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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया (Australia) और चीन (China) के बीच तनाव का माहौल कुछ ऐसा बन गया है
बिक्रम वोहरा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया (Australia) और चीन (China) के बीच तनाव का माहौल कुछ ऐसा बन गया है जैसे कि 'एलिस इन वंडरलैंड' का मशहूर 'लॉबस्टर क्वाड्रिल' वॉर डांस दोहराया जा रहा हो. लेकिन सवाल ये है कि क्या एक मासूम क्रस्टेशियन (लॉबस्टर) की वजह से प्रशांत क्षेत्र में नए कोल्ड वॉर का जन्म हो सकता है?
वाशिंगटन और कैनबरा के बीच बढ़ती आर्थिक नजदीकियां देखकर बीजिंग ने ऑस्ट्रेलिया एक्सपोर्ट किए जाने वाले करीब आधे बिलियन डॉलर के लॉबस्टर पर रोक लगा दी है. और अब सिर्फ 10 फीसदी लॉबस्टर की आपूर्ति रह जाने की वजह से इसकी कीमतों में भारी इजाफा हो गया है. जिससे ऑस्ट्रेलिया का गुस्सा सातवें आसमान पर है. फिर 21 जुलाई को बीजिंग ने सीधे तौर पर कैनबरा को धमकी दे दी थी कि अगर ताइवान की रक्षा में अमेरिकियों के साथ ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने सैनिक भेजे तो वो उसके सैन्य ठिकानों पर जवाबी मिसाइल हमला कर देगा. क्योंकि अफगान पुशबैक से चकराया और वहां के खराब हालात से जूझ रहा अमेरिका जरूर चाहेगा कि हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र पर नजर रखने के लिए कोई साथी देश सामने आए.
चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ा विवाद
दक्षिण चीन सागर और पूर्वोत्तर एशिया के प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग के बीच करीब आधा दर्जन देशों के साथ चीन का जमीनी विवाद लगातार जारी है, जिसमें विशेष रूप से स्प्रैटली आइलैंड्स की ओनरशिप का मसला भी शामिल है. ये वो आइलैंड हैं जहां से नागरिक और नौसैनिक बेड़े की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है. चीन का सीक्रेट समुद्री ऑपरेशन और स्प्रैटली के फेयरी क्रॉस रीफ में एक हवाई क्षेत्र का निर्माण खास तौर पर ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम, जापान और मलेशिया के लिए परेशानी का सबब बना है. हालांकि टोक्यो ने 1951 में इन टापू पर से अपना दावा हटा लिया था.
सवाल है कि यह पूरा मामला इतनी जल्दी कैसे बिगड़ गया कि प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने आधिकारिक तौर पर बाइडेन को यह आश्वासन देने के लिए कहा कि चीन की तरफ से ऑस्ट्रेलिया पर होने वाले किसी भी मिसाइल हमले का अमेरिका मुकाबला करेगा? इस नए कोल्ड वॉर की शुरुआत ड्रग तस्करी के एक मामले में एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को मौत की सजा देने से हुई थी. चीन ने तब ऑस्ट्रेलिया को रेसिस्ट बताते हुए अपने नागरिकों को सलाह दी थी कि वो पर्यटन या पढ़ाई के लिए वहां न जाएं.
G7 पूरी दृढ़ता से ऑस्ट्रेलिया के साथ खड़ा है
आर्थिक मोर्चे पर भी हालात इतने ही डांवाडोल हैं. मॉरिसन सरकार जैसे ही इस मसले पर बाइडेन के करीब आई तो G7 पूरी दृढ़ता से ऑस्ट्रेलिया के साथ खड़ा हो गया, ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा वो Aussies के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं. फ्रांस के मैक्रो ने भी यही बात दोहराई, हालांकि सभी ने यह भी कहा कि वो चीन के साथ ट्रेड वॉर नहीं चाहते. इसके बाद कोविड के वुहान कनेक्शन की गहन जांच की मांग कर ऑस्ट्रेलिया ने बीजिंग को और अधिक नाराज कर दिया. फिर G7 देशों ने चीन पर वीगर अल्पसंख्यक के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन और अनुचित कीमतों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के आरोप लगाए.
ऑस्ट्रेलिया को मिली परमाणु पनडुब्बियां बनाने की इजाजत
दोनों देशों के बीच खाई पिछले कुछ समय से बढ़ती जा रही थी. फिर भी अब तक यह सब सुर्खियां बटोरने के लिए एक दूसरे पर किए गए जुबानी हमले भर नजर आ रहे थे. लेकिन इस हफ्ते विवाद ने तब एक आक्रामक मोड़ ले लिया है जब चीन से निपटने के लिए त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी में ब्रिटेन और अमेरिका के साथ बतौर तीसरा देश ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया. ऑकस (AUKUS) नाम की इस पहल से जहां ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियां बनाने की इजाजत मिल गई. वहीं बीजिंग निश्चित रूप से इस सौदे को दुश्मन की बढ़ती ताकत के रूप में देखेगा.
वास्तव में, इसे 'कोल्ड वॉर' कहना पूरी तरह ठीक नहीं होगा क्योंकि अब पूरी तरह तनाव और टकराव की नौबत बन आई है. मॉरिसन का यह बयान कि उनका देश चीन से होने वाले कारोबारी नुकसान को झेल लेगा, लेकिन संप्रभुता का आत्मसमर्पण नहीं करेगा, साफ तौर हालात की गंभीरता को दर्शाता है. हालांकि मॉरिसन ने यह साफ कर दिया है कि परमाणु पनडुब्बी हासिल करने वाला सातवां देश बनने के बावजूद वो परमाणु शक्ति बनने का कोई इरादा नहीं रखते हैं.
चीन को अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक सामूहिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा
बीजिंग को यह संदेश देने के लिए स्पष्ट कदम उठाए जा रहे हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को अब एक निश्चित सामूहिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा. जाहिर है इसके बाद मित्र देशों के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी बढ़ेंगे.
जापान और भारत जैसे देश, जिनकी इस क्षेत्र के शक्ति संतुलन में हमेशा से प्रमुख भूमिका रही है, तीन देशों के नए गठबंधन और बीजिंग-कैनबरा के बिगड़ते संबंध के लिए जरूर आभारी होंगे. ऑकस (AUKUS) से क्वॉड ग्रुप को बहुत ताकत मिलेगी. अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच Quadrilateral Security Dialogue में एक ऐसे क्षेत्र की प्रतिबद्धता दोहराई गई जो कि "स्वतंत्र, खुला, समावेशी, स्वस्थ, लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ा, और जबरन पाबंदी से मुक्त" हो.
यहां हर एक शब्द का चीन, चीन और बस चीन ही है. अब फ्रांस और ब्रिटेन के साथ आने से क्वॉड और ऑकस एक बड़ी ताकत बन कर उभरी है. फिलहाल नई दिल्ली से कोई बयान नहीं आया है और क्यों आए? बीजिंग पर किसी भी नए स्त्रोत से आने वाले दबाव का स्वागत है. हालांकि, अभी के लिए डिनर में, कोई लॉबस्टर थर्मिडोर नहीं है.
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