सम्पादकीय

उभरती शक्ति के रूप में भारत को अपने अनुरूप विमर्श गढ़ने की आवश्यकता पूर्ति में सक्षम होगा रायसीना डायलाग

Rani Sahu
28 April 2022 3:18 PM GMT
उभरती शक्ति के रूप में भारत को अपने अनुरूप विमर्श गढ़ने की आवश्यकता पूर्ति में सक्षम होगा रायसीना डायलाग
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इस समय पूरी दुनिया उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रही है

हर्ष वी पंत।

इस समय पूरी दुनिया उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रही है। कई ताकतें अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए बेसब्र हुई जा रही हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां उसकी आक्रामकता ने कई देशों को परेशान किया हुआ है। इस क्षेत्र के लिए भले ही अस्थिरता एवं तनाव कोई नई बात न हो, लेकिन यूरोप जैसे अपेक्षाकृत स्थायित्व भरे क्षेत्र में भी इस समय युद्ध की आग भड़की हुई है। यहां यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया को एक तरह से दोफाड़ कर दिया है। इस बदलते वैश्विक घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाई हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विधि आधारित वैश्विक ढांचा बना था, उसे रूसी हमले से उपजी स्थिति ने खंड-खंड कर दिया। कोविड महामारी के समय अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की जिस नाकामी के दर्शन हुए थे, उनकी अक्षमता को इस युद्ध ने पूरी तरह उजागर करके रख दिया। यही कारण है कि दुनिया दो खेमों में बंटती दिखी। जब ये संस्थाएं किसी सहमति या संवाद की स्थिति बनाने में असफल रहीं, तब भारत दुनिया की कूटनीति का नया केंद्र बनता हुआ दिखा। इसका अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि यूक्रेन को लेकर जब अमेरिका और रूस एक दूसरे को आंखें दिखा रहे थे, उसी दौरान एक हफ्ते के भीतर अमेरिकी उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रूसी विदेश मंत्री नई दिल्ली का दौरा कर चुके थे।

बीते करीब एक डेढ़-महीने में दुनिया के तमाम नेता और राजनयिक भारत का दौरा कर चुके हैं। जाहिर है कि यह उभरते हुए वैश्विक ढांचे में भारत की बढ़ती भूमिका का ही प्रमाण है। इसी पृष्ठभूमि में रायसीना डायलाग के सातवें संस्करण का सफल आयोजन हुआ। इसमें दुनिया के करीब सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने विश्व के समक्ष ज्वलंत मुद्दों पर मंथन किया। बीते कुछ वर्षों के दौरान रायसीना डायलाग वैश्विक भू-राजनीति एवं भू-आर्थिकी पर विमर्श के एक प्रमुख मंच के रूप में उभरा है। विश्व इस समय जिन परिस्थितियों से जूझ रहा है, उसमें ऐसे मंच की उपयोगिता कहीं ज्यादा बढ़ गई है। एक ऐसे समय में जब दुनिया में वाद-विवाद बढ़ रहे हों, वहां संवाद और भी आवश्यक हो गया है। इस दृष्टिकोण से रायसीना डायलाग ने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया। यहां रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर इतनी सारगर्भित एवं अर्थपूर्ण चर्चा हुई, जैसी दुनिया में अभी तक किसी देश या मंच पर देखने को नहीं मिली। इस मुद्दे से जुड़े तमाम अंशभागी यहां उपस्थिति रहे, जिन्होंने रायसीना डायलाग के मंच से अपना-अपना पक्ष दुनिया के सामने रखा।
पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि दुनिया की कई शक्तियां भारत को अपने-अपने पाले में खींच रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत इन शक्तियों के साथ अपने समीकरण साधने में सफल रहा है। अच्छी बात यह रही है कि भारत न तो पूरी तरह से किसी एक पाले में गया और न ही उसने तटस्थता जैसा कोई भाव अपनाया। वास्तव में भारत ने यही दर्शाया कि उसका दृष्टिकोण तटस्थ न होकर अपने हितों की पूर्ति करने में सक्षम देश का है। इस दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुखर होकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष रखा। रायसीना डायलाग के मंच पर उन्होंने उसी निरंतरता को कायम रखा। विषय विशेषज्ञता एवं साफगोई के लिए विख्यात जयशंकर ने इस मंच से भी दुनिया को स्पष्ट संकेत दिए कि भारत का नजरिया क्या है। यूरोपीय प्रतिनिधियों द्वारा यूक्रेन के मामले में भारत के लिए रचे गए प्रश्नों के व्यूह को विदेश मंत्री ने अपने अचूक तर्कों से ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने बार-बार दोहराया है कि यूक्रेन पर हमला उचित नहीं और किसी भी विवाद का संवाद से ही समाधान तलाशा जाना चाहिए। उन्होंने विधि आधारित वैश्विक व्यवस्था की दुहाई देने वाले पश्चिमी देशों के इस मामले में दोहरे मापदंड भी गिनाए। उन्होंने कहा कि जो लोग अब रूस पर वैश्विक ढांचे का मखौल उड़ाने का आरोप लगा रहे हैं, वे तब मौन थे, जब अमेरिका ने एकाएक अफगानिस्तान से निकलने का फैसला किया और वहां तालिबान का कब्जा हो गया। उन्होंने यहां तक कहा कि जब चीन भारत की सीमा पर अपना दुस्साहस दिखा रहा था तो पश्चिम ने बिन मांगी सलाह के तौर पर भारत को सुझाया कि चीन से तनाव टालने के लिए वह उससे अपना व्यापार बढ़ाए। जयशंकर ने कहा कि रूस को लेकर भारत ने पश्चिमी देशों को ऐसी कोई सलाह नहीं दी। उन्होंने बहुत संतुलित ढंग से समझाया कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में संतुलित रवैया बहुत आवश्यक है। इसमें सभी की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। समस्या मुद्दों को अपने-अपने नजरिये से देखने के कारण उत्पन्न होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि सशक्त होते भारत का नई आकार लेती विश्व व्यवस्था में कद भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है। बीते दिनों भारत आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने भी कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में आर्थिक वृद्धि की नई धुरी के रूप में उभरने वाला है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। चीन में विकास के चरम अवस्था पर पहुंचने और कोविड से लडख़ड़ाने के बाद भारत ही दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। इसने भारत की जिम्मेदारी को भी बढ़ा दिया है, जिसका वह निर्वहन करने से भी नहीं हिचक रहा। चाहे कोविड महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन की पहुंच के मामले में गरीब देशों के समर्थन में आवाज बुलंद करना हो या फिर यूक्रेन में युद्ध छिडऩे से गेहूं की वैश्विक किल्लत में अपनी ओर से आपूर्ति करने की पहल, भारत के इन कदमों को पूरी दुनिया से सराहना मिली है। कई देशों को भारत ने कोविड रोधी टीका उपलब्ध कराया। मुश्किल में फंसे अफगानिस्तान को अनाज और दवाएं मुहैया कराईं। यहां तक कि चीनी कर्ज के चंगुल में फंसे आर्थिक संकट के शिकार श्रीलंका की मदद से भी पीछे नहीं रहा। ये सभी उदाहरण भारत को एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। भविष्य में भारत के इस उभार की कहानी को आगे बढ़ाने में विमर्श को अपने अनुरूप गढऩे की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी। इसमें रायसीना डायलाग जैसे मंच का महत्व और अधिक बढ़ेगा। जब दुनिया के अधिकांश देश एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, तब दुनिया भारत की आवाज सुनना चाहती है और उसे सुनाने की एक अहम कड़ी के रूप में रायसीना डायलाग का दायरा आने वाले समय में और व्यापक होता दिखेगा।हर्ष वी पंत। इस समय पूरी दुनिया उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रही है। कई ताकतें अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए बेसब्र हुई जा रही हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां उसकी आक्रामकता ने कई देशों को परेशान किया हुआ है। इस क्षेत्र के लिए भले ही अस्थिरता एवं तनाव कोई नई बात न हो, लेकिन यूरोप जैसे अपेक्षाकृत स्थायित्व भरे क्षेत्र में भी इस समय युद्ध की आग भड़की हुई है। यहां यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया को एक तरह से दोफाड़ कर दिया है। इस बदलते वैश्विक घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाई हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विधि आधारित वैश्विक ढांचा बना था, उसे रूसी हमले से उपजी स्थिति ने खंड-खंड कर दिया। कोविड महामारी के समय अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की जिस नाकामी के दर्शन हुए थे, उनकी अक्षमता को इस युद्ध ने पूरी तरह उजागर करके रख दिया। यही कारण है कि दुनिया दो खेमों में बंटती दिखी। जब ये संस्थाएं किसी सहमति या संवाद की स्थिति बनाने में असफल रहीं, तब भारत दुनिया की कूटनीति का नया केंद्र बनता हुआ दिखा। इसका अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि यूक्रेन को लेकर जब अमेरिका और रूस एक दूसरे को आंखें दिखा रहे थे, उसी दौरान एक हफ्ते के भीतर अमेरिकी उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रूसी विदेश मंत्री नई दिल्ली का दौरा कर चुके थे
बीते करीब एक डेढ़-महीने में दुनिया के तमाम नेता और राजनयिक भारत का दौरा कर चुके हैं। जाहिर है कि यह उभरते हुए वैश्विक ढांचे में भारत की बढ़ती भूमिका का ही प्रमाण है। इसी पृष्ठभूमि में रायसीना डायलाग के सातवें संस्करण का सफल आयोजन हुआ। इसमें दुनिया के करीब सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने विश्व के समक्ष ज्वलंत मुद्दों पर मंथन किया। बीते कुछ वर्षों के दौरान रायसीना डायलाग वैश्विक भू-राजनीति एवं भू-आर्थिकी पर विमर्श के एक प्रमुख मंच के रूप में उभरा है। विश्व इस समय जिन परिस्थितियों से जूझ रहा है, उसमें ऐसे मंच की उपयोगिता कहीं ज्यादा बढ़ गई है। एक ऐसे समय में जब दुनिया में वाद-विवाद बढ़ रहे हों, वहां संवाद और भी आवश्यक हो गया है। इस दृष्टिकोण से रायसीना डायलाग ने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया। यहां रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर इतनी सारगर्भित एवं अर्थपूर्ण चर्चा हुई, जैसी दुनिया में अभी तक किसी देश या मंच पर देखने को नहीं मिली। इस मुद्दे से जुड़े तमाम अंशभागी यहां उपस्थिति रहे, जिन्होंने रायसीना डायलाग के मंच से अपना-अपना पक्ष दुनिया के सामने रखा।
पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि दुनिया की कई शक्तियां भारत को अपने-अपने पाले में खींच रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत इन शक्तियों के साथ अपने समीकरण साधने में सफल रहा है। अच्छी बात यह रही है कि भारत न तो पूरी तरह से किसी एक पाले में गया और न ही उसने तटस्थता जैसा कोई भाव अपनाया। वास्तव में भारत ने यही दर्शाया कि उसका दृष्टिकोण तटस्थ न होकर अपने हितों की पूर्ति करने में सक्षम देश का है। इस दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुखर होकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष रखा। रायसीना डायलाग के मंच पर उन्होंने उसी निरंतरता को कायम रखा। विषय विशेषज्ञता एवं साफगोई के लिए विख्यात जयशंकर ने इस मंच से भी दुनिया को स्पष्ट संकेत दिए कि भारत का नजरिया क्या है। यूरोपीय प्रतिनिधियों द्वारा यूक्रेन के मामले में भारत के लिए रचे गए प्रश्नों के व्यूह को विदेश मंत्री ने अपने अचूक तर्कों से ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने बार-बार दोहराया है कि यूक्रेन पर हमला उचित नहीं और किसी भी विवाद का संवाद से ही समाधान तलाशा जाना चाहिए। उन्होंने विधि आधारित वैश्विक व्यवस्था की दुहाई देने वाले पश्चिमी देशों के इस मामले में दोहरे मापदंड भी गिनाए। उन्होंने कहा कि जो लोग अब रूस पर वैश्विक ढांचे का मखौल उड़ाने का आरोप लगा रहे हैं, वे तब मौन थे, जब अमेरिका ने एकाएक अफगानिस्तान से निकलने का फैसला किया और वहां तालिबान का कब्जा हो गया। उन्होंने यहां तक कहा कि जब चीन भारत की सीमा पर अपना दुस्साहस दिखा रहा था तो पश्चिम ने बिन मांगी सलाह के तौर पर भारत को सुझाया कि चीन से तनाव टालने के लिए वह उससे अपना व्यापार बढ़ाए। जयशंकर ने कहा कि रूस को लेकर भारत ने पश्चिमी देशों को ऐसी कोई सलाह नहीं दी। उन्होंने बहुत संतुलित ढंग से समझाया कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में संतुलित रवैया बहुत आवश्यक है। इसमें सभी की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। समस्या मुद्दों को अपने-अपने नजरिये से देखने के कारण उत्पन्न होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि सशक्त होते भारत का नई आकार लेती विश्व व्यवस्था में कद भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है। बीते दिनों भारत आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने भी कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में आर्थिक वृद्धि की नई धुरी के रूप में उभरने वाला है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। चीन में विकास के चरम अवस्था पर पहुंचने और कोविड से लडख़ड़ाने के बाद भारत ही दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। इसने भारत की जिम्मेदारी को भी बढ़ा दिया है, जिसका वह निर्वहन करने से भी नहीं हिचक रहा। चाहे कोविड महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन की पहुंच के मामले में गरीब देशों के समर्थन में आवाज बुलंद करना हो या फिर यूक्रेन में युद्ध छिडऩे से गेहूं की वैश्विक किल्लत में अपनी ओर से आपूर्ति करने की पहल, भारत के इन कदमों को पूरी दुनिया से सराहना मिली है। कई देशों को भारत ने कोविड रोधी टीका उपलब्ध कराया। मुश्किल में फंसे अफगानिस्तान को अनाज और दवाएं मुहैया कराईं। यहां तक कि चीनी कर्ज के चंगुल में फंसे आर्थिक संकट के शिकार श्रीलंका की मदद से भी पीछे नहीं रहा। ये सभी उदाहरण भारत को एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। भविष्य में भारत के इस उभार की कहानी को आगे बढ़ाने में विमर्श को अपने अनुरूप गढऩे की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी। इसमें रायसीना डायलाग जैसे मंच का महत्व और अधिक बढ़ेगा। जब दुनिया के अधिकांश देश एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, तब दुनिया भारत की आवाज सुनना चाहती है और उसे सुनाने की एक अहम कड़ी के रूप में रायसीना डायलाग का दायरा आने वाले समय में और व्यापक होता दिखेगा।
Rani Sahu

Rani Sahu

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