सम्पादकीय

मीडिया पर हमला

Triveni
17 July 2021 3:43 AM GMT
मीडिया पर हमला
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अफगानिस्तान में भारतीय फोटो पत्रकार की हत्या जितनी दुखद है,

अफगानिस्तान में भारतीय फोटो पत्रकार की हत्या जितनी दुखद है, उतनी ही चिंताजनक भी। दानिश सिद्दीकी की हत्या ने अफगानिस्तान में पूरे मीडिया को गंभीर चिंता में डाल दिया है। गोलीबारी या मुठभेड़ की स्थिति में आम तौर पर किसी पत्रकार को निशाना नहीं बनाया जाता है, पर तालिबान ने जो दुस्साहस किया है, दरअसल वह प्रेस या मीडिया पर हमला है। निर्मम और बर्बर नियम-कायदे वाले तालिबान प्रेस को कतई महत्व नहीं देते हैं, वे अपनी राह में आने वाले हरेक शख्स को पागलपन के साथ रास्ते से हटाते हैं। कंधार में तालिबान ने भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की उस वक्त हत्या कर दी, जब वह अफगान सुरक्षा बलों के साथ वहां के हालात की रिपोर्टिंग कर रहे थे। समाचार एजेंसी रॉयटर्स से जुड़े दानिश पुलित्जर पुरस्कार विजेता थे। गौरतलब है कि 13 जुलाई को भी उन पर हमला हुआ था और वह बाल-बाल बचे थे। हवाई हमले में बचने के बाद दानिश ने खुद ट्वीट करके हमले की जानकारी दी थी और कहा था कि वह भाग्यशाली रहे, बच गए। लेकिन दूसरी बार हुए हमले में वह भाग्यशाली साबित नहीं हुए और उनकी हत्या की खबर से दुनिया स्तब्ध रह गई।

दानिश ने विगत दिनों एक फौजी की कहानी बयान की थी कि कैसे एक जवान अपने साथियों से अलग हो गया था और तालिबान से घंटों तक अकेले ही लड़ा। शायद ऐसी साहसिक रिपोर्टिंग की वजह से ही दानिश तालिबान के निशाने पर आ गए थे। तालिबान को कतई यह पसंद नहीं है कि कोई निष्पक्ष रिपोर्टिंग करे। तालिबान सच को दबाने की जघन्य आपराधिक साजिश के तहत ही पत्रकारों को निशाना बना रहा है। गौरतलब है कि इस वर्ष अभी तक अफगानिस्तान में छह पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जिनमें चार तो महिला पत्रकार हैं। पिछले पूरे साल में छह पत्रकार रिपोर्टिंग करते हुए वहां शहीद हुए थे। आशंका है, इस साल पत्रकारों को अफगानिस्तान में बहुत सावधानी के साथ अपना काम करना होगा। साल 2018 में इस संकटग्रस्त देश में 16 पत्रकारों को जान गंवानी पड़ी थी। आखिर पत्रकारों से क्या दुश्मनी है? पत्रकार किसी भी समाज को बेहतर और पारदर्शी बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं, लेकिन दुनिया में ऐसा क्यों होता है कि पत्रकारों को नापसंद किया जाता है? खासकर संकटग्रस्त इलाकों में तो पत्रकारों को विशेष रूप से सुरक्षा देने की जरूरत है।
कंधार ही नहीं, पूरा अफगानिस्तान लड़ाई का अड्डा बनता जा रहा है। मजबूर होकर भारत ने 10 जुलाई को कंधार में वाणिज्य दूतावास से लगभग 50 राजनयिकों, सहायक कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों को भारतीय वायु सेना की मदद से वापस बुलाया है। जाहिर है, इस तरह से अपने लोगों का बचाव करना सही है, लेकिन तालिबान अब जो कर रहा है, उस बारे में पूरे विश्व को ज्यादा कड़ाई से संज्ञान लेना चाहिए। जो देश तालिबान के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खडे़ हैं, उन्हें भी सभ्यता और मानवीयता के आईने में अपनी छवि देख लेनी चाहिए। जो देश हिंसा या हत्या में भेद करते हैं, जो देश पत्रकारों की राष्ट्रीयता के आधार पर संवदेना का इजहार करते हैं, वे वास्तव में ऐसी हिंसा व हत्या को बढ़ावा ही देते हैं। दानिश सिद्दीकी की हत्या अफगानिस्तान और दुनिया के लिए एक निर्णायक बिंदु होनी चाहिए और अब समय आ गया है कि मानवता के दुश्मनों को पहचानकर ठिकाने लगाया जाए।


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