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भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने धीरे-धीरे कांग्रेस (Congress) के सभी उन लीडरों का अपना हीरों बना लिया जिनकी विरासत कांग्रेस पार्टी संभाल नहीं सकी. बल्लभ भाई पटेल (Vallabh Bhai Patel) से शुरू हुआ ये चलन इन चुनावों में बंगाल में सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) और प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee), तमिलनाडु में कामराज तो असम में तरुण गोगोई (Tarun Gogoi) तक पहुंच चुका है. जिस तरुण गोगोई (असाम के पूर्व मुख्यमंत्री) के ऊपर भ्रष्टाचार और कई तरह के आरोप लगाकर पिछले चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस से सत्ता हथियायी आज वही गोगोई भारतीय जनता पार्टी के लिए असम में आईकॉन बन गए हैं.
राजनीति में शह और मात का खेल इसी तरह चलता है. शतरंज के बिसात पर अपने मोहरों से बीजीपी ने कांग्रेस के सितारों को भी हथिया लिया है. असम चुनावों में तरुण गोगोई का किस तरह इस्तेमाल करना है इसका नजारा तभी मिल गया था जब पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई थी. तरुण गोगोई को मरणोपरांत पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया था. हाल फिलहाल में बीजेपी अपने हर चुनावी सभा में तरूण गोगोई की तारीफ करती नहीं थक रही है.
अहोम समुदाय के वोट के लिए जरूरी है गोगोई की जयकार
असम में अहोम मतदाताओं की की तादाद तकरीबन 14 फीसदी है. यह आबादी ऊपरी असम के लगभग 45 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालती है. तरुण गोगोई इसी समुदाय से आते हैं. उन्हीं की वजह से यह समुदाय हमेशा से कांग्रेस का कोर वोट बैंक रहा है. हालांकि, गोगोई के निधन के बाद यह वोट बैंक बीजेपी के पाले में भी जाता नजर आ रहा है. असम में रहने वाला अहोम समुदाय अपनी असमी संस्कृति को लेकर काफी ज्यादा सचेत रहता है यही कारण है कि कांग्रेस अब इस समुदाय को CAA का डर दिखा के फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. वहीं बीजेपी अपने हर सभा से तरुण गोगोई की तारीफ कर इस समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है.
बदरुद्दीन अजमल और कांग्रेस का गठबंधन
असम में इस बार कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल के साथ गठबंधन किया है. हालांकि तरुण गोगोई हमेशा से बदरुद्दीन अजमल और उनकी पार्टी AIUDF के खिलाफ रहे हैं. उनका मानना था कि AIUDF हमेशा से असम में घुसपैठ करने वालों का साथ देती आई है. इसलिए उन्होंने कभी भी इस पार्टी का सहयोग नहीं लिया. बीजेपी कांग्रेस के इसी गठबंधन को अब अपना मुद्दा बना रही है और पूरे असम में प्रचार कर रही है कि तरुण गोगोई जिस असमी सभ्यता के लिए जिंदगी भर लड़ते रहे, कांग्रेस ने आज उसे ही ताख पर रख कर AIUDF के साथ गठबंधन कर लिया.
सीएए का विरोध असमिया पहचान
कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए इस बार असम के चुनाव में मुख्य मुद्दा CAA ही है. CAA के विरोध के जरिए कांग्रेस असम में यह दिखाना चाहती है कि वह असमी सभ्यता को कितना महत्व देती है. हालांकि इस नागरिकता संशोधन कानून का विरोध असम में भी खूब हुआ था, खास तौर से ऊपरी असम में जहां मूल असमी भाषियों की तादाद सबसे ज्यादा है. उन्हें लगता है कि अगर सीएए के जरिए बांग्लादेश से आए बंगाली भाषी शरणार्थियों को असम की नागरिकता मिल गई तो असम के मूल निवासी असम में ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे इसलिए मूल असमी लोग इस कानून का शुरू से ही विरोध कर रहे हैं. पर बीजेपी यही समझाने का प्रयास कर रही है सीएए कानून को लागू करने से असमी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा ही होगी क्योंकि बांग्लादेशियों को बाहर भेजने का रास्ता साफ होगा.
Gulabi
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