सम्पादकीय

असम मिजोरम सीमा व‍िवाद : अपनी सीमा समझें राज्य

Gulabi
28 July 2021 3:33 PM GMT
असम मिजोरम सीमा व‍िवाद : अपनी सीमा समझें राज्य
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पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर जिस

पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर जिस तरह की हिंसक झड़प सोमवार को हुई, वह न केवल इन दोनों राज्यों की सरकारों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता की बात है। आखिरकार गृह मंत्री अमित शाह के दखल देने के बाद स्थिति काबू में आई। उन्होंने दोनों राज्यों से इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने की अपील की है। साथ ही, इस बात को भी समझना होगा कि दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद बहुत पुराना है। इसकी जड़ें औपनिवेशिक शासन तक जाती हैं

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तब मिजोरम असम का एक जिला था और उसे लुशाई हिल्स के रूप में जाना जाता था। विवाद के मूल में दो नोटिफिकेशन हैं, एक 1875 का जिसने लुशाई हिल्स को कछार के मैदान से अलग रेखांकित किया। दूसरा 1933 का, जो लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच सीमा निर्धारित करता है। मिजोरम का आग्रह है कि राज्य की सीमा तय करने के लिए 1933 के नोटिफिकेशन को आधार माना जाए जबकि असम 1875 के नोटिफिकेशन को आधार मानने की बात करता है। खासकर 1987 में मिजोरम के एक अलग राज्य बनने के बाद से यह विवाद और गहरा होता गया।
लेकिन दूसरे राज्यों के बीच अलग-अलग मसलों को लेकर विवाद होते रहते हैं। कई राज्यों के बीच सीमा विवाद भी हैं। ये विवाद कभी-कभार गंभीर तनाव का कारण भी बन जाते हैं। लेकिन जिस तरह की हिंसा असम और मिजोरम के पुलिस बलों के बीच हुई है, वह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती। दोनों राज्य सरकारों को ही नहीं केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियों को भी इस बात की जानकारी थी कि कछार और कोलासिब जिलों की सीमा पर तनाव के हालात बन रहे हैं।
दो दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूर्वोत्तर के दौरे पर गए थे और मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में सीमा विवाद पर भी बातचीत हुई थी। इस सबके बावजूद ऐसी झड़प हुई। अब दोनों राज्यों की सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हुए परस्पर विरोधी दावे कर रही हैं, जिनकी सचाई जांची-परखी जा सकती है। जहां तक सवाल सीमा संबंधी विवाद का है तो देश के नियम कानून और संविधान के मुताबिक तमाम मंच उपलब्ध हैं, जहां दोनों सरकारें अपना पक्ष लेकर जा सकती हैं। मगर अपने-अपने दावों को दूसरे पक्ष से इस तरह मनवाने और इन कोशिशों में सशस्त्र पुलिस बलों को शामिल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
विवाद को उपयुक्त ढंग से हल करने की प्रक्रिया तो अविलंब शुरू होनी ही चाहिए, सोमवार को हुई झड़प की निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच भी होनी चाहिए। यह पता लगाया जाना चाहिए कि इस हिंसा के दोषी कौन हैं। जिन लोगों ने अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया है, उनके खिलाफ समुचित कार्रवाई होनी चाहिए। इससे यह संदेश दिया जा सकेगा कि इस तरह की गलती आइंदे बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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