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सम्पादकीय
दवाओं की महत्ता को कम से कम चिकित्सकों को तो समझना ही चाहिए
Gulabi Jagat
16 July 2022 5:16 PM GMT
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सम्पादकीय न्यूज
पिछले दिनों की ही बात है जबकि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजधानी के प्रतिष्ठित अस्पताल में निरीक्षण के लिए गए तो यह देखकर हतप्रभ रह गए कि वहां 50 लाख की दवाएं एक्सपायर हो चुकी थीं। अस्पताल प्रबंधन ने न तो उन्हें समय पर वापस किया था और न ही वे मरीजों में वितरित की गई थीं। ऐसा जब एक अस्पताल का हाल था तो अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में हर साल कितनी दवाएं बर्बाद हो जाती हैं। इसका एक कारण यह भी था कि ऐसी भी दवाएं खरीद ली गईं, जिनकी एक्सपायरी में कुछ ही माह बचे थे। उक्त अवधि में उनका उपयोग नहीं हो सका तो वे बेकार हो गईं।
अब सरकार ने इसे रोकने के लिए यह निर्णय लिया है कि दो साल से कम एक्सपायरी वाली दवाओं की खरीद नहीं की जाएगी। वैसे यह निर्णय पहले से ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी अमल में लाया गया तो बड़ी मात्र में दवाओं का मरीजों के बीच उपयोग हो सकेगा। दवाओं की महत्ता को कम से कम चिकित्सकों को तो समझना ही चाहिए। इनकी खरीद में भी संतुलन बनाने की जरूरत है। दवाओं के एक्सपायर होने का अर्थ है कि उनका उपयोग नहीं किया जा सका। इसके लिए मरीजों की कमी का बहाना भी नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि हर सरकारी अस्पताल की ओपीडी में ही प्रतिदिन अपेक्षा से अधिक मरीज पहुंचते हैं।
सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि किस तरह की दवाओं के आर्डर दिए जा रहे हैं। कहीं इसके पीछे फार्मा कंपनियों का खेल तो नहीं चल रहा। ऐसी दवाएं जिनका उपयोग कम होता है, उनकी खरीद की मात्र भी मरीजों का औसत निकालकर उसी मात्र में हो। इससे सरकारी धन के अपव्यय में भी कमी आएगी।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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Gulabi Jagat
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