अन्य

Assembly Election: मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे राजनीतिक दल, निर्वाचन आयोग को लेना चाहिए संज्ञान

Gulabi
16 Jan 2022 5:36 AM GMT
Assembly Election: मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे राजनीतिक दल, निर्वाचन आयोग को लेना चाहिए संज्ञान
x
इसके बाद उनमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग जाती है
पांच राज्यों में चुनावों की घोषणा होते ही मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की ओर से जिस तरह लोक लुभावन वादे किए जाने लगे हैं, उन पर निर्वाचन आयोग को संज्ञान लेना चाहिए। राजनीतिक दलों को इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि वे आर्थिक नियमों की अनदेखी कर मनचाही घोषणाएं करें। एक समय था, जब लोक लुभावन घोषणाओं के तहत मुफ्त चीजें देने के वादे तमिलनाडु तक ही सीमित थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यही काम देश भर में होने लगा है। जब एक दल मुफ्त चीजें देने की घोषणा करता है तो दूसरे दल भी ऐसा करने के लिए विवश होते हैं। इसके बाद उनमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग जाती है।
इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। गोवा, पंजाब, मणिपुर से लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कोई दल मुफ्त बिजली देने के वादे कर रहा है तो कोई मोबाइल-लैपटाप बांटने की बातें कर रहा है। चूंकि इन दिनों किसानों के मसले चर्चा में हैं इसलिए उनके कर्ज माफ करने की भी घोषणाएं की जा रही हैं। लोक लुभावन वादे करने की राजनीति किस तरह बेलगाम होती जा रही है, इसे इससे समझा जा सकता है कि अब नकद राशि देने के भी वादे किए जा रहे हैं। यह एक तरह से मतदाताओं के वोट खरीदने की कोशिश है। यहां इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चुनावों के दौरान गुपचुप रूप से पैसे और शराब बांटने का सिलसिला पहले से ही कायम है। यह एक तथ्य है कि चुनावों के दौरान उस पैसे की बड़े पैमाने पर बरामदगी होने लगी है, जो मतदाताओं के बीच चोरी-छिपे बांटने के लिए एकत्र किया जाता है।
चुनावों के अवसर पर राजनीतिक दलों की ओर से की जाने वाली अनाप-शनाप लोक लुभावन घोषणाओं का मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तो उसने यह पाया था कि साड़ी, मिक्सी, मोबाइल, टीवी आदि मुफ्त देने की घोषणाओं से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की बुनियाद ही ध्वस्त हो जाती है। सच तो यह है कि ऐेसी घोषणाएं अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क करने का भी काम करती हैं। जब कोविड महामारी के चलते राज्यों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खस्ताहाल है तब फिर राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त की रेवडिय़ां बांटने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना और भी आवश्यक हो जाता है।
बेहतर होगा कि निर्वाचन आयोग ऐसे कोई दिशानिर्देश जारी करे, जिससे राजनीतिक दलों की मनमानी घोषणाओं पर लगाम लगे। इस पर लगाम लगना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि इससे मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। यह समझा जाना चाहिए कि इस संस्कृति को बढ़ावा देकर कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं बन सकता।
दैनिक जागरण
Next Story