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फिलहाल क्रूड के दाम घटने के आसार कम
उपचुनावों में मिली टक्कर और आगे पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को देखते हुए पहले केंद्र और फिर कई राज्य सरकारों ने पेट्रोल और डीजल के दाम घटा दिए. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव तो अभी दूर हैं, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडन भी महंगे पेट्रोल-डीजल के कारण लोगों के गुस्से को बखूबी महसूस कर रहे हैं. इसलिए जब तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और रूस (ओपेक प्लस) ने कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की उनकी बात नहीं मानी तो बाइडन ने देश के स्ट्रैटेजिक तेल भंडार से क्रूड निकाल कर सप्लाई बढ़ाने का फैसला किया. तेल उत्पादक देशों पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने चीन, भारत, दक्षिण कोरिया और इंग्लैंड को भी साथ लिया है.
दाम पर असर हुआ भी तो थोड़े समय के लिए
लेकिन अगर आप इससे सप्लाई बढ़ने और दाम में गिरावट की उम्मीद लगा रहे हैं, तो इसकी गुंजाइश बहुत कम है. कारण यह है कि स्ट्रैटेजिक भंडार से जितना क्रूड निकालने की घोषणा हुई है, वह बहुत कम है. अमेरिका के पास 60 करोड़ बैरल क्रूड का स्ट्रैटेजिक भंडार है, जिसमें से 5 करोड़ डॉलर निकालने की घोषणा की है. यह मात्रा है तो ऐतिहासिक, लेकिन वहां रोजाना दो करोड़ बैरल क्रूड की खपत होती है. यानी 5 करोड़ डॉलर से सिर्फ ढाई दिनों की जरूरत पूरी होगी. यही स्थिति भारत की है. यहां 50 लाख बैरल से एक दिन की जरूरत भी पूरी नहीं हो सकेगी. अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा क्रूड आयातक है. यह 80% जरूरत आयात से ही पूरा करता है. इसके अलावा अमेरिका के स्ट्रैटेजिक भंडार से क्रूड दिसंबर के मध्य तक ही बाजार में आएगा. इसलिए इस कदम का कीमतों पर असर हुआ भी तो थोड़े समय के लिए होगा.
ओपेक का जवाब, उत्पादन वृद्धि दर घटा सकता है
दरअसल, स्ट्रैटेजिक भंडार का इस्तेमाल सांकेतिक है. बड़े आयातक ओपेक प्लस को बताना चाहते हैं कि क्रूड के सात साल के ऊंचे दाम से वे परेशान हैं. लेकिन फिलहाल उनके इस दबाव का ओपेक प्लस देशों पर कोई खास असर होता नहीं दिख रहा. जब अमेरिका और भारत समेत कई देशों ने स्ट्रैटेजिक भंडार के इस्तेमाल की बात कही, तब ओपेक प्लस ने चेतावनी दी थी कि वे इसका जवाब देंगे. वे क्या करेंगे यह तो नहीं कहा, लेकिन माना जा रहा है कि वे उत्पादन बढ़ाने की गति और धीमी कर देंगे.
स्ट्रैटेजिक भंडार के इस्तेमाल की घोषणा के बाद सऊदी अरब और रूस दिसंबर में उत्पादन नहीं बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं. हालांकि संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे देश उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में हैं. ओपेक प्लस के कुल उत्पादन में आधा हिस्सा रूस और सऊदी अरब का होता है. रूस क्रूड का सबसे बड़ा उत्पादक और सऊदी सबसे बड़ा निर्यातक है.
डिमांड के हिसाब से सप्लाई नहीं
पिछले साल कोविड-19 के कारण जब तमाम देशों में लॉकडाउन लगा था, तब क्रूड की मांग बहुत गिर गई थी. अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम 20 डॉलर तक गिर गए थे. तब दाम बढ़ाने के लिए ओपेक प्लस ने उत्पादन घटाने का फैसला किया था. महामारी का असर कम होने के बाद विश्व अर्थव्यवस्था तेजी से उबर रही है तो पेट्रोल, डीजल और गैस की डिमांड भी तेजी से बढ़ रही है. लेकिन इस डिमांड के हिसाब से ओपेक प्लस देश सप्लाई नहीं बढ़ा रहे हैं. इसी साल मार्च में भारत के तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सऊदी अरब से उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया था. तब सऊदी ने भारत को स्ट्रैटेजिक भंडार का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी.
ओपेक प्लस ने जुलाई में हर महीने चार लाख बैरल रोजाना उत्पादन बढ़ाने पर सहमति जताई थी. उन्हें यह बढ़ोतरी तब तक करनी थी जब तक उत्पादन पुराने स्तर पर न पहुंच जाए. लेकिन अमेरिका और भारत समेत अनेक देश ज्यादा उत्पादन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं जो फिलहाल होता नहीं दिख रहा.
आगे सरप्लस हुआ तो घट सकते हैं दाम
एक बात यह भी है कि यूरोप के कई देशों में कोविड-19 महामारी फिर से सिर उठा रही है. कई देशों में सरकारें लॉकडाउन लगा रही हैं, भले ही वहां के लोग इसका विरोध कर रहे हैं. अगर लॉकडाउन प्रभावी हुआ तो एक बार फिर क्रूड की मांग कम हो जाएगी और कीमतें भी गिरेंगी. अनेक विश्लेषकों और ओपेक प्लस का भी अपना अनुमान है कि 2022 की शुरुआत में क्रूड सरप्लस में होगा. इसलिए ये देश अभी उत्पादन नहीं बढ़ा रहे हैं. सऊदी अरब की यह भी दलील है कि प्रतिबंध हटने पर ईरान तेजी से उत्पादन बढ़ाएगा, जिससे बाजार में क्रूड सरप्लस हो जाएगा. हालांकि गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि ने कहा कि ईरान के साथ बातचीत बेनतीजा रही.
दाम घटाने के लिए अमेरिका का दबाव
गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में डब्लूटीआई यानी अमेरिकी क्रूड 78 डॉलर और ब्रेंट क्रूड 82 डॉलर प्रति बैरल के भाव था. भारत ब्रेंट क्रूड का ही ज्यादा आयात करता है. बार्कलेज का कहना है कि 2022 में क्रूड की औसत कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल रहेगी. पहले इसने 77 डॉलर की औसत कीमत का अनुमान लगाया था.
अमेरिका दाम घटाने के लिए कई तरह से दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. बाइडन प्रशासन ने सऊदी अरब से कहा है कि अगर कीमत 85 डॉलर से ऊपर गई तो वह वैकल्पिक समाधान पर विचार करेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ने फेडरल ट्रेड कमीशन को इस बात की भी जांच करने के निर्देश दिए हैं कि कहीं तेल और गैस कंपनियों की गैर-कानूनी गतिविधियों से तो दाम नहीं बढ़ रहे. बाइडन प्रशासन का मानना है कि अनेक कंपनियां परमिट होने के बावजूद उत्पादन नहीं कर रही हैं और ऊंचे दाम से जबरदस्त मुनाफा कमा रही हैं. देखना है कि खरीदार देशों को कब तक ऊंची कीमत झेलनी पड़ती है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
सुनील सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
Gulabi
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