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- आर्यन की जमानत और...
लोकप्रिय फिल्म अभिनेता 'शाहरुख खान' के पुत्र आर्यन खान की जमानत की अर्जी पर मुम्बई की विशेष अदालत ने नारकोटिक्स ब्यूरो व बचाव पक्ष के वकीलों की दो दिनों की लम्बी बहस के बाद अपना फैसला अगले सप्ताह तक के लिए सुरक्षित रख लिया है जिसकी वजह से 23 वर्षीय युवा आर्यन को पांच दिन और जेल में बिताने पड़ेंगे। कुछ विधि विशेषज्ञों को अदालत का यह निर्णय कुछ अटपटा लग रहा है मगर हकीकत यह है कि आर्यन के मामले में कानूनी प्रक्रिया अपना काम कर रही है। बेशक भारत की न्याय प्रणाली के बारे में यह सच है कि 'न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए'। इस मामले में यह भी स्पष्ट है कि आर्यन एक बड़े बाप का बेटा है। अतः न्याय प्रणाली उसके साथ विशेष रियायती व्यवहार नहीं कर सकती है। कानून के सामने सभी बराबर होते हैं, यह व्यवहार में भारत की न्याय व्यवस्था को इस प्रकार सिद्ध करना होता है कि आम आदमी का विश्वास अदालतों के न्याय पर अडिग रहे। मगर इसका यह अर्थ भी कदापि नहीं होता कि किसी बड़े बाप के बेटे को सिर्फ इसी वजह से प्राकृतिक न्याय के घेरे से दूर रखा जाये। आर्यन को विगत 3 अक्टूबर को नशीले पदार्थ का सेवन करने के आरोप में कुछ अन्य लोगों के साथ समुद्री नौका में पार्टी में शामिल होने के दौरान गिरफ्तार किया गया था। नारकोटिक्स ब्यूरो के अनुसार इस पार्टी में प्रतिबन्धित नशीले पदार्थों का सेवन हो रहा था। इस पार्टी के आयोजकों से अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। एक दीगर सवाल यह भी है कि इस पार्टी का मुख्य आयोजक कौन था जो देश की युवा पीढ़ी को नशे की लत लगाने के काम में परोक्ष रूप से जिम्मेदार था। निश्चित रूप से नशे की आदत देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रही है मगर इसी से जुड़ा हुआ सवाल है कि भारत में नशीले पदार्थों की खपत के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं जो हजारों करोड़ रुपए के नशीले पदार्थ आयात कर देशभर में उनका व्यापार करते हैं। पिछले दिनों गुजरात के मून्द्रा बन्दरगाह पर 3000 किलो नशीला पदार्थ पकड़ा गया था, इस कारोबार के पीछे छिपे हुए चेहरों को जब तक बेपर्दा नहीं किया जायेगा तब तक भारत के छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में फैले नशे के कारोबारी जाल का पर्दाफाश नहीं हो सकता। हम जानते हैं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते से आने वाले नशीले पदार्थों ने पंजाब की पूरी युवा पीढ़ी को किस प्रकार नशे की लत में डुबो दिया था। इससे छुटकारा पाने के उपाय अभी तक जारी हैं। जहां तक आर्यन का सवाल है तो उसके पास से कोई नशीला पदार्थ जब्त नहीं किया गया है परन्तु नारकोटिक्स ब्यूरो उसके मोबाइल फोन के वार्तालाप देख कर आरोप लगा रहा है कि उसके सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारियों से जुड़े हो सकते हैं। बेशक ब्यूरो आर्यन की जमानत के खिलाफ दलीलें रखने के लिए एेसे आरोप लगा सकता है मगर भारत के आम नागरिक की सहानुभूति आर्यन के प्रति इस वजह से हैं कि उसकी आयु बहुत कम है और उसकी शिक्षा-दीक्षा सुसंस्कृत तरीके से हुई है। अतः वह सोहबत की वजह से नशे का आदि तो हो सकता है मगर कारोबारी नहीं। वास्तव में भारत में गांजे, चरस या सुल्फे का नशा धार्मिक स्थलों से लेकर गांवों तक में होता है। राज्य सरकारें स्वयं भांग के ठेके नीलाम करती हैं और गांजा या चरस इन्हीं दुकानों से चोरी-छिपे आसानी से सुलभ हो जाता है। इसके साथ ही उत्तर भारत के तराई के इलाकों में भांग की फसल खुद-ब-खुद ही खाली पड़ी जमीनों पर उग जाती है जिसकी वजह से भांग की पत्तियों को हाथ में रगड़ कर सुल्फे के शौकीन स्वयं ही लोगों की नजरें बचा कर अपना इंतजाम कर लेते हैं। इसी वजह से यह मांग उठती रही है कि सुल्फे या गांजे को नशीले पदार्थों की प्रतिबन्धित सूचि से बाहर निकाला जाये क्योंकि लोग इसका सेवन शराब या मदिरा की भांति ही करते हैं। दूसरे आर्यन के मामले में उसके पास से नशीले पदार्थ की बरामदगी न होने की वजह से प्रथम दृष्टया यही सिद्ध होता है कि वह नशे का आदि है जिसकी वजह से न्यायिक देखरेख में उसका सुधार किये जाने की जरूरत है। मगर नारकोटिक्स ब्यूरो दलील दे रहा है कि उसके सम्बन्ध नशे के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारियों से भी हो सकते हैं। यह विषय निश्चित रूप से न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का है जिसे वह पुख्ता सबूतों के आधार पर ही स्वीकार करेगा। मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि आर्यन की सोहबत में कुछ खराबी जरूर है जिसकी वजह से वह नशे की पार्टी में जाने को तैयार हो गया। न्यायालय की नजर में वह मात्र एक 23 वर्षीय युवा है किसी बड़े बाप का बेटा नहीं और इसी नजरिये से अदालत का फैसला भी आना चाहिए क्योंकि जवानी की रौ में वह रास्ता भटक गया है। मगर इस मामले से एक बात साफ हो गई है कि देश की युवा पीढ़ी खास कर अमीर मां-बाप की औलाद नशे की तरफ आकर्षित हो रही है।संपादकीय :रूस, भारत और तालिबानचीन की अरुणाचल पर नजरेंदशहरे का व्यावहारिक अर्थ!बच्चों के लिए 'सुरक्षा कवच'महबूबा का 'खान' मिथककल, आज और कल मुबारकआर्यन के मामले में नारकोटिक्स ब्यूरो के साथ जांच में जिस तरह कुछ राजनीतिक लोगों ने सक्रिय भूमिका अदा की उसका भी संज्ञान लिये जाने की जरूरत है क्योंकि न्याय किसी प्रकार की राजनीति का विषय नहीं है बल्कि यह पूर्ण रूप से 'अराजनीतिक' क्षेत्र है। इससे जांच एजेंसियां अनावश्यक रूप से बदनाम होती हैं और निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगते हैं। इस मामले को कुछ लोग हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से देखनी की हिमाकत भी कर रहे हैं जो भारत की न्याय प्रणाली को बौना दिखाने की नाकाम कोशिश ही कही जायेगी क्योंकि स्वतन्त्र भारत में अभी तक कई बार देश के प्रधान न्यायाधीश मुस्लिम न्यायविद भी रहे हैं।