सम्पादकीय

हमले के शिकार

Subhi
2 March 2022 3:21 AM GMT
हमले के शिकार
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यूक्रेन पर रूस के हमले को एक हफ्ता हो चुका है। रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। दोनों तरफ से भारी गोलाबारी के बीच लोगों की जान को खतरा बना हुआ है।

Written by जनसत्ता: यूक्रेन पर रूस के हमले को एक हफ्ता हो चुका है। रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। दोनों तरफ से भारी गोलाबारी के बीच लोगों की जान को खतरा बना हुआ है। इसमें अब तक दोनों तरफ के सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। भारत से वहां पढ़ने गया कर्नाटक का एक छात्र भी उस गोलीबारी का शिकार हो गया। भारत के हजारों विद्यार्थी वहां फंसे हुए हैं। इनकी तादाद करीब बीस हजार बताई जा रही है, जिसमें से करीब डेढ़ हजार भारत लाए जा सके हैं। अब भारत सरकार ने वहां से अपने विद्यार्थियों को वापस लाने का अभियान तेज कर दिया है।

यूक्रेन से सटे चार राज्यों में भारत सरकार के चार वरिष्ठ मंत्री भी पहुंच गए हैं, जो परेशानहाल छात्रों की मदद के लिए भेजे गए हैं। मगर वहां जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखते हुए नहीं लगता कि बहुत आसानी से सभी छात्रों को यूक्रेन से बाहर निकाला जा सकेगा। अभी इसमें वक्त लगेगा। मगर एक भारतीय छात्र की मौत के बाद से स्वाभाविक ही भारत सरकार पर दबाव बढ़ना शुरू हो गया है।

हालांकि युद्ध शुरू होने से पहले ही यूक्रेन ने बाहरी लोगों से कह दिया था कि वे अपने वतन वापस लौट जाएं। कई देशों ने अपने नागरिकों को वहां से निकाल भी लिया। मगर वहां फंसे छात्रों को निकालने का कोई प्रयास नहीं किया गया। जो छात्र कई गुना अधिक कीमत पर टिकट खरीद सकते थे, वे तो आ गए। बाकी वहीं फंसे रहे। सभी विद्यार्थियों के लिए अपने पैसे से इतना महंगा टिकट खरीदना संभव नहीं था। फिर भारत सरकार उन्हें आश्वस्त करती रही कि जो जहां है, वह वहीं रहे। उनको कोई खतरा नहीं है। मगर स्थिति ऐसी भयावह हो जाएगी, इसका किसी को अंदाजा न रहा होगा।

युद्ध छिड़ गया तो हजारों छात्रों को भूमिगत रेलवे स्टेशनों पर छिप कर रहना पड़ा। फिर भारत सरकार ने कहा कि विद्यार्थी किसी तरह यूक्रेन की सीमा पार कर हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया आदि देशों में पहुंच जाएं तो उन्हें वहां से भारतीय विमानों से लाया जा सकेगा। इस पर विद्यार्थियों में यूक्रेन छोड़ने की जल्दी मच गई। मगर उन सीमाओं तक पहुंचने के कोई साधन उपलब्ध नहीं। युद्ध की वजह से सार्वजनिक वाहनों की आवाजाही बहुत कम हो गई है। इस तरह बहुत सारे छात्र, जो कुछ पैसे खर्च कर सकते थे, उन्होंने लाखों रुपए खर्च करके सीमा तक पहुंचने की कोशिश की। मगर उन देशों की सरकारों ने उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया। वहां की पुलिस ने उन्हें मारा-पीटा भी। वहां का मौसम शून्य से चार पांच सेंटीग्रेड नीचे रहता है। ऐसे में खुले आसमान के नीचे बहुत सारे छात्रों को वक्त गुजारना पड़ रहा है।

बहुत सारे लोग पढ़ाई-लिखाई और रोजी-रोजगार के सिलसिले में दूसरे देशों का रुख करते हैं। जब वे जाते हैं, तो सरकार की इजाजत होती है। अगर वे कभी किसी संकट में फंस जाते हैं तो संबंधित देश की जिम्मेदारी होती है कि उन्हें सुरक्षित बाहर निकाले। मगर भारत सरकार ने इस मामले में ढिलाई बरती, जिसका नतीजा है कि हजारों विद्यार्थी मुसीबत झेल रहे हैं। जिस तरह के चित्र वहां से आ रहे हैं, और छात्र अपनी जैसी मुसीबत बयान कर रहे हैं, वह दहलाने वाला है। इसके लिए कोई व्यावहारिक रास्ता तत्काल तलाशने की जरूरत है।


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