सम्पादकीय

दुस्साहस का दायरा

Subhi
26 March 2021 1:00 AM GMT
दुस्साहस का दायरा
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पूर्वी दिल्ली इलाके में पुलिस की गिरफ्त से एक कुख्यात अपराधी को छुड़ा ले जाने की जैसी घटना सामने आई है,

गुरुवार को पूर्वी दिल्ली इलाके में पुलिस की गिरफ्त से एक कुख्यात अपराधी को छुड़ा ले जाने की जैसी घटना सामने आई है, उससे पुलिस की कार्यशैली में गहरे पैठी लापरवाही ही उजागर हुई है। दरअसल, दिल्ली पुलिस एक बदमाश कुलदीप उर्फ फज्जा को जीटीबी अस्पताल में चिकित्सीय जांच के लिए लाई थी। इसी दौरान वहां एक कार से आए छह-सात अन्य बदमाशों ने पुलिस की आंखों में मिर्च पाउडर झोंक दिया और कुलदीप को गिरफ्त से छुड़ा कर फरार हो गए।

हालांकि इस बीच पुलिस की ओर से सामना करने की कोशिश की गई और भागते बदमाशों पर गोली चलाई गई, जिसमें एक मारा गया और एक को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन इस तरह पुलिस टीम पर हमला करके अपराधियों का सरेआम अपने साथी को छुड़ा ले जाना यही दर्शाता है कि किसी आशंका के मद्देनजर पूर्व-सावधानी बरतने और अपराधियों के अचानक हमले का सामना करने के मामले में जरूरी एहतियात नहीं बरती गई। खासतौर पर जब शातिर कुलदीप की पृष्ठभूमि और उसके आपराधिक दायरे के बारे में पहले से पुलिस को जानकारी थी और उसकी गिरफ्तारी ही अपने आप में एक बड़ी कामयाबी थी, तो उसके गिरोह की ओर से अचानक हमले की आशंका को ध्यान में रखा जाना चाहिए था।
गौरतलब है कि फज्जा नाम से कुख्यात बदमाश कुलदीप उसी जितेंद्र मान के गोगी गिरोह में शामिल था, जिस पर हरियाणा की एक मशहूर गायिका की हत्या का आरोप है। करीब एक साल पहले बड़ी जद्दोजहद के बाद दिल्ली पुलिस ने गुरुग्राम से जितेंद्र मान सहित कुलदीप को गिरफ्तार किया था। इससे पहले भी उस पर हत्या के एक मामले में फरार होने पर पचहत्तर हजार रुपए का इनाम रखा गया था। वह अपने विरोधी गुटों पर कई बार जानलेवा हमले कर चुका है।
हत्या और लूट सहित उस पर कुल सत्तर मुकदमे दर्ज हैं। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि दिल्ली विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई कर चुके इस बदमाश की पहुंच कुख्यात अपराधी जोगेंद्र उर्फ जोगी तक कैसे हुई और पढ़ाई-लिखाई के जरिए एक बेहतर इंसान बनने के बजाय उसने अपराध की दुनिया में अपना सुख खोजना क्यों जरूरी समझा। मगर मेहनत के भरोसे अपना मुकाम हासिल करने के बजाय छोटे रास्तों से सब कुछ हासिल करने और विरोधियों पर वर्चस्व जमाने की बेलगाम भूख किसी को इसी तरह हकीकत की बेहतर जिंदगी से दूर कर देती है। उसके साथी भले उसे पुलिस की गिरफ्त से छुड़ा ले गए, लेकिन कानून के हाथ से हमेशा के लिए बचना आसान नहीं होता है।
विडंबना यह है कि उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि के मद्देनजर पुलिस को जहां खासतौर पर जेल की चारदिवारी या थाने से बाहर हर वक्त पर्याप्त सुरक्षा के साथ उसके साथियों के ऐसे हमले को लेकर तैयार रहना चाहिए था, वहां एक अस्पताल परिसर में सिर्फ मिर्ची झोंक कर उसके साथी उसे छुड़ा ले गए। दूसरी ओर, दिल्ली में ही प्रगति मैदान इलाके में दो अपराधियों को लेकर पुलिस टीम की चौकसी गौरतलब है।
इस घटना में खुफिया सूचना के बाद जब तड़के एक संदिग्ध कार में सवार बदमाशों को पुलिस ने रुकने को कहा तो उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। एक महिला सब-इंस्पेक्टर ने खुद पर गोली चलाए जाने के बावजूद पूरी बहादुरी से सामना किया और पूरी बुद्धिमानी से उन्हें घायल कर गिरफ्तार किया। निश्चित रूप से चौकसी और तैयारी के इसी स्तर में कोताही की वजह से अपराधियों का दुस्साहस बढ़ता है। जरूरत इस बात की है कि कुख्यात बदमाश को छुड़ा ले जाने की घटना को पुलिस एक सबक के तौर पर देखे और अपराधियों के लिए कोई छोटा मौका भी न छोड़े।

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