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पिछले दिनों अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने गर्भपात को मान्यता देने वाले कानून को निरस्त कर दिया
सोर्स- Jagran
क्षमा शर्मा : पिछले दिनों अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने गर्भपात को मान्यता देने वाले कानून को निरस्त कर दिया। अब अमेरिका के विभिन्न राज्यों की सरकारों को तय करना है कि वे महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दें या नहीं? इस फैसले के आते ही रिपब्लिकन शासन वाले राज्यों ने गर्भपात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। एक तरह से डेमोक्रेट शासन वाले राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में गर्भपात अब गैर-कानूनी हो गया है। 50 साल पुराने इस कानून के निरस्त होते ही अमेरिका में गर्भपात कराने वाली गोलियों की मांग चार गुनी बढ़ गई है। ये गोलियां कम खर्चीली हैं, लेकिन कई बार इन गोलियों को खाने से गर्भपात नहीं होता और जन्मे बच्चों को तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां होती हैं। अमेरिका के कई राज्यों में टेलीमेडिसिन की सहायता से भी गर्भपात गैर कानूनी है। अब जिन राज्यों में यह कानूनन मान्य है, महिलाओं को वहीं जाकर गर्भपात कराना होगा। अमेरिका बहुत बड़ा देश है। सवाल है कि अपने घर-बार को छोड़कर किसी अपरिचित जगह महिलाएं कैसे जाएंगी? कैसे उन्हें डाक्टरों की सहायता मिलेगी? यदि कोई स्त्री या बच्ची दुष्कर्म का शिकार हुई और गर्भवती हो गई तो उसका क्या होगा?
अमेरिका खुले यौन संबंधों की छूट देता है। ऐसे में वहां छोटी उम्र में ही बड़ी संख्या में लड़कियां मां बन जाती हैं। जो कम उम्र में मां नहीं बनना चाहतीं, वे क्या करेंगी? चोरी-छिपे ऐसा करने से उन्हें बीमा कंपनियों की मदद भी नहीं मिलेगी। हाल में ब्राजील से यह एक खबर आई थी कि वहां एक दस साल की बच्ची दुष्कर्म की शिकार होकर गर्भवती हो गई। उसने न्यायालय से गर्भपात की अनुमति मांगी, मगर न्यायालय ने उसे अनुमति नहीं दी। परिणामस्वरूप खुद दस साल की वह बच्ची, एक बच्चे को जन्म देकर उसे पालेगी।
अमेरिका में कई सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडन से मांग की है कि महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिलना चाहिए। बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दुख प्रकट किया है। अमेरिका में लगभग तीन चौथाई लोग तरह-तरह से इस फैसले का विरोध और महिलाओं का समर्थन कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि गर्भपात को कानूनी मान्यता न देंगे तो भी गर्भपात नहीं रुकेंगे। संयुक्त राष्ट्र में भी विशेषज्ञों ने अमेरिका में गर्भपात के विरुद्ध इस तरह के फैसले पर चिंता प्रकट की है। अमेरिका में महिलाएं उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में कोट-हैंगर लेकर सड़कों और इंटरनेट मीडिया पर अपना विरोध प्रकट कर रही हैं। कोट-हैंगर असुरक्षित गर्भपात का प्रतीक है। एक समय उसके जरिये ही गर्भपात कराए जाते थे।
1973 में रो बनाम वेड निर्णय से पहले 1969 में तीन लाख लोगों ने कोट-हैंगर लेकर प्रदर्शन किया था। इस निर्णय के जरिये ही महिलाओं को गर्भपात का कानूनी अधिकार मिला था। सवाल है कि अमेरिका जैसा देश जो महिलाओं की आत्मनिर्भरता, उनके शरीर पर उनके हक, समाज में बराबरी की भागीदारी की बात करता है, वह गर्भपात का कानूनी हक कैसे छीन सकता है? क्या हर साल बच्चा पैदा करके कोई भी स्त्री दफ्तर में लंबा समय बिता सकती है?
फ्रांस में एक अध्ययन में पाया गया था कि जो महिलाएं असुरक्षित गर्भपात कराती हैं, उनमें से 61 प्रतिशत को तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है। गर्भपात कानून के विरुद्ध सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि यह जिंदगी देने वाला नहीं, लेने वाला कानून है। याद होगा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इसी कारण से भ्रूण स्टेम सेल रिसर्च को रोक दिया था।
वैसे आधुनिक चिकित्सा पद्धति की दस्तक से पहले भी दुनिया भर में महिलाएं गर्भपात कराती रही हैं। भारत में भी ऐसा होता रहा है। अतीत में कई विधवाएं यौन उत्पीड़न की शिकार होकर गर्भवती हो जाती थीं। चोरी-छिपे गर्भपात कराने में कई बार उनकी जान भी चली जाती थी। जब विधवाओं के विवाह के समर्थन में अपने देश में आंदोलन चलाया जा रहा था, तब भी उनके यौन शोषण और उससे गर्भ ठहरने की चिंता समाज सुधारकों की नजर में थी।
वास्तव में हमारे यहां के गर्भपात संबंधी कानून दुनिया को मानव अधिकारों और महिला अधिकारों का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका से मीलों आगे दिखाई देते हैं। हालांकि वर्ष 1960 में भारत सरकार ने भी कहा था कि वह गर्भपात को कानूनी मान्यता प्रदान नहीं करेगी, लेकिन विषय की गंभीरता को देखते हुए 1971 में गर्भपात को कानूनी मान्यता दे दी गई। इसका कारण महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से मुक्ति दिलाना तो था ही, आबादी पर लगाम लगाना भी था। 2021 में पुराने कानून में सुधार किए गए। इसमें महिलाओं को बच्चे के जन्म संबंधी अधिकारों में निर्णय लेने की पूरी छूट दी गई। दुष्कर्म, स्वजनों द्वारा यौन शोषण, गर्भनिरोधकों के अप्रभावी रहने जैसी विशेष स्थितियों में 24 हफ्ते तक के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी गई है।
यदि मां बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती तो उसकी मानसिक स्थिति का असर अजन्मे बच्चे पर पड़ता है। अन्य शारीरिक व्याधियों के अलावा न केवल बच्चे मानसिक रूप से अस्वस्थ पैदा हो सकते हैं, बल्कि वे गर्भ में ही मां के रिजेक्शन को महसूस करते हैं। दुष्कर्म की स्थिति में तो यह बहुत भयावह होता है। आखिर अमेरिका में उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया, जबकि वहां मां के मानसिक स्वास्थ्य की बातें सबसे ज्यादा की जाती हैं। डाक्टर मां के अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बार-बार चेताते रहते हैं। उम्मीद है कि इन सभी बातों पर समग्रता से गौर करते हुए अमेरिका का उच्चतम न्यायालय अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा।
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Rani Sahu
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