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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन लगातार तीसरी बार भी बरकरार है
अभिषेक तिवारी। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन लगातार तीसरी बार भी बरकरार है. लेफ्ट के किले को ध्वस्त कर सत्ता में आने वाली ममता बनर्जी के सामने इस बार बीजेपी जैसी ताकतवर पार्टी थी. इसके साथ ही उन्हें अलग-अलग कई मोर्चा पर लड़ना पड़ा. फुरफुरा शरीफ से ताल्कुल रखने वाले अब्बास सिद्दीकी ने कांग्रेस और लेफ्ट के साथ हाथ मिला लिया. दूसरी तरफ बिहार चुनाव 2020 में मिली सफलता से उत्साहित असदुद्दीन ओवैसी भी बंगाल के चुनाव में किस्मत आजमाने पहुंच गए. हालांकि पश्चिम बंगाल के मुस्लिमों ने उनकी पार्टी को सिरे से नकार दिया है.
पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 20 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ये सभी सीटें बंगाल से सटे बिहार के इलाकों की थीं. इस जीत के बाद चर्चा शुरू हो गई कि बंगाल में भी असदुद्दीन ओवैसी असर छोड़ने में कामयाब होंगे और इन नतीजों का असर उनके लिए अच्छा होगा. बिहार की जीत से उत्साहित ओवैसी ने ऐलान कर दिया कि हम बंगाल में 40-50 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. लेकिन पूरे बंगाल में एआईएमआईएम के सात उम्मीदवार ही मैदान में उतरे.
AIMIM प्रत्याशियों की जमानत जब्त
पार्टी ने इटाहार, जलांगी, सागरडिघी, भरतपुर, मलातीपुर, रतुआ और आसनसोल उत्तर विधानसभा सीट से अपने उम्मीदवार उतारे थे. भरतपुर सीट पर एक प्रत्याशी के निधन के बाद चुनाव नहीं हुआ. बाकी के सभी सीटों पर एआईएमआईएम के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. नतीजों से साफ कहा जा सकता है कि बंगाल के मुस्लिमों पर असदुद्दीन ओवैसी कोई असर नहीं छोड़ सके और उनका जादू नहीं चल पाया. राज्य के अल्पसंख्यकों ने एक बार फिर अपना भरोसा तृणमूल कांग्रेस पर दिखाकर ममता बनर्जी के प्रति अपनी वफादारी साबित कर दी है. ओवैसी ने उन सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, जहां पर मुस्लिम आबादी 60 से 75 फीसदी तक है.
इस कारण असदुद्दीन ओवैसी को माना जा रहा था फैक्टर
पश्चिम बंगाल में बड़ी तादाद में मुस्लिम मतदाता है. कई राज्य की कई सीट पर वो हार-जीत को तय करते हैं. राज्य में 57 विधानसभा सीट ऐसी है, जहां पर मुस्लिम मतादाता 50 प्रतिशत से अधिक हैं. 121 साटं पर मुस्लिम 30 प्रतिशत या उससे अधिक हैं. इन्हीं आंकड़ों को देखकर असदुद्दीन औवैसी को बंगाल में बड़ी उम्मीदें थीं. उन्होंने अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन करने की कोशिश की, लेकिन वे कांग्रेस और वामदलों के साथ चले गए.
फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से गठबंधन नहीं हो पाना बंगाल में असदुद्दीन औवैसी की पार्टी के लिए एक झटका माना जा रहा था. लेकिन चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया है कि न तो अब्बास सिद्दीकी का कोई असर रहा और न ही असदुद्दीन औवैसी कोई प्रभाव छोड़ पाए. अगर यह कहा जाए कि बंगाल के मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद अभी भी ममता बनर्जी हैं, तो यह गलत नहीं होगा.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को हाल में मिली हैं कई सफलताएं
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी लगातार अपनी पार्टी को विस्तार दे रहे हैं. वे कई राज्यों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. अपने वे इस मकसद में कामयाब भी हो रहे हैं और उनकी पार्टी को सफलता भी मिल रही है. इसी कारण बंगाल में उन्हें काफी उम्मीद थी, लेकिन सबपर पानी फिर गया. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में ओवैसी की पार्टी ने 44 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली थी.
बंगाल चुनाव में जाने के पिछे असदुद्दीन ओवैसी के लिए सबसे बड़ा कारण बिहार में मिली सफलता थी. पश्चिम बंगाल से सटे कटिहार और किशनगंज में एआईएमआईएम को पांच सीटों पर जीत मिली. इसी के बाद ओवैसी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में उतरने की घोषणा कर दी. लेकिन बिहार में मिली सफलता के कुछ महीनों के भीतर ही बंगाल में वे पूरी तरह फ्लॉप हो गए हैं. ओवैसी को अब बंगाली बोलने वाले मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए नई रणनीति अपनानी होगी.
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