सम्पादकीय

विधानसभा चुनाव 2022 : नतीजे बताते हैं सशक्त विपक्ष के बिना अजेय है भारतीय जनता पार्टी

Gulabi
12 March 2022 5:03 AM GMT
विधानसभा चुनाव 2022 : नतीजे बताते हैं सशक्त विपक्ष के बिना अजेय है भारतीय जनता पार्टी
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विधानसभा चुनाव 2022
हाल ही में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में बीजेपी (BJP) ने चार- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर, में अपनी सत्ता बरकरार रखी है. इसी के साथ कांग्रेस (Congress Party) के लिए भी जनादेश स्पष्ट है: उसे अपने वर्तमान नेतृत्व से छुटकारा पाना ही होगा. ऐसा लगता है कि कांग्रेस, जो कई वर्षों से राजनीति में ढलान के रास्ते पर है, अपने राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवित करने की तब तक उम्मीद नहीं कर सकती, जब तक कि पार्टी की मौजूदा व्यवस्था को बदला नहीं जाता.
2022 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2022) में जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से केवल पंजाब में ही कांग्रेस सत्ता में थी. लेकिन उसने चुनाव से ठीक पहले अपना मुख्यमंत्री बदलकर न सिर्फ पार्टी में अंदरूनी कलह पैदा कर दी बल्कि इलेक्शन में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की जीत को भी आसान कर दिया.
कांग्रेस पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया
जहां जहां भी चुनाव हुए हैं, कांग्रेस पार्टी का ग्राफ गिरता ही नजर आया है. पार्टी को गोवा में मजबूत स्थिति की उम्मीद थी लेकिन नतीजों में उसकी सीटें 17 से गिरकर 9 हो गईं. उत्तर प्रदेश में, प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के नेतृत्व में, पार्टी के वोट शेयर में दो-तिहाई की गिरावट आई और 403 सदस्यीय विधानसभा में पहले की 7 सीटों की तुलना में इस बार वह दो पर ही सिमट गई.
इसी तरह मणिपुर (Manipuar Assembly Elections 2022) में भी कांग्रेस का प्रदर्शन दयनीय रहा. राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से उसे महज चार पर ही जीत हासिल हुई है. जबकि महज पांच साल पहले वह वहां 28 सीटें जीतकर अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उसका वोट शेयर 35 से गिरकर 16 प्रतिशत पर आ गया और राज्य में वह चौथे स्थान पर रही है. यहां तक कि राज्य की राजनीति में नवागंतुक जेडीयू भी लगभग 11 प्रतिशत वोट शेयर और छह सीटों पर जीत के साथ आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.
मणिपुर में जद (यू) का प्रवेश और पंजाब में आप की प्रचंड जीत से स्पष्ट हो जाता है कि मौजूदा समय में कांग्रेस किस कदर लड़खड़ाई हुई है. बीजेपी की जीत के ये मायने नहीं हैं कि मतदाता बदलाव नहीं चाहते। जहां भी वे सत्ता की फील्ड में मौजूदा खिलाड़ियों से नाखुश दिखे, वहां उन्होंने बेहिचक एक विश्वसनीय विकल्प को चुना जो सुशासन देने में खुद को साबित कर चुका था. हालांकि जेडीयू अभी एकमात्र राज्य – लालू के बिहार- में सत्ता में है, बावजूद इसके पार्टी ने सुशासन लाने की प्रतिष्ठा विकसित की है. वहीं आम आदमी पार्टी ने गोवा में दो सीटें जीतने के साथ करीब 7 प्रतिशत वोट भी पाए हैं. ये दिखाता है कि लोगों के लिए सुशासन कितना मायने रखता है.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी की सरकार
इसी बीच बीजेपी के पास इन नतीजों से खुश होने की हर वजह है. कोविड 19 जैसी महामारी की एक लंबी और दर्दनाक छाया, आर्थिक मंदी और सत्ता-विरोधी लहर सहित कई बाधाओं को पार करते हुए, पार्टी ने उन सभी चार राज्यों में सत्ता बरकरार रखी है जहां पहले से उसकी सरकार थी. ये राज्य हैं: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर. हालांकि, यूपी में सत्ता में वापसी पर खुशी व उत्साह के बावजूद, इस कड़वे सच को नकारा नहीं जा सकता कि सपा ने इसके गढ़ में सेंध लगाई है. 2017 में इसकी सीटें 312 थीं जो अब घटकर 255 हो गई हैं. वहीं समाजवादी पार्टी यूपी में पहले की 47 के बदले 111 सीटों पर विजय पाकर एक शक्तिशाली विपक्ष के रूप में उभरी है.
हालांकि, बीजेपी ने अन्य तीन राज्यों में अपने प्रभावशाली लाभ से इसकी भरपाई की है. उत्तराखंड (Uttarakhand Assembly Elections 2022) में, इसने अपनी सीटों की संख्या 26 से 47, गोवा में 13 से 16 और मणिपुर में 21 से 29 तक कर विधानसभा 2022 के चुनावों में अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया है. हम मतदाताओं को अपने वोट नकद और शराब के लिए बेचने, अपनी बिरादरी के लिए आंख बंद करके मतदान करने के लिए या उन सभी बेवकूफी भरे कामों को करने के लिए दोषी ठहरा सकते हैं जो उन्हें संसदीय लोकतंत्र में नहीं करने चाहिए. लेकिन जैसा कि 1977 के चुनाव परिणामों ने दिखाया था, कठिन विकल्पों के बावजूद, हमारे गरीब और अनपढ़ मतदाता भी अंत में लगभग हमेशा स्मार्ट विकल्प चुनते हैं। कहा जा सकता है कि अपने लिए अच्छा-बुरा पहचानने की उनके पास एक विलक्षण प्रवृत्ति होती है.
उत्तर प्रदेश में, उनका बीजेपी को वापस लेकर आना बताता है कि उन्होंने प्रदेश में कानून के शासन के लिए मतदान किया है. कानून-व्यवस्था बनाए रखना किसी भी सरकार का मूल कर्तव्य होता है. अराजकता की स्थिति में विकास और कल्याणकारी उपाय गौण कारक बन जाते हैं. यूपी में लोग समाजवादी पार्टी को अराजकता से जोड़ते हैं और अखिलेश यादव को कहीं न कहीं इस धारणा का भी खामियाजा भुगतना पड़ा है.
योगी को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं लोग
प्रियंका गांधी हों या न हों, राज्य में कांग्रेस कई दशकों से अप्रासंगिक ही रही है. राज्य से मायावती की बसपा (BSP) का लगभग सफाया हो गया है: पिछली बार 16 के मुकाबले इस बार पार्टी को महज एक सीट मिली है जो शायद एक विपक्षी दल के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहने की कीमत है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) के नतीजों का एक दिलचस्प परिणाम योगी आदित्यनाथ का बीजेपी के एक ऊंचे कद और मतदाताओं को प्रभावितत करने वाले नेता के रूप में उभरना भी है. वह तीन दशकों में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुने जाने वाले उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने हैं और इस उपलब्धि को किसी भी तरीके से कम नहीं आंका जा सकता है. बीजेपी को करीब से देखने वाले उनको मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं. आरएसएस समय रहते एक उत्तराधिकार की योजना बनाने में विश्वास करता है और जो बीजेपी सहित इसके नेतृत्व वाले सभी फ्रंट संगठनों में लीडरशिप की दूसरी लाइन तैयार रखता है.
बात उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों की करें तो यहां बीजेपी का प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस आना बहुत हद तक कांग्रेस आलाकमान द्वारा राज्य के मामलों को विनाशकारी तरीके से संभालने का परिणाम है. यह उन राज्यों में से एक था जहां पार्टी से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी. इसकी एक वजह ये थी कि 2000 में राज्य के गठन के बाद से, उत्तराखंड ने किसी भी पार्टी को दो बार लगातार सत्ता में आने का मौका नहीं दिया है.
लेकिन जिस तरह कांग्रेस आलाकमान ने विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर वहां पार्टी में गुटबाजी को संभाला, उससे मुख्य विपक्षी दल के समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा गए. मणिपुर में बीजेपी की वापसी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. इसका मतलब है कि वामपंथ का आखिरी गढ़ त्रिपुरा समेत लगभग पूरा पूर्वोत्तर अब भगवा रंग में रंग चुका है. हो गया है. आरएसएस ने 60 के दशक की शुरुआत में देश के इस हिस्से में जिस मकसद से कदम रखा था, वो अब करीब 60 साल बाद लाभांश का भुगतान कर रहा है.
गोवा से कांग्रेस को सीख लेनी चाहिए
गोवा विधानसभा 2022 (Goa Assembly Elections 2022) के परिणामों की पूर्व संध्या पर माहौल थोड़ा तनावपूर्ण था क्योंकि राज्य में किसी भी एक्जिट पोल ने किसी भी पार्टी के लिए स्पष्ट जनादेश की भविष्यवाणी नहीं की थी. ऐसे में राजनीतिक दलों ने अपने संकटमोचनों, मनीबैग और मास्टर वार्ताकारों को सूरज-समुद्र-रेत के इस राज्य में तमाम जोड़तोड़ के लिए भेज दिया था. लेकिन जैसे-जैसे नतीजे आने शुरू हुए, यह स्पष्ट हो गया कि बीजेपी आखिरकार यहां भी अपनी सत्ता बरकरार रखेगी. इसी के साथ बीजेपी ने त्रिशंकु विधानसभा के परिदृश्य में किंगमेकर की भूमिका निभाने के छोटे दलों के सपने को भी चकनाचूर कर दिया.
गोवा में कांग्रेस के सीखने के लिए एक बड़ा सबक भी है, जैसा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने गोवा के परिणामों का विश्लेषण करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से बताया. राज्य में बीजेपी विरोधी वोट कांग्रेस, राकांपा, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, गोवा फॉरवर्ड पार्टी और दो नवागंतुकों – अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और आप के बीच विभाजित हो गए. अगर इन पार्टियों को मिले वोट शेयर की गणना की जाए तो ये 40 प्रतिशत से अधिक आती है. यह दर्शाता है कि कैसे एक एकीकृत विपक्ष बीजेपी के खिलाफ ज्वार को बदल सकता था, जिसे हालिया चुनावों में 33 प्रतिशत से थोड़ा अधिक वोट प्रतिशत प्राप्त हुआ है.
हालिया विधानसभा चुनाव परिणाम बताते हैं कि एक विश्वसनीय विपक्ष की अनुपस्थिति में, बीजेपी उतनी ही अजेय है जितनी 2014 में पहली बार सत्ता में अपने दम पर आने पर थी. चूंकि राजनीति के अखाड़े में सभी पार्टियां एक-दूसरे की कार्बन कॉपी की तरह दिखती हैं तो ऐसे में यह तथ्य किसी के लिए आश्चर्य की बात भी नहीं है. याद रखिए, एक समय में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी बीजेपी गठबंधन का हिस्सा थे! तो इससे क्या हम ये समझ लें कि विचारधारा आखिरकार मर चुकी है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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