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नया साल शुरू हो रहा है, बहुत बधाई और शुभकामनाएं
विजय त्रिवेदी.
नया साल (New Year) शुरू हो रहा है, बहुत बधाई और शुभकामनाएं. इस साल की शुरुआत में यानि फरवरी-मार्च में पांच राज्यों के चुनाव होने हैं, इनमें सबसे ज़्यादा सीटों वाला उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) भी शामिल है. चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि कोरोना (Corona) बढ़े तो बढ़े, चुनाव हो कर रहेंगे. कोरोना के बढ़ने की आशंका के बीच चुनाव कराने के फ़ैसले के लिए सिर्फ़ चुनाव आयोग (Election Commission) पर दोष मढ़ने की ज़रूरत नहीं हैं, क्योंकि आयोग के मुताबिक मोटे तौर पर सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव नहीं टाले जाने पर जोर दिया है. भले ही राजनीतिक दलों ने रैलियां कम करने या वर्चुअल रैलियां करने की बात की है, लेकिन जब चुनाव होंगे तो फिर रैलियां भी होगीं ही. कहावत है ना कि "ओखली में सिर दिया, फिर मूसल से क्या डरना". मेरा डर सिर्फ़ कोरोना नहीं है, कोरोना से तो हम लड़ाई जीत सकते हैं, मुझे घबराहट होती है चुनावों के बहाने धर्म पर होते युद्ध की, यह धर्म युद्ध नहीं, धर्म के नाम पर होने वाला छद्म युद्ध है.
इस छद्म युद्ध की सुगबुगाहट तो चुनावों के आने से पहले ही हो चुकी है, जब सभी राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक केंचुली से विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई जैसे अहम मुद्दों को फेंक चुके हैं. अब सिर्फ़ जाति और धर्म बचा है यानि अब वोटर और उसकी परेशानियां मुद्दा नहीं होंगी. अब राजनीतिक दल आप को याद दिलाएंगें कि आपका धर्म क्या है, आपका मजहब क्या है, आपकी जाति क्या है, क्या आप सवर्ण हैं और दूसरा राजनीतिक दल आपको नज़रअंदाज़ कर रहा है या आप निचली जाति से हैं, इसलिए अगड़ी जाति वाले नेता आपकी परवाह नहीं करते या फिर आप अल्पसंख्यक हैं, इसलिए आपको एकजुट होना है, एकमुश्त वोट देना है, इसमें अहम यह है कि आपको फला-फला राजनीतिक दल को हराना है, भले ही आप किसी को भी जिताएं. आपको याद दिलाया जाएगा कि आपका मजहब खतरे में है, आपकी जाति को आरक्षण का फायदा अब तक नहीं मिला है, आपके आगे बढ़ने में आपका अगड़ी जाति का होना बाधक है. यह अफीम हमें अच्छी लगती है, हमें आराम भी मिलता है और सुकून का एक नशा चढ़ने लगता है.
90 के दशक से बीजेपी की हिन्दुत्व वाली सियासत
साल 1990 में जब बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथयात्रा निकाली तो विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंहल ने कहा कि यह रथयात्रा सिर्फ़ मंदिर निर्माण के लिए नहीं है, बल्कि इसका मकसद हिन्दू एकता है यानि बीजेपी को लगता था कि यदि हिन्दू एकता की बात ज़ोर शोर से नहीं हुई तो फिर वोटर जाति और दूसरे मुद्दों के आधार पर बंट जाएगा, उसका नुकसान हुआ भी और 1993 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी सरकार नहीं बना पाई, जबकि उसने धर्म पर जोर दिया था, हिन्दू धर्म के सपने को पूरा करने का वादा किया था.
सरयू में अब तक काफी पानी बह चुका है और अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद भव्य राम मंदिर निर्माण का काम किया जा रहा है. इसके साथ अयोध्या का विकास करने की योजना है. शहर का स्टेशन भी मंदिर के मॉडल पर बनाया जा रहा है, राम राज्य की बातें होने लगी हैं, लेकिन बात यहां नहीं रुकी. अयोध्या के बाद बीजेपी सरकार ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का काम भी पूरा कर लिया, उसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने कर दिया. अब बीजेपी के मुकुट में अयोध्या और वाराणसी के दो नगीने जड़ गए हैं.
"इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है. यहां अंग्रेज़ , औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं. अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं". वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया कि मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरवाया था. मोदी सरकार के आने के बाद और यूपी से प्रतिनिधित्व करने से उनका विशेष फोकस उत्तरप्रदेश पर हैं. अयोध्या से लेकर काशी तक मंदिर निर्माण और धार्मिक स्थानों के पुनर्द्धार और पुनर्निर्माण पर जोर दिया जा रहा है.
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम शुरू हो गया है
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से अगस्त 2020 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम तेजी से चल रहा है और वहां ना केवल मंदिर बल्कि पूरे शहर को नए तरीके से विकसित करने की योजना आगे बढ़ रही है. जब लोग यह समझ रहे थे कि बीजेपी के लिए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण उसका राजनीतिक एजेंडा है और कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि अब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद ये यह मुद्दा खत्म हो जाएगा, तब अयोध्या से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर तक का काम पूरा हो गया. विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष आलोक कुमार ने मुझे कहा कि अभी परिषद का फोकस सिर्फ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर है, मथुरा हमारे एजेंडा पर नहीं है, लेकिन उत्तरप्रदेश में कुछ लोग अपनी राजनीतिक ज़रूरतों के लिए बार-बार मथुरा का ज़िक्र करने लगे हैं. यह मसला सिर्फ बीजेपी का नहीं है.
उत्तरप्रदेश में नई राजनीतिक एंट्री लेने वाले असदुद्दीन ओवैसी जब प्रधानमंत्री से यह सवाल करते हैं कि क्या उनकी पार्टी की यूपी सरकार भड़काऊ भाषण देने वालों के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई करेगी, वहां तक तो ठीक है, लेकिन उनका गुस्सा बढ़ता जाता है और आरोप है कि वो धमकी देते हैं अपने भाषण में कि "मोदी-योगी के जाने के बाद तुम्हें कौन बचाएगा", तो क्या इस स्तर पर राजनीति पहुंच जाएगी. हरिद्वार में कथित धर्म संसद में हुए विवादास्पद बयान के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं होना नेतृत्व की कमजोरी नहीं, राजनीति की मजबूरी है.
औवेसी को बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्विटर पर जवाब दिया, 'किसे धमका रहे हो मियां, याद रखना जब-जब इस वीर भूमि पर कोई औरंगजेब और बाबर आएगा, तब-तब इस मातृभूमि की कोख से कोई ना कोई वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप और मोदी-योगी बन कर खड़ा हो जाएगा'. इसके साथ ही यूपी में बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने कहा, 'मठ-मंदिर कौन जाएगा, यह सोचने में समय व्यर्थ न करें… यदि कल को कागज़ मांग लिए तो आप कहां जाएंगे, इसकी चिंता करिए'.
कांग्रेस और आप भी पीछे नहीं
अब यूपी से ही बीजेपी के सांसद सुब्रत पाठक ने कहा है कि 'जिनकी मानसिकता भारत के ख़िलाफ़ है और जो लोग भारत में शरिया का सपना देख रहे हैं, ऐसे लोगों का वोट बीजेपी को नहीं चाहिए और ना ही वो लोग बीजेपी को वोट देने वाले हैं'. इससे पहले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि '2017 से पहले उत्तरप्रदेश में जालीदार टोपी वाले लुंगी छाप गुंडे घूमते थे'. उससे पहले मौर्य ने मथुरा की तैयारी का बयान दिया था. योगी सरकार के मंत्री रघुराज सिंह ने कहा था कि मदरसों से आतंकी निकलते हैं और अगर भगवान ने उन्हें मौका दिया तो वो सारे मदरसों को बंद कर देंगे. हालांकि दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री रहे सलमान खुर्शीद आरएसएस या दूसरे संगठनों की तुलना बोकोहरम या आईएसआईएस से करते हैं या समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान हर दिन हिन्दुओं के ख़िलाफ़ बयान देते रहते हैं.
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की कमान संभालने वाली महासचिव प्रियंका गांधी ने यूं तो अपना चुनावी नारा- 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं', दिया है, लेकिन उनका फोकस भी मंदिरों पर ज़्यादा है और वो शायद ही कोई मौका छोड़ती हों जब किसी दौरे पर या किसी शहर में वहां मंदिर नहीं जाती हों. गंगा में स्नान, प्रयागराज से वाराणसी तक की नाव यात्रा और भी ऐसे कार्यक्रम हैं जो धर्म से जुडे हुए हैं . प्रियंका गांधी वाड्रा बार-बार यह साबित करना चाहती हैं कि वो ही असली हिन्दू हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो खुद को असली हिंदू बताते हुए हिंदू और हिंदुत्ववादी की नई बहस शुरू कर दी है. राहुल गांधी ने ही पिछली बार कर्नाटक और गुजरात विधानसभा चुनावों के वक्त बताया था कि वे जनेऊधारी ब्राह्मण हैं और उनका गोत्र क्या है.
आम आदमी पार्टी भले ही यूपी के चुनावी रण में बड़ी खिलाड़ी नहीं हो, लेकिन उनकी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अयोध्या यात्रा कर आए हैं. मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो अब बुजुर्गों को अयोध्या की तीर्थयात्रा करवा रहे हैं. सार्वजनिक तौर पर दीवाली पूजा और हनुमान चालीसा का पाठ कर चुके हैं.
चुनावों में खुल कर होता है धर्म का इस्तेमाल
इसके साथ ही अब प्रदेश में कमोबेश हर मौके पर या जनसभा में मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र होने लगा है, कुछ लोगों को जिन्नावादी कहा जाने लगा है, जिन्नावादी यानि पाकिस्तानी यानि देश विरोधी. वैसे इस जिन्ना मुद्दे की शुरुआत समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने की थी. यादव ने एक कार्यक्रम में जिन्ना और सरदार पटेल की तुलना कर दी, तब से यह मुद्दा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा. नोएडा में ज़ेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 'यहां के किसानों ने कभी गन्ने की मिठास को आगे बढ़ाने का प्रयास किया था, लेकिन अब गन्ने की मिठास को कुछ लोगों ने कड़वाहट में बदल दिया है और दंगों की श्रृंखला शुरू की है. आज देश में एक नया द्वंद्व बना है कि गन्ने की मिठास को एक नई उड़ान मिलेगी या जिन्ना के अनुयायियों से दंगा कराने की बात होगी'.
ऐसा नहीं है कि चुनावी राजनीति में धर्म का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है. हाल में ही पश्चिम बंगाल के चुनावों में भी खुलेआम राजनीतिक दलों और नेताओं ने धर्म का इस्तेमाल किया. अपने भाषणों में एक दूसरे के धर्म को निशाना बनाया, लेकिन चुनाव आयोग ने शायद ही कोई कार्रवाई की हो. यह अलग बात है कि राजनीतिक दल धर्म के राजनीति में इस्तेमाल का विरोध करते दिखाई देते हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा इस्तेमाल धर्म का ही किया जाता है चाहे वो धर्म को गाली देकर हो या जयकार करके.
चुनावों का औपचारिक ऐलान होना अभी बाकी है. यह तो सिर्फ ट्रैलर है, फिल्म अभी बाकी है मेरे दोस्त. बीता साल कोरोना और तमाम तकलीफों की यादों के जख्म छोड़ कर जा रहा है. राजनीतिक दलों से उम्मीद करनी चाहिए कि वो नए साल में एक नई राजनीति की शुरुआत करेंगें, जिसमें राजधर्म का पालन हो, राज के लिए धर्म का उपयोग नहीं.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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