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राष्ट्रीय पार्टियों के लिए क्षेत्रीय दलों के गढ़
अजय झा.
पांच राज्यों में 2022 के विधानसभा चुनावों (5 State Assembly Election) की गहमागहमी में भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तीन विपक्षी शासित राज्यों के निकाय चुनावों में खराब प्रदर्शन की खबर कहीं दब गई है. करीब नौ महीने पहले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (TMC) को कड़ी टक्कर देकर 294 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटों के साथ राज्य में दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी बीजेपी को हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनावों में एक भी सीट हासिल नहीं हुई है.
जहां टीएमसी ने 108 नगर पालिकाओं में से 102 पार्टी के नाम कर प्रचंड जीत दर्ज की, वहीं बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर धांधली और मतदाताओं को डराने-धमकाने का आरोप लगाते हुए इस परिणाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. पश्चिम बंगाल निकाय चुनाव से पहले तमिलनाडु में नगर निगम चुनाव और ओडिशा में पंचायत चुनाव हुए थे. बीजेपी को इस बात से थोड़ी राहत मिल सकती है कि तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके (DMK) और उसकी प्रतिद्वंद्वी एआईएडीएमके (AIIDMK) के बाद कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय संगठनों को पीछे छोड़ते हुए वह राज्य में तीसरे स्थान पर रही. वैसे इन चुनावों में महज 5.5 फीसदी वोटिंग ही हुई थी. लिहाजा कम अंकों को उपलब्धि की बजाय सांत्वना पुरस्कार कहा जा सकता है.
तीनों राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन औसत से नीचे रहा
ओडिशा पंचायत चुनावों के नतीजों में बीजेपी इस पूर्वी राज्य में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी, जबकि राज्य के सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) ने चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की. ओडिशा के पंचायत चुनावों में बीजेडी को 52.73 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेपी के खाते में 30.07 फीसदी वोट आए. कांग्रेस पार्टी महज 13.57 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही. देखा जाए तो बीजेपी को ओडिशा में खुद को साबित करने का एक और मौका मिलेगा क्योंकि 24 मार्च को राज्य में 109 शहरी निकायों के लिए मतदान होना है. बता दें कि राज्य के शहरी क्षेत्रों में 2019 के विधानसभा और संसदीय चुनावों में बीजेपी बीजेडी से आगे रही थी.
यदि तीनों राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन औसत से नीचे रहा, तो परिणाम उसकी राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी के लिए भी निराशाजनक रहे हैं. इन चुनावों में पार्टी को पहले से भी कम वोट मिले. दक्षिण की राजनीति में अपने पंख फैलाने के लिए बीजेपी ने तमिलनाडु नगर निगम चुनाव लड़ने का विकल्प चुना था, जबकि कांग्रेस पार्टी ने दक्षिणी राज्य में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए डीएमके को अपना समर्थन दिया. बाकी के दो राज्यों में अपने दम पर चुनाव लड़ने पर कांग्रेस पार्टी अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करती नजर आई.
इन चुनावों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस पार्टी की चुनावी हार के बाद केंद्र में एक मजबूत विपक्ष की जो जगह खाली हुई है, उसे भरने के लिए क्षेत्रीय दल तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. चुनावों के नतीजों को गहराई से देखने पर यही समझ में आता है कि कांग्रेस पार्टी 2024 के संसदीय चुनावों में बीजेपी को एक वास्तविक चुनौती देने में तब तक सफल नहीं हो सकती है, जब तक कि वह क्षेत्रीय ताकतों के साथ गठबंधन न बनाए. हालांकि मौजूदा समीकरणों को देखते हुए ये नामुमकिन ही लगता है.
क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस पार्टी अब अस्वीकार्य होती जा रही है
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का वाराणसी में आना और दो क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ एक संयुक्त रैली को संबोधित करना एक और संकेत है कि क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस पार्टी अब अस्वीकार्य होती जा रही है. भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बोझ समझते हुए क्षेत्रीय दलों ने इसके साथ गठबंधन नहीं जोड़ा और इस तरह इन इलेक्शंस में पार्टी सबसे अलग थलग पड़ गई. मणिपुर में वाम दलों के साथ सांकेतिक गठजोड़ को छोड़कर मौजूदा दौर में जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से चार में कांग्रेस अकेले ही खड़े नजर आ रही है.
वहीं ममता बनर्जी का समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का पक्ष लेना और यूपी विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करना इस बात का संकेत है कि वह 2024 के संसदीय चुनावों से पहले अधिक से अधिक क्षेत्रीय ताकतों के साथ गठबंधन करने की अपनी रणनीति पर काम कर रही हैं. इस तरह वह गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी पार्टियों का गठबंधन करेंगी जिससे कांग्रेस के पास या तो अकेले डूबने या फिर इन पार्टियों के साथ गठजोड़ करने का ही विकल्प रह जाएगा. परिदृश्य जो भी होगा लेकिन इतना तय है कि इसके बाद, कांग्रेस पार्टी अपनी शर्तों को निर्धारित करने के साथ ही संयुक्त बीजेपी विरोधी पार्टियों के गठजोड़ का नेतृत्व नहीं कर सकेगी.
बीजेपी के लिए, तीन राज्यों में स्थानीय चुनाव एक झटका जरूर हैं, लेकिन 2024 के आम चुनाव के लिए चिंता का प्रमुख कारण नहीं है. बीजेपी इस उम्मीद में है कि अगले दो वर्षों में वह विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में खुद को राजनीतिक रूप से मजबूत करेगी और ये भी कि मतदाता लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों में उसे वोट देते समय अलग-अलग पैमानों का इस्तेमाल करेंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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