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- उभरती शक्ति के रूप में...

हर्ष वी पंत।
इस समय पूरी दुनिया उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रही है। कई ताकतें अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए बेसब्र हुई जा रही हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां उसकी आक्रामकता ने कई देशों को परेशान किया हुआ है। इस क्षेत्र के लिए भले ही अस्थिरता एवं तनाव कोई नई बात न हो, लेकिन यूरोप जैसे अपेक्षाकृत स्थायित्व भरे क्षेत्र में भी इस समय युद्ध की आग भड़की हुई है। यहां यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया को एक तरह से दोफाड़ कर दिया है। इस बदलते वैश्विक घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाई हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विधि आधारित वैश्विक ढांचा बना था, उसे रूसी हमले से उपजी स्थिति ने खंड-खंड कर दिया। कोविड महामारी के समय अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की जिस नाकामी के दर्शन हुए थे, उनकी अक्षमता को इस युद्ध ने पूरी तरह उजागर करके रख दिया। यही कारण है कि दुनिया दो खेमों में बंटती दिखी। जब ये संस्थाएं किसी सहमति या संवाद की स्थिति बनाने में असफल रहीं, तब भारत दुनिया की कूटनीति का नया केंद्र बनता हुआ दिखा। इसका अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि यूक्रेन को लेकर जब अमेरिका और रूस एक दूसरे को आंखें दिखा रहे थे, उसी दौरान एक हफ्ते के भीतर अमेरिकी उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रूसी विदेश मंत्री नई दिल्ली का दौरा कर चुके थे।
