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- तीसरे विश्व युद्ध के...
सुधीश पचौरी: कई चैनलों पर कई विशेषज्ञ कहते हैं कि सब दूर से हाथ सेंक रहे हैं। नाटो नेता रूस-यूक्रेन को हथियार देकर लड़ा रहे हैं। रूस पर कड़े प्रतिबंधों की घोषणा करते वक्त बाइडेन का चेहरा बहुत दिन बाद कुछ अधिक खिला नजर आता है!
यूक्रेनी प्रवक्ता जब भी किसी चैनल पर अपना पक्ष रखने आते हैं, भारत को ठोंकते आते हैं और सिवाय एकाध विशेषज्ञ के उनको कोई नहीं सुनाता कि सर जी आपने कब भारत का साथ दिया? भारत द्वारा 'पोखरण' में किए 'परमाणु विस्फोट' पर यूक्रेन ने अमेरिका के प्रतिबंधों का समर्थन किया, भारत के विरुद्ध पाक को टैंक दिए, कश्मीर पर हमेशा पाक का साथ दिया।… यह क्या कम गनीमत है कि हमने आपको नहीं कूटा और तटस्थ लाइन ली।
चैनलों की बहसों में युद्ध विशेषज्ञ बताते हैं कि रूस समझता था कि दो चार दिन में यूक्रेन को रौंद डालेगा, लेकिन ऐसा हुआ। यूक्रेन जम कर टक्कर दे रहा है। रूस युद्ध जीत सकता है, लेकिन यूक्रेन पर कब्जा नहीं कर सकता। यूक्रेन वालों की हिम्मत की सभी रिपोर्टर दाद देते हैं।
एक सुबह खारकीव के एक बंकर में रहने वाला नवीन नामक छात्र खाने की चीजें लेने दुकान तक जाता है कि कुछ देर बाद मारा जाता है। खबर बताती है कि वह बम से मरा, लेकिन उसके साथ का दोस्त कहता है कि वहां कोई बम नहीं गिरा, उसे मारा गया।… लेकिन असल में क्या हुआ, कोई नहीं जानता। जांच की तो छोड़िए। उसकी लाश तक नहीं मिलती। बृहस्पतिवार को दूसरे छात्र को गोली लगती है। विशेषज्ञ इसे 'कोलेटरल नुकसान'कहते हैं!
सच! यूक्रेन बुरी तरह मार खा रहा है। खारकीव पर गिरते गोलों के विस्फोटों, गनमशीनों की 'ठठ ठठ' और मिसाइलों की आवाजें, चौतरफा बजते साइरन, यूक्रेन सैनिकों द्वारा संदिग्धों की धर-पकड़, रिपोर्टरों का डर-डर के दूर से सुरक्षित रिपोर्ट करना, कीव और खारकीव के बंकरों में छिपे हजारों छात्रों के भूखे-प्यासे भयग्रस्त चेहरे, उनके वीडियो और बचाने की गुहारें, उनके निकलने के लिए कुछ ही समय में सरकार की दो दो परामर्श, हजारों छात्रों का ट्रेन के लिए स्टेशन पर इकट्ठा होना, यूक्रेनी सैनिकों द्वारा उनको बंदूकों के कुंदे मारना और ट्रेन में न चढ़ने देना, इस हाहाकार में दूसरा परामर्श कि पैदल ही पास के सुरक्षित ठिकानों तक जल्दी पहुंचें और इस सब पर खारकीव की डूबती शाम की कड़ाके की बर्फानी हवाएं।… फंसे छात्रों की दीनता और हिम्मत देख दिल भर आता है। चैनल ऐसे दृश्यों को 'अनकट' तरीके से हम तक पहुंचाते हैं।
कीव और खारकीव पर बमबारी जारी है। फिर एक साथ पंद्रह शहरों पर रूसी बमबारी की खबर आती है फिर यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र 'झपोर्झिया प्लांट' पर बम गिरने की खबरें आती हैं। चैनलों में कुछ देर सन्नाटा पसर जाता है कि कहीं से कोई दूसरा चेर्नोबिल तो नहीं बन रहा? कहीं विकिरण तो नहीं फैल रहा? विशेषज्ञ चुप हैं, क्योंकि किसी को नहीं मालूम कि स्टेशन को कितनी क्षति पहुंची है!
सरकार 'आपरेशन गंगा' के अंतर्गत अब तक अठारह हजार छात्रों को यूक्रेन से भारत वापस ला चुकी है। उनके साथ मंत्रियों ने 'फोटो-आप' कराए हैं। छात्रों ने 'भारत माता की जय' बोली है। यह शायद विपक्ष के गले नहींं उतरी है और इस तरह छात्रों को निकालने पर श्रेय लूटने की घरेलू लड़ाई शुरू हो जाती है। विपक्ष कहता है, छात्रों की हिफाजत सरकार का कर्तव्य है, अहसान नहीं। अलग्योझा बनने लगता है। कई दल अपने सांसदों को अपने छात्रों को निकालने के लिए भेजने की बात करते दिखते हैं।
सबसे दारुण वीडियो सुमी शहर में फंसे सात सौ छात्रों के हैं। वे कई चैनलों के जरिए भारत सरकार से बार-बार गुहार लगाते दिखते हैं कि हमको बचा लीजिए। न यहां खाना है, न पानी है, हम कभी भी मर सकते हैं!
एक चैनल पर फरीद जकरिया कहते हैं कि सन पैंतालीस के बाद की अमेरिकी केंद्रिक विश्व व्यवस्था की जगह रूस इस युद्ध के जरिए एक 'नई विश्व व्यवस्था' बना रहा है तो दूसरे चैनल पर युवाल नोह हरारी परेशान हैं कि पुतिन नया हिटलर है, अगर इस युद्ध में पुतिन सफल होता है, तो फिर दुनिया में दर्जनों पुतिन होंगे, जो परमाणु बमों से दुनिया को ही नष्ट कर देंगे, इसलिए इस युद्ध को रोका जाना चाहिए!