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- हिजाब पर हल्ला
हिजाब के मुद्दे पर शुरू हुए विवाद ने गंभीर और चिंताजनक स्वरूप अख्तियार कर लिया है। कर्नाटक के उडुपी जिले के एक कालेज ने लड़कियों को हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश देने से इंकार कर दिया था। उसके बाद कालेज ने हिजाबधारी महिला विद्यार्थियों का कालेज के मुख्य द्वार के अंदर आना भी प्रतिबंधित कर दिया। हम सबने वह शर्मनाक नजारा भी देखा जब भगवा साफे और शाल पहने हिंदू धर्म के स्वनियुक्त पहरेदारों ने हिजाब पहने एक अकेली लड़की मुस्कान का रास्ता रोका और आक्रामक ढंग से 'जय श्रीराम' के नारे लगाए। मुस्कान ने इसका जवाब 'अल्लाहू अकबर' से दिया और अपना एसाइनमेंट जमा करने के बाद ही वह कालेज से गई। इसके बाद कई महिला अधिकार संगठनों व अन्यों ने लड़कियों के हिजाब पहनने के अधिकार की जोरदार हिमायत की और दक्षिणपंथी तत्वों को लताड़ लगाई। इस घटनाक्रम से पूरे देश में साम्प्रदायिक तत्वों को बल मिला और विघटनकारी ताकतों को एक नया हथियार। सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने वाली लड़कियों और महिलाओं के संबंध में अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं। आरएसएस के इन्द्रेश कुमार, जो राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के पथप्रदर्शक हैं, ने यह कहकर मुस्कान की निंदा की है कि उसने शांति भंग करने का प्रयास किया था। जो कुछ हो रहा है उससे आक्रामक हिंदुत्ववादी समूह बहुत प्रसन्न है। उन्हें उनका एजेंडा आगे बढ़ाने का एक सुनहरा मौका मिल गया है। यह भी साफ है कि मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने के लिए वे किस हद तक जा सकते हैं। जिन लोगों ने 'सुल्ली डील्स' और 'बुल्ली बाई' जैसे मोबाइल ऐप बनाए थे और जो धर्म-संसदों में कही गई बातों से इत्तेफाक रखते हैं, उनकी भी प्रसन्नता का पारावार नहीं है। वे जानते हैं कि हिजाब मुद्दे से देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि 'नरसंहार विशेषज्ञ' गेगरी स्टेनटन ने चेतावनी दी है कि नरसंहार के मामले में 1 से 10 अंकों के स्केल पर भारत 8वें नंबर पर है। इसके पहले देश पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) लादे गए, जिससे ऐसा वातावरण बना मानो मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। दिल्ली दंगों में मुस्लिम युवकों को निशाना बनाया गया और यही सीएए के खिलाफ हुए शाहीनबाग आंदोलनों के मामले में भी हुआ। हमें कुछ मुद्दों पर सावधान रहने की जरूरत है।