सम्पादकीय

असम-मिजोरम की कलह

Triveni
2 Aug 2021 12:46 AM GMT
असम-मिजोरम की कलह
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भारत के दो राज्यों के बीच आपसी विवाद का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है

आदित्य चोपड़ा| भारत के दो राज्यों के बीच आपसी विवाद का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है मगर असम व मिजोरम की सीमा पर जिस प्रकार दो राज्यों की पुलिस आपस में भिड़ी है वह जरूर चिन्ता पैदा करने वाली घटना है। विगत 26 जुलाई को जिस तरह असम पुलिस के छह जवान मिजो पुलिस की गोलियों का निशाना बने उससे एेसा संकेत गया जैसे कि ये भारत के ही दो राज्य न होकर भारत-चीन की सीमा हो। हकीकत यह है कि असम में भाजपा की सरकार है और मिजोरम में भी भाजपा के सहयोगी या मित्र दल 'मिजो नेशनल फ्रंट' की सत्ता है, इसके बावजूद इन दोनों राज्यों के मुख्यमन्त्री अपने राज्यों की सरहदों पर स्थित कुछ जमीन को लेकर लड़ रहे हैं। मगर लगता है कि इन दोनों राज्यों के मुख्यमन्त्रियों को कुछ अक्ल आ गई है जिसकी वजह से दोनों की तरफ से अलग-अलग आज शाम एक वक्तव्य जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि सीमा विवाद का हल शान्तिपूर्ण तरीके से बातचीत द्वारा निकाल लिया जायेगा और इस पर सहमति बना ली जायेगी। वरना इससे पहले तो दोनों राज्यों की पुलिस एक-दूसरे के पुलिस अफसरों को सम्मन जारी कर रही थी और राज्यों की तरफ से घोषणा की जा रही थी कि वे एक-दूसरे के सम्मन को नहीं 'मानते'। तब एेसा लग रहा था जैसे असम के मुख्यमन्त्री हेमन्त बिस्व सरमा अपने साथ के राज्य के मुख्यमन्त्री जोराम थेंगा से नहीं बल्कि किसी दूसरे देश के मुखिया से बात कर रहे हों।

वास्तविकता यह है कि आजादी के बाद पूरा असम एक ही राज्य था जिसमें मिजो व नगा समेत सैकड़ों जनजातियां रहती थीं। इन जनजातियों के अपने-अपने क्षेत्र थे व पहचान थी। इनमें सबसे बड़ी समस्या नगाओं की थी जो अंग्रेजी शासनकाल से ही अपना स्वतनन्त्र अस्तित्व चाहते थे। स्वतन्त्रता के बाद असम राज्य का यह भी हिस्सा बना मगर 1963 में नगा क्षेत्र के विकास के लिए विशेष परिषद का गठन किया गया और इसे स्वायत्तशी रूप भी दिया गया। लेकिन 1966 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पूरे असम को छह राज्यों मे बांट कर ऐसा दूरदर्शिता पूर्ण कदम उठाया कि इससे इस क्षेत्र मे शान्ति व भाईचारा कायम रहने के साथ यहां के लोगों की अलग पहचान व संस्कृति भी संरक्षित रही और ये लोग स्वयं ही अपने-अपने क्षेत्रों में सत्ता पर काबिज भी हुए। इससे उत्तर-पूर्व के इस पूरे इलाके में नये सांस्कृतिक व राजनीतिक युग की शुरूआत हुई।
असम के विभाजन के साथ ही पंजाब राज्य का विभाजन भी हुआ था और हरियाणा व हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आये थे। हरियाणा और पंजाब के बीच भी चंडीगढ़ शहर लेकर बहुत तेज विवाद हुआ था और आन्दोलन तक चले थे। परिणामस्वरूप यह शहर आज भी दोनों राज्यों की राजधानी है और शहर केन्द्र प्रशासित क्षेत्र है। इसी प्रकार कर्नाटक व महाराष्ट्र के बीच भी सीमावर्ती मराठी भाषी इलाकों को लेकर महासंग्राम छिड़ता रहा है और राजनीतिक युद्ध भी होते रहे हैं। यह विवाद अब भी यदा-कदा खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश औऱ हरियाणा के बीच भी जमुना नदी के कटान से उत्पन्न भूमि परिवर्तन से विवाद खड़ा हो जाता है। मगर एेसी नौबत नहीं आती कि एक राज्य की पुलिस ही दूसरे राज्य की पुलिस पर गोली चला दे। असम और मिजोरम के बीच एेसे इलाके हैं जहां सड़क के एक तरफ का हिस्सा असम में है और दूसरी तरफ का मिजोरम में। इसके बावजूद लोग प्रेम से रहते हैं और दोनों राज्यों की पुलिस मिल बैठकर कानून व्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं को भी सुलझा लेती है। दरअसल पूरे भारत के विभिन्न राज्यों की पुलिस आपस में इस प्रकार समन्वय करने में सिद्धहस्त है कि वह एक-दूसरे के आड़े न आकर सहयोग करती है। इस बारे में लिखित व अलिखित दोनों ही प्रकार के कानून व परंपराएं हैं।
जाहिर है कि किन्ही भी दो राज्यों की पुलिस आपस में तभी भिड़ेगी जब उसके राजनीतिक आकाओं की शह होगी। असम और मिजोरम में यही हुआ है क्योंकि दोनों ही ओर के राजनीतिक आकाओं ने अपने वोट बैंक के स्वार्थ को ऊपर रख कर पुलिस को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की है। मगर जो छह पुलिस कर्मी मारे गये हैं उसके कारणों की जांच तो होनी ही चाहिए और सबसे बेहतर तरीका है कि इसकी जांच न्यायिक निर्देशन में हो जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। बेशक राज्यों के अधिकार हैं और कानून-व्यवस्था विशिष्ट अधिकारों में आता है मगर इसका मतलब यह कैसे हो सकता है कि दोनों राज्यों के कानून के मुहाफिज ही आपस में भिड़ पड़े। आखिरकार भारत एक देश है और विभिन्न राज्य इसकी संघीय व्यवस्था के तहत इसी देश के संविधान से बन्धे हुए हैं। चाहे कोई असमी हो मिजो सभी भारत के लोग हैं।


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