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- बार-बार सुलगता असम
आदित्य नारायण चोपड़ा: असम में दीमा हसाओ जिले में दीप्रंगवरा के पास संदिग्ध उग्रवादियों ने 7 ट्रकों में आग लगा दी, जिसमें पांच ट्रक ड्राइवर जिन्दा जल गए। इस अमानवीय और क्रूर घटना के लिए उग्रवादी गुट दिमासा नेशनल आर्मी को जिम्मेदार माना जा रहा है। इससे पहले मई में असम राइफल्स और राज्य पुलिस ने ज्वाइंट आपरेशन चलाकर डीएनएलए के सात उग्रवादियों को मार गिराया था। हो सकता है कि इसी गुट ने बदले की भावना से आगजनी की हो। कुछ दिन पहले ही असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद में 5 पुलिसकर्मियों समेत 6 लोगों की मौत हो गई थी। यह मामला इतना बढ़ा कि दोनों राज्यों की सरकारों ने एक-दूसरे के खिलाफ केस दर्ज कर लिए थे। मामला गृह मंत्रालय तक पहुंचा तो गृहमंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप से विवाद शांत हुआ। अब असम-मिजोरम की सीमाओं का जमीनी आकलन शुरू कर दिया गया है।उत्तर पूर्व के राज्य असम में अलग-अलग जनजाति समूह अलग राज्य की मांग करते रहे हैं। बोडो जाति के लोग भी अलग राज्य की मांग करते रहे हैं। बहुत से समूह असम को भारत से अलग करने को लेकर दशकों तक संघर्ष करते रहे हैं। अलग राज्य की ये सभी मांगें पुरानी हैं लेकिन इन सभी को कुछ न कुछ देकर शांत कर दिया गया। पूर्वोत्तर क्षेत्र से अधिक से अधिक विद्रोही समूहों का सरकार के साथ शांति वार्त में शामिल होने से पिछले 6 वर्षों में उग्रवाद में भारी गिरावट दिखाई दे रही थी लेकिन विभाजनकारी ताकतें कभी-कभी सिर उठा लेती हैं। इसके बहुत से कारण हैं। दरअसल पूर्वोत्तर में सौ से भी अधिक जातीय समूह हैं। यहां ऐेसे लोग बसे हुऐ हैं, जिनकी संस्कृति की एक अलग एवं विशिष्ट पहचान है। इनमें से प्रत्येक समुदायों में पहचान की भावना बहुत प्रबल है। ऐसे कई समूह इस विशिष्टता को राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी अभिव्यक्त करना चाहते हैं। इसके कारण ही क्षेत्र में कई अलगाववादी ताकतें कार्य करती रहीं जिससे इस क्षेत्र में उग्रवाद का जन्म हुआ। जब जातीय समूहों को लगता है कि उनका प्रतिनिधित्व ठीक ढंग से नहीं हो रहा तब वो विद्रोह करते हैं जो अनिवार्य रूप से राजनीतिक संगठनों के विरुद्ध होते हैं। उनमें यह भावना होती है कि उनके हितों की उपेक्षा की गई है, इससे हिंसक आंदोलनों का जन्म हुआ है। अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पहले उनमें यह भावना विकसित की कि वे ब्रिटिश उपनिवेश हैं और भारत के किसी प्रांत का हिस्सा नहीं हैं। उनमें यह भावना हमेशा प्रभावित की गई कि कमोबेश वे स्वतंत्र हैं, इसलिए स्वतंत्रता के बाद कई समूहों में एक स्वतंत्र राज्य बनने की महत्वकांक्षा ने जन्म लिया। नागालैंड नेशनल काउंसिल भारत से अपनी स्वतंत्रता का दावा करने वाला पहला समूह था।दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (डीएनएलए) का गठन 15 अप्रैल, 2019 को किया गया था। इसकी स्थापना सूचना एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये ही दी गई थी। यह संगठन दावा करता रहा है कि स्वतंत्र दिमासा राष्ट्र की मांग को लेकर संघर्ष करने को प्रतिबद्ध है। यह भी कहा जाता रहा है कि संगठन का मकसद दिमासा समाज में भाईचारा कायम करना और दिमासा साम्राज्य को वापिस पाना है। इस गुट का नेतृत्व नाइसोदाओ दिमासा कर रहा है, जबकि इसका सचिव खारमिनराओ दिमासा है। इस गुट ने नागरिक संशोधन विधेयक का जमकर विरोध किया था। डीएनएलए असम, नागालैंड और खासतौर पर दीमाहसाओ जिले में काफी सक्रिय है। 2003 में 17 दिमासा लोगों की विधवाओं ने संकल्प लिया था कि वे अपने पतियों की मौत का बदला लेंगी क्योंकि उनके पतियों का कछार जिले से अपहरण कर हमार पीपुल्स कन्वेंशन डेमोक्रेट्स के उग्रवादियों ने मार डाला था।संपादकीय :बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई जरूरीनीरज चोपड़ा का खेल भाईचारासरकार ने खोला आकाश...अफगानियों के साथ भारतराजनीतिक शुचिता के लिए...अफगान-भारत और रूसदिमासा जनजाति के लोग अलग राज्य की मांग को लेकर हड़ताल और प्रदर्शन करते रहे हैं। हाल ही में विद्रोही गुट ने कई हिंसक वारदातें कीं। असम को आतंकवाद से मुक्त करने के लिए सुरक्षा बल बड़े पैमाने पर सर्च आपरेशन चलाए हुए हैं लेकिन पूर्वोत्तर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। हैरानी की बात तो यह है कि दो वर्ष पहले स्थापित हुए इस संगठन के पास बड़ी मात्रा में हथियार कैसे मिले। यह सही है कि हिंसक आंदोलनों में शामिल एक पीढ़ी जीर्णशीर्ण हो चुकी है। हालांकि स्थानीय आबादी में अभी भी विद्रोह की भावना है और भावनात्मक रूप से अपने मनोरथ से जुड़ी हुई है, केवल मांग रखने का तरीका हिंसक है। राजनीतिक आकांक्षाओं को हिंसा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, इस भावना को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। बेहतर यही होगा कि राज्य सरकार इन लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उनसे बातचीत कर समग्र विकास की धारा बहायें तभी उन्हें विश्वास होगा कि सरकार उनके लिए कुछ कर रही है। अगर सरकारें बहुत अधिक बल प्रयोग करती हैं तो फिर चिंगारी कभी भी आग बन सकती है।