सम्पादकीय

गर्भपात संबंधी कानूनी प्रावधान के पहलू

Subhi
8 Oct 2022 5:15 AM GMT
गर्भपात संबंधी कानूनी प्रावधान के पहलू
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इस निर्णय ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेद को समाप्त करते हुए यह व्यवस्था दी कि यह एक रूढ़िवादी विचार है कि यौन गतिविधियों में केवल विवाहित महिलाएं शामिल होती हैं

विभा त्रिपाठी; इस निर्णय ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेद को समाप्त करते हुए यह व्यवस्था दी कि यह एक रूढ़िवादी विचार है कि यौन गतिविधियों में केवल विवाहित महिलाएं शामिल होती हैं, ऐसे अधिकारों के स्वतंत्र प्रयोग के लिए सभी महिलाओं को स्वायत्तता होनी चाहिए। गौरतलब है कि गर्भपात के अधिकार की एक लंबी लड़ाई अमेरिका में लड़ी गई थी और 1973 में रो बनाम वेड के मामले में महिलाओं को यह अधिकार प्रदान किया गया था, ताकि पुनरुत्पादन के उनके अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके। पर इसी वर्ष जून में इस निर्णय को उलट दिया गया और प्रत्येक राज्य को इस बाबत निर्णय लेने का अधिकार दिया गया कि कब कोई महिला गर्भपात करा सकेगी। यानी अमेरिका में ठीक विपरीत विचार वाले निर्णय की कठोर आलोचना भी हो रही है।

इस पृष्ठभूमि में जब हम भारत में गर्भपात संबंधी कानूनों का अध्ययन करते हैं, तो पता चलता है कि यहां भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 312 में प्रावधान है कि जो भी कोई गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा पूर्वक गर्भपात करेगा या कराएगा, और अगर ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक न किया गया हो, तो उसे कारावास की सजा दी जा सकती है, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

इसमें आर्थिक दंड या दोनों भी लगाया जाएगा। अगर वह स्त्री 'स्पंदनगर्भा' हो यानी जिसका गर्भ चार या पांच महीने का हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा सुनाई जा सकती है, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। इस धारा का स्पष्टीकरण कहता है कि जो स्त्री स्वयं अपना गर्भपात कराती है, वह इस धारा के अंतर्गत आती है।

उधर 1971 में अस्तित्व में आए गर्भपात के चिकित्सीय समापन अधिनियम की धारा 3 बी में इस संबंध में एक आपवादिक प्रावधान किया गया है, जो उन महिलाओं को वर्गीकृत करता है, जो 24 सप्ताह तक गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए पात्र हैं- (अ) यौन हमले, बलात्कार या अनाचार की शिकार (ब) नाबालिग/ (स) चल रही गर्भावस्था (विधवा और तलाकशुदा ) के दौरान वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन/ (द) शारीरिक रूप से दिव्यांग महिलाएं (दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (2016 का 49) के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख दिव्यांगता) (य) मानसिक मंदता सहित मानसिक रूप से बीमार महिलाएं (र) भ्रूण की विकृति, जिसमें जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम है या अगर बच्चा पैदा होता है तो वह ऐसी शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से गंभीर रूप से दिव्यांग हो सकता है तथा (ल) मानवीय भूल या आपदा या आपातकालीन स्थितियों में गर्भावस्था वाली महिलाएं जैसा कि सरकार द्वारा घोषित किया जा सकता है।

अब इस प्रश्न पर विचार होना था कि वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन की व्याख्या कैसे हो और इसका विस्तार क्या हो? इसके लिए न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने 2021 में 'मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट' (एमटीपी) में किए गए संशोधनों को ध्यान में रखा, जिसने अधिनियम की धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण 1 में 'पति' शब्द को 'पार्टनर' के साथ प्रतिस्थापित किया और देखा कि अविवाहित महिलाओं को कानून के दायरे से बाहर करना कानून के उद्देश्य के खिलाफ है।

लिहाजा, एक अविवाहित महिला, जो सहमति से संबंध स्थापित करते हुए गर्भवती हो जाती है, पर दूसरे पक्षकार द्वारा विवाह न करने के कारण गर्भपात का निर्णय लेती है, उसे गर्भपात का अधिकार प्रदान किया गया। न्यायालय की टिप्पणी थी कि 'प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार अविवाहित महिलाओं को विवाहित महिलाओं के समान अधिकार देते हैं। एमटीपी अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) का उद्देश्य महिला को 20-24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देना है। इसलिए, केवल विवाहित महिलाओं को अनुमति और अविवाहित महिला को नहीं, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।'

कहने का अर्थ यह कि बदलते सामाजिक परिवेश में हालांकि किसी भी कानून में वयस्क सदस्यों द्वारा बिना विवाह किए, सहमति से यौन संबंध बनाने को अपराध नहीं बताया गया है और ऐसे संबंधों में हिंसा को निवारित करने के लिए एक अधिनियम बनाया गया और अगर महिला गर्भवती हो जाती है तो उसके गर्भपात का भी प्रावधान किया गया।

एक अन्य स्थिति की भी व्याख्या न्यायालय द्वारा की गई कि अगर ऐसी महिला की उम्र अठारह वर्ष से कम है, तो बच्चों को लैंगिक अपराधों से संरक्षण के लिए बनाए गए कानून की धारा 19 (1) के तहत अनिवार्य रिपोर्ट में नाबालिग के नाम का खुलासा करने पर जोर दिया जाता है, तो नाबालिगों द्वारा एमटीपी अधिनियम के तहत अपनी गर्भावस्था की सुरक्षित समाप्ति के लिए पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (आरएमपी) की तलाश करने की संभावना कम हो सकती है।

इसलिए पीठ ने कहा कि पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी को नाबालिग की पहचान का खुलासा करने से छूट दी जानी चाहिए, क्योंकि- इस तरह की व्याख्या पाक्सो अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से अपराध की रिपोर्ट करने के लिए पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के वैधानिक दायित्वों और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नाबालिग की निजता और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकारों के बीच किसी भी संघर्ष को रोकेगी। यह संभवत: नाबालिगों को सुरक्षित गर्भपात से वंचित करने की विधायिका की मंशा नहीं हो सकती है।

सुरक्षित गर्भपात दिवस के दिन दिए गए इस निर्णय में जहां एक ओर यौन स्वातंत्र्य, निजता और गरिमा जैसे अधिकारों की उदारतापूर्वक व्याख्या की गई है, वहीं अवयस्कों के मामले में पाक्सो जैसे अधिनियम के साथ भी सामंजस्यपूर्ण व्याख्या का अनुरोध किया गया है। बलात्कार में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया गया है, लेकिन एक अधिनियम जो गर्भ में लिंग की पहचान और भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाया गया है उस पर कोई विमर्श या टिप्पणी नहीं की गई है।

उल्लेखनीय है कि अमूमन गर्भधारण की जानकारी चार से आठ सप्ताह के भीतर हो जाती है, तो किन परिस्थितियों में यह अवधि चौबीस सप्ताह तक बीत जाती है? इस प्रसंग को भी विमर्श का विषय बनाने की आवश्यकता है कि हमने गर्भपात के अधिकार को मान्यता दी और गर्भ में अस्तित्व में आए जीव के जीवन को मान्यता नहीं दी। ऐसे भ्रूण का लिंग अप्रासंगिक माना गया है। और इसकी प्रासंगिकता सिर्फ वैवाहिक संबंध में दिखाई दे रही है। क्या उदारवादी व्याख्या और अधिकारों की बढ़ती तादाद में यह मांग नहीं की जा सकती है कि एक वैवाहिक जोड़े को अपनी पसंद के लिंग के बच्चे को पैदा करने दिया जाए?

यह सोच कि ऐसा विकल्प सदैव बालकों के लिए अपनाया जाएगा, उचित नहीं लगता। जब बालिकाओं के समस्त अधिकार सुनिश्चित हो जाएंगे, जब उनके विरुद्ध यौन हिंसा और शोषण पर रोक लग जाएगी और जब दहेज के स्थान पर उन्हें पैतृक संपत्ति में बराबरी का दर्जा मिलेगा और जब बेटी पढ़ कर आत्मनिर्भर बनती रहेगी, तब वैवाहिक जोड़े अपने गर्भ में एक बालिका भ्रूण के विकल्प को भी सहर्ष चुनेंगे और अपने गर्भ की समुचित देखभाल भी करेंगे, इसमें कोई शक नहीं।


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