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सम्पादकीय
आर्यन खान ड्रग्स केस के गवाह प्रभाकर सेल की मौत एक 'हॉरर फ़िल्म' दिखा रही है!
Gulabi Jagat
3 April 2022 5:18 AM GMT
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मुंबई में रहने वाला एक अदना सा इंसान होगा
बिपुल पांडे।
कहने के लिए आप कह सकते हैं कि प्रभाकर सेल (Prabhakar Sail) को भला कौन जानता है? मुंबई में रहने वाला एक अदना सा इंसान होगा. जो पेशे के तौर पर हजारों बॉडीगार्ड्स की तरह किसी 'बड़े आदमी' के साथ काम किया करता होगा. चेंबूर के मेहुल इलाके में उसका एक घर था. घर पर अचानक ही उसे दिल का दौरा पड़ा. आकस्मिक मौत हुई और वो इस दुनिया से चल बसा. लेकिन इस बात से आपको फर्क जरूर पड़ना चाहिए कि बॉलीवुड स्टार शाहरूख खान (Shah Rukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan) के ड्रग्स केस में प्रभाकर सेल मुख्य गवाह था और अब एक ऐसे ड्रग्स केस पर असर जरूर पड़ सकता है, जिसे पूरा देश जानना चाहता है.
दरअसल 70 एमएम पर्दे के पीछे, ड्रग्स ही वो रोग नजर आता है, जिसकी पटकथा में नायक भी खलनायक नजर आता है, खलनायक बनकर भी खुश नजर आता है. और तो और, ये एक ऐसी पटकथा होती है, जिसमें टर्निंग प्वाइंट खत्म नहीं होते, जो 'क्राइम थ्रिलर' की तरह नजर आता है, लेकिन 'हॉरर फिल्म' बनकर सामने आता है.
बावजूद इसके, इस रीयल फिल्म के पीछे कोई पहेली नहीं है. अगर आप सच में बॉलीवुड की काली दुनिया से नजरें नहीं चुराना चाहते हैं. बस पर्दे पर ही एक्टर को देखना चाहते हैं और उसकी असली दुनिया से परिचित होना नहीं चाहते हैं, तो प्रभाकर सेल की मौत, यकीनन आपके लिए सिर्फ एक समाचार है. यदि आप एक आम इंसान की मौत के पीछे एक चमक-दमक से भरी इंडस्ट्री का काला सच देखना चाहते हैं, उस काली सच्चाई के पीछे छिपे चेहरे को बाहर लाना चाहते हैं, या फिर उस काली दुनिया से आप टकराना चाहते हैं, देश की भावी पीढ़ी को बचाना चाहते हैं, तो प्रभाकर सेल की मौत पर आपके अंदर संवेदना जरूर जगनी चाहिए. क्योंकि उसे नियति ने एक केस से जोड़ दिया था, जिस केस की परतें खोलने में प्रभाकर एक अहम कड़ी हो सकता था.
प्रभाकर सेल की मौत इतनी सेंसेशनल क्यों है?
मुंबई का एक बॉडीगार्ड प्रभाकर सेल 1981 में महाराष्ट्र में कहीं पैदा हुआ था और वो एक प्रोफेसनल बॉडीगार्ड था. प्रभाकर के वकील तुषार खंडारे के मुताबिक चेंबूर के मेहुल इलाके में उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. परिवारवालों ने भी उसकी आकस्मिक मृत्यु पर कोई संदेह व्यक्त नहीं किया. एक मृत्यु के पीछे कोई सवाल नहीं है. खास बात सिर्फ ये है कि वो आर्यन खान ड्रग्स केस के चश्मदीद किरण गोसावी का बॉडीगार्ड था. जो सेक्युरिटी गार्ड से प्रोमोट होकर बॉडीगार्ड बना था और उसने वो सबकुछ बताया था, जो एक हाई प्रोफाइल केस के सामने आने के 34 घंटे के अंदर घटा था.
वो शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ड्रग्स केस में मुख्य गवाह था और उसकी वजह से क्रूज ड्रग्स केस में कई टर्न और ट्विस्ट आए थे. उसने एनसीबी के डायरेक्टर समीर वानखेड़े पर 8 करोड़ रुपये की घूसखोरी का सनसनीखेज आरोप लगाया था. जिस आरोप की परत खुलनी अभी बाकी है और जिस केस को खोलने में अब अड़चन आ सकती है.
प्रभाकर को मौत से पहले ही मौत क्यों दिखने लगी थी?
प्रभाकर सेल ने आर्यन केस में एक हलफनामा दिया था. जिसमें उसने दावा किया था कि 2 अक्टूबर की सुबह 7:30 बजे से लेकर 3 अक्टूबर की शाम तक वह सीधे तौर पर इस केस से जुड़ा हुआ था. उसने सबकुछ अपनी आंखों के सामने होते देखा था और उसे डर था कि सबकुछ देखने की वजह से ही NCB उसे या तो गायब कर देगी या मार देगी. उसने कहानी का ब्योरा देते हुए बताया था कि 2 अक्टूबर 2021 की रात आर्यन को ड्रग्स केस में क्रूज से हिरासत में लिया गया था. जिसके बाद शाहरुख खान की मैनेजर पूजा डडलानी आकर किरण गोसावी से मिली थीं. (जिस किरण गोसावी का वो बॉडीगार्ड था.) उसने ये भी आरोप लगाया था कि आर्यन पर केस ना बनाने के लिए गोसावी के जरिए 25 करोड़ रुपये की घूस मांगी गई थी, जिसमें से 8 करोड़ रुपये वानखेड़े को मिलने थे.
उसने इस घूसखोरी की रकम का बहुत लंबा चौड़ा फ्लो बताया था और इसी कड़ी का एक बार वो हिस्सा भी बना. गोसावी ने उसे इस केस के एक किरदार सैम को पचास लाख रुपये का कैश देने के लिए भेजा था. प्रभाकर ने मुंबई के एक होटल में उसे कैश पहुंचा तो दिया लेकिन सैम ने जब नोट गिने तो वो 38 लाख रुपये ही निकले. सवाल उठता है कि क्या 25 करोड़ में से 12 लाख रुपये की ये ही मिसिंग लिंक उसकी जान जाने की वजह बन सकता था? जिसका उसे डर था? खैर, ये इन्वेस्टिगेशन का विषय है और वो भी अगर आरोप लगें, तब. मूल विषय आर्यन ड्रग्स केस है, जो वक्त के साथ बिखर चुका है.
आर्यन खान और उसके दोस्त अरबाज मर्चेंट के खिलाफ अभी तक पुलिस कोई सबूत नहीं जोड़ पाई है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है. इसके लिए अफसरों को कोर्ट ने फटकार लगाई है. इस फटकार के एक दिन बाद प्रभाकर की आकस्मिक मौत हो गई. इस केस का खुलासा करने वाले एनसीबी के अफसर समीर वानखेड़े को लेकर घनघोर राजनीति हुई और उन्हें केस से हटा दिया गया. समीर वानखेड़े के मामले में अलग जांच चल रही है और अभी विभाग किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. अब सवाल ये उठता है कि हर बार ऐसा ही क्यों होता है? बॉलीवुड की कोई भी समस्या आने पर खिचड़ी क्यों पकाई जाने लगती है?
बॉलीवुड, ड्रग्स और एक गुमनाम एक्ट्रेस कृतिका की कहानी
2013 में रज्जो नाम की फिल्म आई थी. इसमें कंगना रनौत की दोस्त की भूमिका में कृतिका चौधरी नजर आई थी. बाद में वो बालाजी प्रोडक्शंस के कई सीरियल्स में नजर आई. 12 जून, 2017 को अंधेरी में उसके फ्लैट से उसकी सड़ी गली लाश निकली. कई दिनों से कमरे का एसी चल रहा था, घर से बदबू आ रही थी. वो 27 साल की थी, पति से तलाक हो चुका था. उसकी निर्मम हत्या हुई थी, ड्रग्स से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन जब जांच हुई तो कृतिका की मौत के पीछे भी ड्रग्स का ही कार्टल निकला.
सीसीटीवी की जांच के बाद मुंबई पुलिस ने शकील नसीम और वासुदास नाम के दो ड्रग पेडलर्स को पकड़ा था. उन दोनों ने कृतिका के ड्रग्स की लत की कहानी बताई थी. दोनों ने बताया कि कृतिका का ड्रग्स लेने वालों के बीच उठना-बैठना था. वो हर महीने ड्रग्स खरीदती थी और उस पर 6000 रुपये बकाया था. सिर्फ 6000 रुपये को लेकर आरोपियों का कृतिका के साथ झगड़ा हुआ था. एक दिन सुलह करने के बहाने दोनों उसके घर पहुंचे. उससे पैसे मांगे तो कृतिका ने नोटबंदी का हवाला दिया और घर में पैसे होने से इनकार किया. इसके बाद दोनों आरोपियों ने बघनखा (या फिर उंगलियों में पहना गया कोई हथियार) से उसकी हत्या कर दी. हत्या के बाद कमरे की एसी चला दी, ताकि शव सड़ने के बाद भी सारी बदबू कमरे के अंदर ही घूमती रहे. फिर वे दोनों फरार हो गए.
ये कहानी इसलिए सुननी जरूरी थी, ताकि पता चले कि बॉलीवुड में ड्रग्स की पैठ कहां तक है. जिसको कास्टिंग काउच के डर से घरवाले मुंबई नहीं भेजना चाहते थे, वो भी सिल्वर स्क्रीन पर पहचान बना पाने से पहले ड्रग्स की शिकार हो गई. इसी लत के साथ जीने लगी. इसी लत के लिए जान गई. क्या उसने इस खतरे को कई स्टार्स की लाइफ स्टाइल को देखकर उठाया होगा, जिनके करियर पर ड्रग एडिक्ट होने का कोई निगेटिव इम्पैक्ट नहीं पड़ा?
ड्रग एडिक्ट होने का किसी एक्टर के करियर पर असर पड़ता है?
बॉलीवुड में ड्रग्स केस को देश भले ही दिलचस्पी से पढ़ता हो, लेकिन ड्रग्स केस से कोई भी एक्टर अपना फैन नहीं खोता, किसी को नुकसान नहीं होता. इसके कई उदाहरण हैं. जैसे- 2020 में कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया को ड्रग्स केस में गिरफ्तार किया गया. उनके घर से 86.50 ग्राम गांजा बरामद हुआ था. दोनों को जमानत मिल गई. थोड़ा पीछे चलें तो फिरोज खान जैसे बड़े प्रोड्यूसर-एक्टर के संतान फरदीन खान के करियर पर भी ड्रग्स केस का कोई असर नहीं पड़ा. 2001 में फरदीन खुद ड्रग लेने के लिए पेडलर से मिलने जा पहुंचे थे और पकड़े गए. 5 दिन में उनकी जमानत हो गई. नशा छोड़ने के लिए रिहैब भी ज्वॉइन किया. लेकिन उनका करियर खुद की कमियों से खास ऊंचाई तक नहीं जा सका.
बॉलीवुड के किसी बड़े घराने की औलाद ड्रग्स के दलदल में फंसी हो, ऐसा पहला केस शायद संजय दत्त का ही था. अपने करियर के शुरुआती दौर में ही वो ड्रग्स के जाल में फंस गए थे. लेकिन डी-एडिक्शन के बाद की उनकी पारी बहुत ही शानदार रही. साजन, खलनायक, वास्तव, मुन्ना भाई सीरीज की फिल्मों में उन्हें जबर्दस्त कामयाबी मिली. यहां तक कि उनके बायोपिक 'संजू' ने उनके ड्रग एडिक्शन पर भी सहानुभूति बटोर ली. हाल फिलहाल में ड्रग्स केस को लेकर दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर और अर्जुन रामपाल समेत कई सितारों से पूछताछ हो चुकी है. अर्जुन रामपाल के घर पर छापा भी पड़ चुका है. क्या इससे ये समझा जाए कि बॉलीवुड में ड्रग्स की जिस सड़ांध पर पुलिस लीपापोती करती है, उसे समाज ने भी मूक स्वीकृति दे रखी है?
शाहरुख खान का मन 'बैड ब्वॉय' के लिए क्यों मचलता है?
अब बॉलीवुड के रसूखदार माता-पिता को समझते हैं. सवाल ये है कि क्या बॉलीवुड का नशा, बॉलीवुड की हस्तियों को सच में नशेड़ी बना देता है? आर्यन खान का ड्रग्स केस में नाम आने के बाद शाहरुख खान और उनकी पत्नी गौरी खान के एक पुराने इंटरव्यू की क्लिप बहुत वायरल हुई थी. इस इंटरव्यू में शाहरुख ये कहते हुए नजर आए कि वो चाहते हैं की उनका बेटा "bad boy" बने! उनका बेटा सेक्स और ड्रग्स एंज्वॉय करे और यह सब छोटी उम्र में शुरू करे तो ज्यादा बेहतर होगा.
सवाल ये उठता है कि आर्यन को लंदन के सेवन ऑक्स स्कूल से 12वीं पढ़ाने, यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स कराने, सिनेमैटिक आर्ट्स, फिल्म एंड टेलीविजन प्रोडक्शन, स्कूल ऑफ सिनेमैटिक आर्ट्स की डिग्री दिलाने का शाहरुख क्या अपने बेटे से ये ही रिजल्ट चाहते थे? अगर चाहते थे तो उन्हें शायद सही रिजल्ट मिला. यानी उन्होंने खुशी-खुशी अपने बेटे को जेल जाते देखा होगा. उसे जेल से निकालने में हर हथकंडे अपनाने में उन्हें मजा भी आया होगा. ये ऐसे सच हैं जिसे सोचकर ही एक इंसान का माथा भन्ना जाए.
देश को सिर्फ इस बात पर फोकस करना चाहिए कि सिर्फ छह हजार रुपये के लिए कृतिका नाम की एक एक्ट्रेस भी मारी जाती है क्योंकि पूरी मशीनरी जुटने के बाद भी आर्यन ड्रग्स केस में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाती. महीना के बाद महीना गुजरता जाता है. गवाह मुकरते जाते हैं या उनकी मौत हो जाती है. ना तो इस देश में ड्रग्स का कार्टल पकड़ा जाता है, ना कंज्यूमर को रोका जा सकता है. आखिर ये स्वाभाविक है या साजिश?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Gulabi Jagat
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