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आई.पी.एल क्रिकेट तमाशा, खाड़ी देश में खेला जा रहा है। गोया कि सटोरियों ने अपने ठिकाने मुंबई से थोड़ी दूरी पर बना लिए हैं
जयप्रकाश चौकसे । आई.पी.एल क्रिकेट तमाशा, खाड़ी देश में खेला जा रहा है। गोया कि सटोरियों ने अपने ठिकाने मुंबई से थोड़ी दूरी पर बना लिए हैं। कानून के हाथ लंबे हैं, परंतु हफ्ते की रकम उनकी लंबी जेब में पहुंच रही है। अत: कभी-कभी दबिश का प्रहसन रचा जाता है, ताकि अवाम मुतमइन रहे कि महकमा जाग रहा है। खिलाड़ियों को मोटी रकम मिलती है, टेलीविजन कंपनी को विज्ञापन मिलते हैं। तमाशबीन जनता भी बहुत खुश है। परिंदे आकाश में उड़ रहे हैं, घोंघे जमीन पर रेंग रहे हैं, सभी खुश हैं।
जाने क्यों शुद्धता का आग्रह रखने वाला कबीरा रोता है! फिल्मी सितारों ने भी कुछ टीमों पर धन लगाया है। मैच फिक्सिंग के आरोप लगते रहे हैं। जिन खिलाड़ियों को पूंजीवादी घरानों और नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त है वे हमेशा निर्दोष पाए जाते हैं। यह खेल जाने कब से जारी है। क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर आशुतोष गोवारीकर और आमिर खान की फिल्म 'लगान' क्लासिक है। ऋषि कपूर और अक्षय कुमार अभिनीत 'पटियाला हाउस' भी सराही गई थी।
गौरतलब है कि कपिल देव के नेतृत्व में विश्व कप जीतने वाली टीम पर आधारित फिल्म '83' को बने 2 वर्ष हो गए हैं। लेकिन निर्माण कंपनी लागत पर ब्याज की रकम को खाते में दर्ज करती जा रही है। कंपनी चाहती है कि महामारी का प्रकोप हटे तो वह इस फिल्म को सिनेमाघर में प्रदर्शित करे। दुखद है कि भारतीय क्रिकेट प्रबंधन, कपिल देव, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर और बिशन सिंह बेदी जैसे जानकारों के हाथ में नहीं है।
कुछ ऐसे भी पदाधिकारी हैं, जिन्होंने कभी क्रिकेट खेला ही नहीं। गोया कि पद के लिए अनुभव और ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। जुगाड़ से पहाड़ भी हिलाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के सर डोनाल्ड जॉर्ज ब्रैडमैन को कष्ट देने के लिए इंग्लैंड टीम ने एक योजना बनाई थी। लॉरवुड नामक गेंदबाज तीव्र गति से की गई गेंद का निशाना ब्रैडमैन की पसलियों पर रखता था और ऑन साइड पर 5 क्षेत्र रक्षक गेंद लपकने के लिए तैनात रहते थे।
इस घातक गैर क्रिकेटीय नीति के कारण ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की राजनीतिक मित्रता खतरे में पड़ गई। बहरहाल, लॉरवुड को रोका गया। यही लॉरवुड बाद में ऑस्ट्रेलिया में रहने लगा और उसे वहां की नागरिकता भी दी गई। क्रिकेट खेलना वह पहले ही छोड़ चुका था। ऑस्ट्रेलिया के अवाम ने कभी उस पर व्यंग्य नहीं किया और वह अन्य सामान्य नागरिकों की तरह वहां रहा। उसे रोजगार भी मिला।
इस तरह की सहिष्णुता और 'वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे' का निर्माण किया गया। क्या हमारे यहां वर्तमान में ऐसा कुछ संभव है? हाल ही में भारतीय क्रिकेट टीम ने पांचवा टेस्ट क्रिकेट खेलने से इंकार कर दिया और वजह महामारी बताई गई, जबकि दौरे के प्रारंभ में ही महामारी जारी थी। मौसम विभाग पहले ही बता चुका था कि 3 दिन भारी वर्षा होगी। ज्ञातव्य है कि तमाशा क्रिकेट में पैसे कमाने की तीव्र इच्छा के चलते भारतीय टीम इंग्लैंड में रुकी नहीं। अतः 2-1 की जीत भी रिकॉर्ड बुक में दर्ज नहीं की जाएगी।
गौरतलब है कि सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी यह कहकर छोड़ दी थी कि कप्तानी के दबाव का विपरीत प्रभाव उनकी बल्लेबाजी पर पड़ रहा था। तेंदुलकर का अनुकरण किया जाना चाहिए था। कभी-कभी अंपायर दुविधाग्रस्त होने पर थर्ड अंपायर से अपील करता है। थर्ड अंपायर हर कोण से उस मौके को स्क्रीन पर बार-बार देख कर निर्णय लेता है। कभी-कभी थर्ड अंपायर से भी गैर इरादतन चूक हो जाती है। क्या इसको अघटित मान लें जैसा कि फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' के नाम से ध्वनित होता है।
साहिर लुधियानवी का गीत याद आता है 'आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम, आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम...किसको भेजे वो यहां हाथ थामने इस तमाम भीड़ का हाल जानने आदमी हैं अनगिनत देवता हैं कम।
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