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सम्पादकीय
हिंदुओं पर हमलों के बीच बांग्लादेश को फिर से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए जाने की कवायद
Shiddhant Shriwas
24 Oct 2021 10:32 AM GMT
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हसीना ने अपने गरीब मुल्क में जिस तरह से आर्थिक तरक्की की राह खोली है उस पर आज दुनिया में उनकी तारीफ हो रही है
संयम श्रीवास्तव
बांग्लादेश में 13 अक्टूबर से ही हिंदू समुदाय के लोगों पर और उनके धार्मिक स्थलों पर हमले हो रहे हैं. इस वजह से वहां रह रहे हजारों हिंदू अल्पसंख्यक परिवार भय के माहौल में हैं. इस बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इस इस्लामी देश से ऐसी खबर आ रही है कि वहां की सरकार देश की संसद में बांग्लादेश को फिर से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने की कवायद शुरू की है. विश्व में बढ़ते कट्टरपंथ के इस माहौल में अगर ऐसा होता है तो यह शेख हसीना सरकार की एक बड़ी सफलता कही जाएगी . हसीना ने अपने गरीब मुल्क में जैसे आर्थिक तरक्की की राह खोली है उस पर आज दुनिया उनकी तारीफ कर रही है . अगर उनके नेतृत्व में बांग्लादेश इस्लामी कट्टरपंथ से निकलकर पुनः धर्मनिरपेक्ष देश बनाता है तो वो दुनिया के सामने नजीर बन जाएंगी.
बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में अपनी ग्रोथ रेट भारत से भी अधिक तेज कर दुनिया को यह संदेश दे दिया था कि वो आधुनिकीकरण की राह पर तेजी से चल रहा है. दुर्गा पूजा पर हुई हिंसा के बीच अगर 10 परसेंट हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए इतना बड़ा फैसला लेना सरकार की राजनीतिक सूझबूझ के साथ राजनीतिक प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है. इससे न केवल बांग्लादेश बल्कि पड़ोस में स्थित कई देशों को सीख मिलेगी कि अगर देश को विकसित और अमीर देश बनाना है तो अल्पसंख्यकों के साथ सरकार और बहुसंख्यक आबादी को किस तरह पेश आना चाहिए.
क्या है मामला
यह पूरा मामला शुरू होता है 13 अक्टूबर की सुबह से. जब एक अज्ञात युवक बांग्लादेश की आपातकालीन सेवा नंबर 999 पर फोन कर पुलिस को सूचना देता है कि कमिला शहर के एक दुर्गा पूजा स्थल पर पवित्र कुरान की बेअदबी हुई है. जब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती तब तक सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो चुकी होती है, जिसमें कुरान एक हिंदू देवता के घुटने पर रखा हुआ दिखाई देता है. इन सब घटनाक्रम के बीच सुबह के तकरीबन 7 से 7:30 के बीच घटनास्थल से ही एक फैयाज अहमद नामक व्यक्ति फेसबुक लाइव आता है और अपने लाइव में वह कहता है 'मुसलमानों जागो'. यानि कि वह हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ वहां के बहुसंख्यकों मुसलमानों को भड़काता है.इस लाइव के तुरंत बाद ही घटनास्थल पर भारी संख्या में लोग जुटने लगते हैं. मामले को बढ़ता देख पुलिस अधिकारी सुबह 10 बजे तक घटनास्थल पर पहुंच जाते हैं और गुस्साई भीड़ को शांत करने का प्रयास करते हैं.हालांकि इन सबके बीच कुछ गुस्साए युवक मांग करते हैं कि पूजा समारोह को तुरंत बंद कर दिया जाए. पुलिस और भीड़ के बीच बातचीत के दौरान लगभग 11 बजे के आसपास पूजा स्थल पर पथराव शुरू हो जाता है. इसके बाद दुर्गा पूजा पंडाल में भी तोड़फोड़ की जाती है. इस घटना के बाद पूरे बांग्लादेश में हिंदुओं के दुकानों, घरों और मंदिरों को निशाना बनाकर कई दर्जन हमले किए जाते हैं. लेकिन जब आखिर में पुलिस मामले की जांच करती है और तमाम सीसीटीवी कैमरे को खंगालती है तो उसे पता चलता है कि यह पूरी घटना किस तरह से एक षड्यंत्र के अंतर्गत रची गई थी. सीसीटीवी कैमरे में साफ देखा जा सकता है कि इकबाल नाम का एक एक व्यक्ति कैसे कुरान ले जाकर चुपचाप पूजा स्थल पर रख देता है. अब पुलिस जांच कर रही है कि यह सब कुछ इकबाल ने खुद किया है या इसके पीछे किसी बड़े संगठन का हाथ है.
साजिश के तहत हिंदुओं को बनाया गया निशाना
बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ इस तरह की वारदात पहली बार नहीं हुई है. हालांकि बांग्लादेश हो या पाकिस्तान जहां भी हिंदू अल्पसंख्यक हैं उनके साथ इस तरह की वारदात होती रहती है. उनके मंदिरों को तोड़ा जाता है उनके घरों पर आए दिन पथराव किए जाते हैं और उन्हें निचले दर्जे का मान कर उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. बांग्लादेश के कमिला शहर में भी ऐसा ही कुछ हुआ. 2013 की जनगणना के अनुसार बांग्लादेश की 16 करोड़ की आबादी में सुन्नी मुसलमानों की आबादी लगभग 89 फ़ीसदी है. जबकि हिंदुओं की आबादी महज 10 फ़ीसदी है. इतनी कम आबादी होने की वजह से ही हिंदू अक्सर यहां निशाना बनाए जाते हैं. इनका वोट बैंक मुसलमानों के मुकाबले कुछ भी नहीं है. इसलिए यहां की राजनीतिक पार्टियां भी इन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देती हैं.
बांग्लादेश के कमिला शहर में हुए इस पूरे घटनाक्रम के लगभग 1 हफ्ते बाद पुलिस ने जब शहर के तमाम सीसीटीवी फुटेज को खंगाला तब उसे मालूम चला इकबाल हुसैन नाम के एक 30 वर्षीय व्यक्ति ने कथित तौर पर यह साजिश रची थी और उसने जानबूझकर हिंदू पूजा स्थल पर कुरान को ले जा कर रखा था. ताकि दोनों संप्रदायों में एक बड़ा विवाद हो सके. पुलिस ने इस मामले में 21 अक्टूबर को इकबाल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया है. इकबाल के पीछे कोई और है कि नहीं इस मामले पर बांग्लादेश के गृहमंत्री ने कहा कि ऐसा लगता है जैसे इकबाल ने किसी और के उकसाने पर यह सब किया है.
इससे पहले भी हजारों बार हो चुके हैं हमले
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों की संख्या पर नजर डालें तो यह हजारों में दिखाई देता है. द हिंदू में छपे एक लेख के अनुसार जनवरी 2013 से सितंबर 2021 के बीच हिंदू समुदाय पर बांग्लादेश में 3710 हमले हुए. 29 और 30 सितंबर 2012 को एक अनियंत्रित भीड़ ने सिर्फ अफवाह की तर्ज पर रामू में बौद्ध समुदाय पर हमला कर दिया था. इस हमले में लगभग 50 से अधिक बौद्ध मंदिरों और घरों में तोड़फोड़ लूटपाट की गई थी. इस दौरान शहर के हिंदू घरों को भी निशाना बनाया गया था. जबकि 30 अक्टूबर 2016 को बांग्लादेश के ब्राह्मणबरिया के नसीर नगर उप जिला में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय ने एक हिंदू युवक रसराज दास द्वारा शेयर किए गए एक पोस्ट को लेकर शहर के लगभग 10 मंदिरों में और 100 से अधिक घरों में तोड़फोड और लूटपाट की थी.
क्या इन हजारों हमलों के पीछे सच में कोई साजिश है
बांग्लादेश की वर्तमान सरकार कहती है कि इन हमलों के पीछे कुछ लोग हैं जो अपने राजनीतिक लाभ को हासिल करने के लिए नियोजित तरीके से इन्हें अंजाम देते हैं. दरअसल आज से 50 साल पहले जब बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तो उस वक्त बांग्लादेश में रह रहे हिंदू मुस्लिम सभी ने एक साथ मिलकर पाकिस्तान से इस आजादी की लड़ाई को जीता था. हालांकि उस वक्त भी देश में एक कट्टरपंथी गुट सक्रिय था जो नहीं चाहता था कि बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हो. और यही गुट आज भी बांग्लादेश के अंदर इस तरह के कृत्य को अंजाम देता है. ताकि वह बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष, गैर सांप्रदायिक और बहुलवादी शाख को कमजोर कर सके.
धर्मनिरपेक्ष बनाम इस्लामी राज्य पर बहस
बांग्लादेश में एक बार फिर धर्मनिरपेक्ष बनाम इस्लामिक राज्य पर बहस छिड़ गई है. बांग्लादेश के सूचना मंत्री मुराद हसन ने 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान की वापसी के ऐलान से बांग्लादेश में राजनीति गर्म हो गई है. उधर, कट्टरपंथी ताकतों ने अवामी लीग सरकार को धमकी दिया है कि अगर 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान को वापस लाने के लिए प्रस्तावित विधेयक को संसद में पेश किया तो और अधिक हिंसा के लिए तैयार रहे देश. साल 1988 में जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित किया था. देश में 1971 में जब बांग्लादेश एक नए राष्ट्र के रूप में वजूद में आया तो संविधान निर्माताओं ने एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में इस देश का निर्माण किया. इसका आधार बंगाली सांस्कृतिक और भाषाई राष्ट्रवाद रहा और इसने पाकिस्तान की रूढ़िवादी इस्लामी परंपराओं से अपने आप को दूर रखा. 1972 में लागू बांग्लादेश के संविधान में सभी धर्मों की समानता को सुनिश्चित किया गया. पर पाकिस्तान के तर्ज पर यहां चार साल के अंदर ही खूनी तख्तापलट हो गया. देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की उनके परिवार के साथ हत्या कर दी गई. उनकी केवल दो बेटियां वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना बच गईं.
अवामी लीग ने हिंदुओं में विश्वास जगाया
अवामी लीग के सूचना मंत्री का बयान कि देश को फिर से धर्म निरपेक्ष बनाएंगे केवल गपबाजी नहीं कही जा सकती है. दरअसल अवामी लीग सरकार ने अपने 10 साल के शासन में हिंदू अल्पसंख्यकों में जो विश्वास जगाया है वो बहुत कम सरकारें कर पाती हैं. इसी का नतीजा है कि 2010 की जनगणना के हिसाब से बांग्लादेश में मात्र 10 फीसदी हिंदू बचे थे. पर अब इन दस सालों में हिंदुओं की संख्या 2 प्रतिशत के करीब बढ़ 12 प्रतिशत हो गई. सैनिक सरकारों बीएनपी की सरकारों के दौरान हिंदुओं पर इतना जुल्म हुआ कि 1971 के समय 22 प्रतिशत वाला हिंदू देश मात्र 10 प्रतिशत हिंदू वाला देश बन गया था.
बांग्लादेश सांख्यिकी विभाग के अनुसार अवामी लीग के सत्ता में रहते हुए हिंदुओं का पलायन कम हो गया है. बांग्लादेश में 2023 में आम चुनाव होने हैं. अब देखना है कि अवामी लीग को इस फैसले से कितना लाभ होने वाला है.
हिंदू विरोधी हिंसा को इस कड़ी से जोड़कर देखने वालों का कहना है कि शेख हसीना की अवामी लीग की हिंदू अल्पसंख्यक के मतों पर नजर है. पर उनको इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है. एक तरफ तो उम्मीद है कि यह अवामी लीग के प्रति हिंदुओं की धारणा को बदल सकता है. पूजा पंडालों में हुई हिंसा के चलते अवामी लीग की साख को धक्का लगा था, जो इस फैसले के बाद सुधार सकता है. दूसरी ओर जिस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरता बढ़ रही है उसे देखते हुए यह भी हो सकता है कि अवामी लीग की विरोधी पार्टियों को इसका लाभ मिले और अवामी लीग को भारी नुकसान उठाना पड़ जाए.
Shiddhant Shriwas
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