के उम्मीदवार उतारे हैं. इस मामले में विशेषज्ञों की राय है कि ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि भारतीय समुदाय के प्रति स्थानीय नेताओं का इतना बड़ा झुकाव है.
जहां जहां प्रधानमंत्री मोदी गए हैं अपनी विरासत को ना सिर्फ़ गर्व महसूस करवाते हैं बल्कि इसी राजनयिक पूँजी से विदेशी ताक़तों को एक messege देने का भी प्रयास करते हैं यही वजह है की ऑस्ट्रेल्या के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कुछ दिन पहले भगवा स्कार्फ पहनकर हिन्दू कॉउन्सिल के कार्यक्रम में शिरकत की थी. प्रवासियों में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए मोदी के साथ अपनी अखंड दोस्ती की बात की. उन्होंने परिषद को साढ़े 13 करोड़ रुपए देने का वादा भी किया. लेबर प्रत्याशी एंथनी ने भी बाद में परिषद के कार्यक्रम में भाग लिया.
ऑस्ट्रेलिया में अल्पसंख्यक होकर भी हिंदुओं का बढ़ता वर्चस्व
ऑस्ट्रेलिया में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक हैं. हिंदुओं की संख्या क़रीब 4.40 लाख है. ये 2016 की जनगणना के हिसाब से ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी का 1.9% है. लेकिन, हिंदू धर्म के लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है और ऑस्ट्रेलिया में इमिग्रेशन के तहत उन्हें वहां बसने का मौक़ा मिल रहा है. ख़ास बात ये भी है कि युवाओं में हिंदू मान्यताएं और जीवनशैली काफ़ी मशहूर हो रही है. यहां 34% हिंदुओं की उम्र 14 साल और 66% हिंदुओं की संख्या 34 साल है. मुस्लिम समुदाय की संख्या यहां 6 लाख के आसपास है और बौद्ध धर्म के लोगों की संख्या 5.60 लाख हैं. सिखों की जनसंख्या 1.30 लाख और यहूदी क़रीब 90,000 हैं. इस तरह हिंदु, सिख, बौद्ध और यहूदी सभी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक वर्चस्व के लिए सभी दलों को सबसे ज़्यादा हिंदुओं का साथ चाहिए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

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