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- नफरत के नतीजतन
भाजपा को अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करना पड़ा और दिल्ली भाजपा के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार को तो पार्टी से बर्खास्त ही करना पड़ा। भाजपा तो क्या, औसतन राजनीतिक दलों के प्रवक्ता निरंकुश हैं। उनके लिए आचार और नैतिकता की कोई 'लक्ष्मण-रेखा' नहीं है। भाजपा के पाले में भगवाधारी चेहरे भी हैं, जो खुद को 'धर्मगुरू' मानते रहे हैं। उन्होंने भी कट्टरता की हदें लांघी हैं। उन्हें भरोसा है कि वे वाचाल होकर ऐसा चरमपंथी दुष्प्रचार करने को स्वतंत्र हैं, क्योंकि कोई भी, उनका कुछ भी, बिगाड़ नहीं सकता। यह मुग़ालता 2014 और फिर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के नाम प्रचंड चुनावी जनादेश हासिल करने के बाद बढ़ा है। भगवाधारी खुद को भाजपा का ही हिस्सा मानते रहे हैं। दोनों घोर हिंदूवादी हैं। हिंदूवादी होना पाप नहीं है, लेकिन 'घोर' किसी भी लिहाज से नैतिक नहीं है। वह दूसरे की आस्था और धर्म को खंडित करता है। भाजपा प्रवक्ताओं ने पैगंबर मुहम्मद के लिए अपमान-सूचक कुछ कहा था। हम उसका उल्लेख करना उचित नहीं मानते। बेशक मुस्लिम मौलानाओं और प्रवक्ताओं ने भी हिंदू देवी-देवताओं को न सिर्फ अपमानित किया है, बल्कि हिंसक धमकियां तक दी हैं-आंखें नोंच लेंगे, जुबां काट देंगे, उंगली और हाथ भी काट देंगे। ये शब्द किस संविधान के हैं और किस लोकतंत्र में बोले जाने चाहिए?
सोर्स- divyahimachal