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- अतीक ‘गांधी’ नहीं हो...
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By: divyahimachal
भारत तो क्या, पूरी दुनिया में भी महात्मा गांधी बेमिसाल, अद्वितीय हैं। उनके नाम पर रूपक और उपमाएं बांधना बेमानी और क्षुद्र मानसिकता है। राष्ट्रपिता गांधी के भी आलोचक हैं, लेकिन वे भी गांधी का पर्याय स्थापित नहीं कर सके हैं। यदि आज ओवैसी सरीखे राजनीतिज्ञ, माफिया अतीक अहमद के लिए, गांधी के रूपक का इस्तेमाल कर रहे हैं, गांधी-गोडसे वाले कालखंड में लौटना चाहते हैं, कुछ हत्यारों को ‘गोडसे की नाज़ायज औलाद’ करार दे रहे हैं, तो यह किसी भी किस्म की सियासत नहीं है। विचारधारा तो इसे माना ही नहीं जा सकता। ओवैसी को सिर्फ यही सियासत आती है, लिहाजा आज भी वह मुसलमानों के स्वीकृत नेता नहीं बन पाए हैं। यह सिर्फ गाली-गलौज है, जो ओवैसी की सियासत रही है। यह भारत के लिए विडंबना, दुर्भाग्य, शर्मिंदगी, हास्यास्पद, मानसिक पागलपन की स्थिति है कि माफिया अतीक को ‘शहीद’ घोषित किया जा रहा है। उसे ‘भारत-रत्न’ से नवाजने की मांग की जा रही है। उसकी कब्र पर ‘तिरंगा’ बिछा कर उसे सेल्यूट किया जा रहा है। उसके ‘अमर रहे’ के नारे, पुरजोर तेवरों के साथ, बुलंद किए गए हैं। यानी माफिया अतीक कई मायनों में आज भी ‘जिंदा’ है। अतीक अदालत द्वारा सजायाफ्ता अपराधी था। वह हत्यारा, अपहरणकर्ता, कब्जेबाज, फिरौतीबाज, क्रूर यातनाएं देने वाला शख्स और 100 से ज्यादा आपराधिक मामलों का आरोपित था।
हमारे यहां ऐसे तत्त्व रहे हैं, जो याकूब मेमन, अफजल गुरु सरीखे आतंकियों को फांसी पर लटकाने के बाद छाती पीटते रहे हैं और नारे चिल्लाते रहे हैं-अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।’ वे आतंकियों को ‘मसीहा’, ‘रॉबिनहुड’ मानते हुए आंसू बहाते रहे हैं। कोई नई बात नहीं है। ऐसे सिरफिरे या तो अतीक के आतंक से अब भी खौफजदा हैं अथवा उसके टुकड़ों पर पलने वाले हैं अथवा मान रहे हैं कि गांधी से तुलना करेंगे, तो मुस्लिम वोट एकजुट हो सकते हैं। अतीक ने किस स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी? उसने तो मुसलमान भाइयों तक को नहीं छोड़ा। उन्हें भी खूब लूटा। कोई तो व्याख्या करे कि अतीक ‘गांधी’ कैसे हो सकता है? ओवैसी तो बेलगाम नेता रहे हैं। वह इसलिए तिलमिला रहे होंगे, क्योंकि 2021 में अतीक की बेग़म शाइस्ता परवीन उनकी पार्टी में शामिल हुई थी। शाइस्ता के जरिए अतीक भी पार्टी में ले लिए गए थे। क्या ओवैसी को उसका इतिहास और यथार्थ नहीं पता था? उसके एवज में यह दलील देना कि भाजपा में सबसे अधिक विधायक और सांसद ‘अपराधी’ हैं, कुतर्क के अलावा कुछ भी नहीं है। चोर दूसरे चोर का उदाहरण देते हुए सवाल नहीं कर सकता कि उसे सजा क्यों नहीं दी गई? बहरहाल ये भी हमारे लोकतंत्र और संविधान के छिद्र हैं कि अतीक सरीखा अपराधी, अमानवीय चेहरा भी सांसद और विधायक बना। इसी आधार पर विश्व के नामी अखबारों और समाचार एजेंसियों ने खबरें और विश्लेषण सार्वजनिक किए हैं कि भारत के हिंदू कट्टरपंथियों ने ‘पूर्व कानून-निर्माता’ की इसलिए हत्या करा दी, क्योंकि वह मुसलमान था। अलकायदा आतंकी संगठन ने तो भारत से बदला लेने की धमकी तक दी है। बहरीन देश की संसद में माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या को लेकर चर्चा की गई। भारत को बार-बार ‘कट्टरपंथी देश’ करार दिया गया। बहरहाल भारत न तो ऐसी धमकियों से खौफ खाता है और न ही ऐसा कीचड़ उछालने से चिंतित होता है। शर्मनाक और घटिया बात यह है कि विरोधी माफिया की मौत का नजला भारत पर गिराना चाह रहे हैं। गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। बेशक हम भी कहते हैं कि अतीक-अशरफ की हत्या इस तरह सरेआम, पुलिस हिरासत में होने के बावजूद, नहीं की जानी चाहिए थी। उससे उप्र के पुलिस-बल और खुफिया तंत्र की स्थिति सवालिया हो गई है। फिर भी अतीक को ‘शहीद’, ‘नायक’, ‘फरिश्ता’ कैसे कहा जा सकता है।
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