सम्पादकीय

आकलन: इस साल ने जगाईं नए साल की उम्मीदें

Neha Dani
27 Dec 2021 1:54 AM GMT
आकलन: इस साल ने जगाईं नए साल की उम्मीदें
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वर्ष 2021 के इतने घटनाबहुल होने के कारण आने वाले वर्ष 2022 के प्रति स्वाभाविक ही एक उत्सुकता है।

एक साल में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतनी बड़ी घटनाएं कम ही होती हैं, जैसी कि इस साल हुईं। छह जनवरी, 2021 को वाशिंगटन के कैपिटल में भीड़ ने दरवाजे तोड़ते हुए घुसकर जिस तरह कोहराम मचाया, जिस तरह निवार्चित सदस्यगणों को हमलावरों से बचते और उपराष्ट्रपति को सुरक्षा के लिए बेसमेंट में छिपते देखा गया था, उन सब से पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी।

ट्रंप अमेरिका के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति हुए, जिन्हें दो बार महाभियोग का सामना करना पड़ा। राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप तो विदा हो चुके हैं, पर अमेरिकी समाज में ट्रंपवाद आज प्रभावी है और नए साल में वह कैसा रूप लेता है, नहीं कह सकते। कोविड-19 से इस साल दुनिया भर में 53 लाख से अधिक मौतें हुईं। जबकि विगत अप्रैल-मई में इसकी दूसरी लहर से भारत में लगभग दो लाख मौतें हुईं। भारत में महामारी की वह त्रासदी अभूतपूर्व थी। श्मशानों में चिताओं की उठती लपटें, ऑक्सीजन के अभाव से जूझते अस्पताल, एक बेड पाने के इंतजार में अस्पताल के कॉरिडोर में अंतिम सांस लेते मरीज, गुरुद्वारों में ऑक्सीजन हासिल करते बीमार लोग, श्रद्धांजलियों से भरे हुए अखबारों के कुछ पृष्ठ, घर लौटने की कोशिश करते हजारों प्रवासी मजदूर और बसों में एक सीट पाने की कोशिश में विफल होने पर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते लोगों के विवरणों ने बताया कि महामारी ने किस तरह भारत को उसके घुटनों पर ला दिया था। लेकिन भारत ने अपनी क्षमता दिखाई।
साल के अंत तक 141 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज लोगों को लगाई गई। हालांकि वैक्सीन की दोनों खुराक लेने वाले अभी आबादी का 61 फीसदी ही हैं। ऐसे ही, विगत अगस्त में अफगानिस्तान के हालात ने पूरी दुनिया को हिला दिया। तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा जमा लेने से सैकड़ों भयभीत अफगान नागरिक न केवल देश से भागने के लिए हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे, बल्कि उनमें से अनेक लोग अमेरिकी सैन्य विमान में लटकने की कोशिश कर रहे थे।
बाहरी शासकों के डर से देश छोड़कर भागने के वृत्तांत इतिहास में बहुत मिल जाएंगे, लेकिन अफगानिस्तान के लोग तो अपने ही शासकों के डर से देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे थे। उनके भय ने अफगानिस्तान में वर्ष 2000 में तालिबान के बर्बर शासन की याद दिला दी थी। इस साल अमेरिकी सेना को, जिसे दुनिया में सबसे ताकतवर माना जाता है, वियतनाम युद्ध के बाद सबसे करारा झटका लगा। वह तालिबान से हार गई। तालिबान के खिलाफ 20 साल चले युद्ध में अमेरिका के 10 लाख डॉलर खर्च हुए और अपने करीब 3,500 सैनिकों की जान गंवानी पड़ी। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि काबुल में उन्हीं तालिबान की सरकार गठन में अमेरिका की भूमिका रही! तालिबान के मंत्रिमंडल में कई आतंकवादी हैं, जिनमें से दो पर एफबीआई ने 50 लाख और एक करोड़ का इनाम रखा था।
अफगानिस्तान में हार के बाद अमेरिका की सर्वोच्चता स्थापित करने को आतुर बाइडन ने लोकतंत्र पर पहली बैठक (वर्चुअल) का आयोजन किया, जिसमें सौ देशों के नेता थे। लेकिन अमेरिका के दर्जन भर रणनीतिक साझेदारों को ही लोकतंत्र की कोई चिंता न होने, अफगान नागरिकों को तालिबान की दया पर छोड़ देने और बांग्लादेश की अनदेखी कर आतंकवाद के समर्थक पाकिस्तान को बैठक में आमंत्रित करने के बाइडन के फैसले से साफ है कि उस बैठक का आयोजन एक मजाक ही था। भारत ने अभी तक इतना लंबा किसान आंदोलन नहीं देखा था, जितना लंबा इस साल दिखा। कड़ी धूप, ठिठुरती ठंड और मूसलाधार बारिश के बीच किसान डटे रहे। उन पर राष्ट्र-विरोधी और खालिस्तानी होने के आरोप लगे। आंदोलन के दौरान करीब 700 किसानों की मौत हुई, तो कुछ एसयूवी से कुचलकर मारे गए। लेकिन आखिरकार वे सफल हुए और अब तक के सबसे मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने रुख से पीछे हटना पड़ा और किसानों की मांगें माननी पड़ीं।
कृषि कानून चाहे रणनीति के तहत वापस लिया गया हो या विधानसभा चुनावों को देखते हुए मजबूरी में-इसने नीति नियंताओं को सबक तो दिए ही हैं। अगर कृषि कानून पहले ही वापस ले लिए जाते, तो शायद इतने किसानों की जान न जाती, विगत जनवरी में लाल किले में जो दृश्य देखे गए, वे न देखे जाते और न ही सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन पर इतना विभाजन दिखता। अगर राजनीति की बात करें, तो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में 'खेला होबे' का नारा लगाते हुए व्हीलचेयर पर बैठीं ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अजेय होने का मिथक ध्वस्त कर इस साल न सिर्फ शानदार जीत अर्जित की, बल्कि विपक्षी खेमे में भी अर्थपूर्ण संदेश दिया।
टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन थ्रो की स्पर्धा में नीरज चोपड़ा को मिले स्वर्ण पदक, जो एथलीट में भारत को मिला पहला स्वर्ण पदक है, और भारतीय हॉकी टीम को 41 साल बाद मिले कांस्य पदक से हम देशवासियों को खुश होने का एक अवसर मिला। लेकिन सवाल यह है कि 1.3 अरब का देश ओलंपिक में 13 स्वर्ण पदक हासिल क्यों नहीं कर सकता। ग्राम प्रधान के पद पर एक तिहाई महिला आरक्षण का फैसला स्वागतयोग्य है, इसके अलावा भी केंद्रीय कैबिनेट, संसद, सिविल सेवा, न्यायपालिका, शिक्षण क्षेत्र, रक्षा बल और मनोरंजन उद्योग में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी सुखद है। मगर आजादी के 75 साल बाद भी कन्या भ्रूण हत्या, ऑनर किलिंग, दहेज हत्या और सामूहिक बलात्कार के बढ़ते मामले और खाप पंचायतों के फरमान निराश करते हैं।
ग्लासगो स्थित पर्यावरण शिखर बैठक में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की अनेक घोषणाएं हुईं, वहां प्रधानमंत्री मोदी ने नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में भारत की प्रतिबद्धता के बारे में बताने के अलावा तीन शपथ भी ली। लेकिन तकनीकी और फंड के हस्तांतरण के बिना ठोस ईंधन से गैर ठोस ईंधन की ओर मुड़ना आसान नहीं होगा। चीन के साथ गतिरोध मामले में 17 दौर की वार्ता और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात के बाद भी समाधान निकलना अभी शेष है। पाकिस्तान और नेपाल के साथ हमारे रिश्ते कोई खास नहीं रहे, लेकिन बांग्लादेश की आजादी की स्वर्ण जयंती के मौके पर दोनों देशों के बीच गर्मजोशी दिखी। वर्ष 2021 के इतने घटनाबहुल होने के कारण आने वाले वर्ष 2022 के प्रति स्वाभाविक ही एक उत्सुकता है।
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