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कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने जब 20 जुलाई 1969 को चांद पर पहला कदम रखा, उसके अगले दिन हम स्कूल में बात कर रहे थे कि वे अपोलो लूनर मॉड्यूल ईगल में खाना कैसे ले गए होंगे
एन. रघुरामन। कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने जब 20 जुलाई 1969 को चांद पर पहला कदम रखा, उसके अगले दिन हम स्कूल में बात कर रहे थे कि वे अपोलो लूनर मॉड्यूल ईगल में खाना कैसे ले गए होंगे। हममें से एक ने कहा, 'आप खाने को टूथपेस्ट ट्यूब में कंडेंस कर रख सकते हो और फिर कटोरे में निकालकर, गरम पानी डालने पर वह सामान्य खाना हो जाता है।'
तब हम उस नए तरह के झूठ पर खूब हंसे थे। फिर कॉलेज और कामकाजी जीवन के दौरान मैंने इसे सच होते देखा। आपने हवाईयात्रा में मिलने वाले नूडल के पैकेट देखे होंगे। इसमें एयरहोस्टेज गरम पानी डालती हैं और खुशबू के साथ गरमागरम नूडल तैयार हो जाते हैं, जिसे हम पूरा चट कर जाते हैं। पिछले हफ्ते गर्म या ठंडा पानी डालने का यह बिजनेस नए स्तर पर पहुंच गया।
एक बेवरेज (पेय) कंडेंस हो गया। बस इसमें गर्म या ठंडा पानी डालिए और हॉट या आइस कॉफी तैयार है। वर्ष 2015 में मैथ्यू रॉबर्ट्स द्वारा सह-स्थापित यूके की कंपनी 'कॉमेटीअर' ने कॉफी को यह नया अंदाज दिया है। इस कॉफी को बनाने के लिए आपको अनुभव या उपकरण की जरूरत नहीं है। लगभग आलू के आकार का एक फ्रोजन (जमा हुआ) गोला ग्राहक को ड्राय आइस के डिब्बों में मिलता है।
ग्राहक गोला कप में डालकर गर्म या ठंडा पानी डालेंगे, जिससे वह पिघल जाएगा। प्रत्येक की कीमत 2 डॉलर है और इसे फ्रीज़र में रख सकते हैं। रॉबर्ट्स के साथ इस नए पेय बिजनेस में एमआईटी, एपल और टेस्ला के कुछ वैज्ञानिक काम कर रहे हैं और उन्होंने जॉर्ज हॉवेल कॉफी और ब्लू बॉटल जैसी नामी-गिरामी कॉफी कंपनियों के कॉफी मास्टर्स को अपने साथ मिलाया है।
कॉफी के कई शौकीन इसे बरिस्ता के जैसी गुणवत्ता वाला बता रहे हैं। 'कॉमेटिअर' का नाम उसकी ठंडक के कारण कॉमेट (धूमकेतु) पर रखा गया है। इस मंगलवार कंपनी को 3.5 करोड़ डॉलर की नई फंडिग मिली है, जिससे इसमें बाहरियों का कुल निवेश 10 करोड़ डॉलर हो गया है। इस नई कंपनी को कॉफी का अर्क निकालने और उसे माइनस 321 डिग्री फैरनहाइट पर जमाकर गुणवत्ता बनाए रखने में महारत हासिल है।
इसका पानी की केमिस्ट्री और ब्रूइंग तापमान तथा ग्राइंड (पिसाई) पर उच्च नियंत्रण है, जो दुनिया के ज्यादातर कॉफी उपकरण नहीं कर पाते हैं। जो अर्क दस मिनट में निकलता है, वह एक सामान्य कप जितना कड़क होता है। अर्क निकालने के तुरंत बाद कंपनी उसे जमा देती है और बिना ऑक्सीजन वाले, रिसायकल योग्य एल्यूमिनियम के कैप्सूल में भरकर तरल नाइट्रोजन में रख देती है, जिससे कॉफी के कम्पाउंड जम जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि यह एक और वैश्विक कंपनी है, जिसने ज्यादातर उपकरण बेसमेंट में बनाए, यानी वे दूसरों की तुलना में जमीनी हकीकत से ज्यादा वाकिफ हैं। चूंकि कोई एक कॉफी ब्रांड ही दुनिया की कॉफी पीने वाली सारी आबादी पर राज नहीं कर सकती, इसलिए अगर कंपनी कॉफी को कहीं भी बनाने की सुविधा के साथ बेहतर स्वाद दे सकती है तो लोग इसे अपना सकते हैं।
यह पेय पीने का नया पैटर्न होगा, जो बाद में खाने की दुकानों तक भी पहुंचेगा। फंडा यह है कि जब तक इंसानी नस्ल जिंदा है, खाना बेशक दुनिया का सर्वोपरि बिजनेस रहेगा। लेकिन इसमें सफलता पाने और वैश्विक कंपनी बनने के लिए ग्राहकों की सुविधा पर ध्यान देना होगा।
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