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विधानसभा चुनाव परिणाम 2022
राजेश बादल।
पांच प्रदेशों के विधानसभा नतीजों से करीब करीब तय हो गया है कि अभी भी भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने की मुद्रा में विपक्ष नहीं है। बीजेपी चक्रवर्ती रूप में उभर कर सामने आई है।
बंगाल में करारी मात से टूटा उसका मनोबल अब राहत की सांस ले रहा है और उसका असर अगले आम चुनाव से पहले होने जा रहे कुछ और राज्यों के चुनाव में दिखाई देगा। पूरब, पश्चिम और उत्तर में पार्टी ने अपना परचम लहराया है और राजनीतिक पंडितों को नए सिरे से परिणाम समझने का अवसर दिया है। दूसरी ओर प्रतिपक्ष के लिए यह अपने भीतर झांकने की घड़ी है और उसे समझना होगा कि केवल नकारात्मक मतों के सहारे चुनाव वैतरणी पार नहीं हो सकती।
भाजपा की रणनीति और चुनाव परिणाम
पहले विजेता की बात। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी चुनाव से पहले चार प्रदेशों में अपनी सरकार चला रही थी, इसलिए उसके सामने एक तो अपनी सरकारें बचाने की चुनौती थी और दूसरा केंद्र तथा राज्य सरकारों के पांच साल के कामकाज से उपजे नकारात्मक मतों का असर न्यून करना था। दोनों स्थितियों का मुक़ाबला करने के लिए उसने सिर्फ़ प्रधानमंत्री के चेहरे को ही सामने रखा। याने डबल इंजिन के स्थान पर सिर्फ एक इंजन की ताक़त का जोखिम उसने उठाया। यह कारगर साबित हुआ, अन्यथा उत्तर प्रदेश में तो प्रदेश सरकार से राज्य का मतदाता प्रसन्न नहीं था।
इधर, पंजाब की बात करें तो यहां बीजेपी की योजना कामयाब रही। इस सीमान्त प्रदेश में वह अपनी सरकार तो बना नहीं सकती थी, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह से तालमेल और आम आदमी पार्टी को परदे के पीछे से उसका समर्थन काम आया। उसका मक़सद राष्ट्रीय स्तर पर उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कमज़ोर करना था और वह उसने कर दिया। बाक़ी तीन प्रदेशों में सरकार बचाए रखने के लिए विपक्ष कोई मज़बूत दावेदारी नहीं रख सका था। सिवाय उत्तराखण्ड के जहां कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में ठीक ठाक सुधार किया है।
भाजपा की इस जीत से भारतीय प्रतिपक्ष को अपनी दुर्बल काया को दूर करने का उपाय ढूंढना ही चाहिए।
विपक्ष का संघर्ष और उसके लिए सबक
जहां तक प्रतिपक्ष के संघर्ष का सवाल है, तो उत्तर प्रदेश में उसका अति आत्मविश्वास घातक बन गया। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव बंगाल में ममता बनर्जी की तरह जुझारूपन नहीं दिखा सके। हो सकता है कि इसके पीछे बंगाल में ममता बनर्जी का सत्ता में होना रहा हो। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के पिछले कार्यकाल की कड़वी यादें मतदाताओं के मन में बनी रहीं।
दरअसल, सियासत में अक्सर अतीत का प्रेत लंबे समय तक मंडराता रहता है। अखिलेश भी उसका शिकार बन गए। भले ही उनके पुराने समझौते परिणाम नहीं दे पाए मगर इस बार भी उन्हें अन्य विपक्षी दलों को साथ में लेना था।
पंजाब में अकाली दल इस बार भी कोई चमत्कार नहीं दिखा सका। अलबत्ता दिल्ली से आए एक नवोदित क्षेत्रीय दल ने बाज़ी मार ली। इसका अर्थ यह भी है कि सिख मतदाता ने बुजुर्ग प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे को नकार दिया और अपेक्षाकृत एक कलाकार सिख चेहरे को स्वीकार किया।
इधर, अन्य तीन प्रदेशों में भी कांग्रेस ही मुख्य विपक्ष थी और कहने में हिचक नहीं कि इन राज्यों में कांग्रेस ने चुनाव गंभीरता से नहीं लिया । उसकी लड़ने की जुझारू क्षमता कहीं विलुप्त हो गई है।
तो अब इन पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने वाले दिनों के क्या सियासी संकेत देते हैं। लोकसभा के अगले चुनाव से पहले दस राज्यों में इस बरस और अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्तारूढ़ अपने विजयी चेहरे के साथ उनमें प्रस्तुत होगी जबकि विपक्ष पराजित और एक तरह से हताश मुद्रा में सामने होगा। उसे ध्यान देना होगा कि अब बीजेपी जैसी हाईटेक प्रचार संसाधन युक्त पार्टी से उसका मुक़ाबला है,जो पूरे साल चुनावी मुद्रा में रहती है।
गुजरात और हिमाचल में इस साल और मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अगले बरस चुनाव होंगे। यानी पूरब, पश्चिम, मध्य और दक्षिण भारत में होने वाले यह चुनाव विपक्ष के लिए लिटमस टेस्ट होगा।
स्वस्थ्य लोकतंत्र की सेहत पक्ष के साथ साथ विपक्ष के भी तंदुरुस्त होने पर निर्भर करती है। ऐसी सूरत में भारतीय प्रतिपक्ष को अपनी दुर्बल काया को दूर करने का उपाय ढूंढना ही चाहिए।
Gulabi
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