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राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान शोभा यात्रा के अवसर पर हुआ साम्प्रदायिक उपद्रव बताता है कि
Aditya Chopra
राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान शोभा यात्रा के अवसर पर हुआ साम्प्रदायिक उपद्रव बताता है कि सामाजिक सद्भावना के माहौल को बिगाड़ने के लिए कुछ तत्व धार्मिक समारोहों को निशाना बनाते हैं। धार्मिक कट्टरता सिर्फ आपसी मनमुटाव ही पैदा नहीं करती बल्कि इंसानी रिश्तों पर भी खाक डालने का काम करती है। किसी मस्जिद के सामने से शोभा यात्रा के गुजरने पर मुस्लिम नागरिकों को एतराज क्यों हो जबकि उसका उद्देश्य सिर्फ ईश्वर का गुणगान करना ही हो? जाहिर है कि हर मजहब में ईश्वर आराधना के अलग-अलग तरीके होते हैं और भारत में विभिन्न धर्मों के लोग अपनी परंपराओं के अनुसार उस पर चलते हैं। हिन्दू और मुसलमान इसी भारत के दो प्रमुख समुदाय हैं अतः एक-दूसरे की मान्यताओं का सम्मान करना उनका कर्त्तव्य होता है। परन्तु ऐसा क्यों होता है कि केवल मुसलमानों के साथ ही हिन्दू परंपराओं व मान्यताओं का संघर्ष देखने को मिलता है? इसका उत्तर ढूंढ़ने के लिए हमें बहुत दूर जाने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि सिर्फ मजहब की वजह से ही 74 साल पहले भारत के दो टुकड़े हुए थे और इस्लामी मुल्क पाकिस्तान वजूद में आया था । अतः भारत में जब भी हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात होती है तो पाकिस्तान का निर्माण एक बोझ की तरह पूरे विमर्श को दबाने की कोशिश करता है। इस सम्बन्ध में हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि सभी हिन्दू-मुसलमान भारत के नागरिक हैं और उनके संवैधानिक अधिकार भी बराबर हैं मगर एक बुनियादी फर्क यह है कि मुस्लिम नागरिकों को अपने 'व्यावहारिक सांसारिक घरेलू' मामलों में विशेषाधिकार 'मुस्लिम पर्सनल ला' के तहत मिले हुए हैं जिसकी वजह से उनमें स्वयं के शेष समाज से अलग दिखने की भावना बलवती रहती है।
भारत की आजादी के बाद दुर्भाग्य यह रहा कि भारत के विभिन्न मतावलम्बी नागरिकों के लिए 'एक समान नागरिक आचार संहिता' नहीं की गई और मूल रूप से भारतीय होने के बावजूद मुसलमानों को अलग पहचान दे दी गई। हमने जिस धर्मनिरपेक्ष भारत की रचना की उसके लिहाज से यह विपरीत कदम था। बाद में इसका उपयोग राजनीति में किया गया और 'मुस्लिम वोट बैंक' के तौर पर मुसलमानों को 'रोशन खयाल' बनाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत के मुसलमानों को मुल्ला ब्रिगेड ने धार्मिक कट्टरता में धकेल कर इस देश की मिट्टी की सांस्कृतिक परंपराओं से स्वयं को अलग-थलग दिखाने की मजहबी तहरीक को नहीं छोड़ा। मगर इसके साथ यह भी हकीकत है कि ऐसा उत्तर भारत के उस खास इलाके में ही हुआ जिसकी तहजीब को कुछ उलेमाओं ने 'गंगा-जमुनी' तहजीब कहा। लेकिन भारत के ही विभिन्न प्रमुख क्षेत्रीय संस्कृति वाले इलाकों जैसे पंजाब या बंगाल अथवा तमिल या मलयाली व कन्नड़ आदि में मुस्लिम नागरिक अलग पहचान के मजहबी ढकोसले में ज्यादा नहीं पड़े।
हालांकि इन क्षेत्रों में भी पिछले एक दशक के दौरान 'इस्लामी जेहाद' की तहरीक की वजह से परिवर्तन आया है मगर इन क्षेत्रों में इंसानी रिश्ते आज भी मजहब पर भारी पड़ते हुए देखे जा सकते हैं।
इस सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत में मजहब की आजादी व्यक्तिगत आधार पर मिली हुई है परन्तु इस्लाम की मजहबी शिक्षाओं में किसी भी इंसान के व्यक्तिगत अधिकारों या निजी हकों का कोई जिक्र नहीं होता बल्कि सामूहिक या समाजी तौर पर हकों की बात होती है और इस परंपरा को हमने आजाद भारत में 'मुस्लिम पर्सलन ला' को लागू करके चालू रहने दिया जिसकी वजह से मुस्लिम नागरिकों पर मजहबी नेताओं का शिकंजा कसा रहा और उनमें वैज्ञानिक सोच का विस्तार नहीं हो सका। आज की दुनिया बहुत बदल चुकी है और इसे वापस सातवीं सदी में नहीं ले जाया सकता। इसके लिए जरूरी है कि भारत के मुसलमानों में वैज्ञानिक सोच इस तरह विकसित हो कि वे 'वोट बैंक' बनने के बजाय अपनी रोशन खयाली से भारतीय संस्कृति का हिस्सा बनने में गौरव का अनुभव करें और गर्व से कहें कि वे 'हिन्दोस्तानी मुसलमान' हैं। हम जो आज नमाज, अजान, नकाब, हिजाब और हलाल जैसे मुद्दों में उलझे हुए हैं वे हमें पीछे ले जाने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते। कुदरत का नियम आगे जाने का होता है । क्या कभी सोचा गया है कि आज कल रमजान मुबारक का महीना चल रहा है और इसी मुल्क में ऐसे 'हुसैनी ब्राह्मण' भी रहते हैं जो हजरत इमाम हुसैन की याद में अपने अलग ताजिये निकालते हैं। कभी किसी हिन्दू ने तो इस पर आज तक एतराज नहीं उठाया।
भारत की धरती में जन्म लेने वाला हर इंसान इस देश की सांस्कृतिक पहचान से ही विदेशों में जाना जाता है। यही वजह है कि जब भारत के मुसलमान 'हज' करने मक्का जाते हैं तो उन्हें 'हिन्दी' कहा जाता है। यह मुल्क तो हजारों साल से सताये हुए लोगों को पनाह देता रहा है जिनमें शिया और अहमदिया व कादियानी मुसलमान भी शामिल हैं। ऐसी गौरवशाली धरती का पुत्र होने पर हर हिन्दू-मुसलमान को फख्र होना चाहिए। मगर दिल्ली में जो कांड पिछले दिन हुआ है उस पर गंभीरता के साथ सोचना चाहिए कि क्यों हिन्दुओं की भगवान हनुमान शोभा यात्रा पर एक मस्जिद से पत्थरबाजी की गई और तलवारबाजी तक की घटनाएं हुईं तथा गोली तक चली। पुलिस ने 14 दंगाइयों को गिरफ्तार कर लिया है जिससे हकीकत का पता चल सके। यह तो वह देश है जिसके बारे में गुरू नानक देव जी महाराज ने साढे़ पांच सौ साल पहले ही लिख दिया था,
''कोई बोले राम- राम, कोई खुदाए
कोई सेवे गुसैयां, कोई अल्लाए।''
पंजाब केसरी के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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