सम्पादकीय

केरल की 'आर्या राजेन्द्रन' और भारत की राजनीति

Gulabi
27 Dec 2020 3:52 PM GMT
केरल की आर्या राजेन्द्रन और भारत की राजनीति
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भारत के जनमानस को एक सूत्र में जोड़ा और आठवीं शताब्दी में विखंड होती भारतीय मूल ब्रह्म चेतना को प्रज्ज्वलित किया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत का केरल राज्य इस देश का सांस्कृतिक मुकुट और राजनीतिक वेदशाला के रूप में इस प्रकार प्रतिष्ठापित है कि इस धरती में जन्म लेने वाले आदिशंकराचार्य ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में 'अद्वेत वेदान्त' के सिद्धांत को जागृत कर धर्म की स्थापना के साथ ही भारत के जनमानस को एक सूत्र में जोड़ा और आठवीं शताब्दी में विखंड होती भारतीय मूल ब्रह्म चेतना को प्रज्ज्वलित किया। यह कार्य उन्होंने मात्र 30 वर्ष तक की आयु में ही पूरा करके भारत को उसकी जड़ों से जोड़ते हुए सर्वत्र फैली सनातन संस्कृति के विलुप्त होते चिन्हों को संकलित कर उन्हें लोक अभिव्यक्ति में परिवर्तित कर डाला। आज का भारत आदिशंकराचार्य का उस धर्म मीमांसा का प्रतिफल है जिसे पकड़ कर इसके लोग स्वयं के आस्तिक व धार्मिक होने का दम्भ भरते हैं। आदिशंकराचार्य भारतीय इतिहास के अभी तक के सबसे बड़े तर्कशास्त्री भी हुए हैं।


केरल में यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है जिसका असर आधुनिक लोकतान्त्रिक भारत की राजनीति पर भी पड़ा है। संभवतः इसी वजह से इस राज्य को राजनीतिक प्रयोगशाला का भी दर्जा दिया गया। यह प्रयोगशाला इस प्रकार रही कि स्वतन्त्र भारत में जब पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का एकछत्र शासन था तो यहां के लोगों ने प्रखर समाजवादी चिन्तनधारा की कम्युनिस्ट पार्टी को चुना। यह विरोधाभास नहीं है कि इस राज्य की व्यवहार में हिन्दू परंपराओं का कड़ाई से पालन करने वाली अधिसंख्य जनता ने राजनीति में समाजवादी विचारों को प्रश्रय दिया। इसका कारण यही था कि इस राज्य के लोगों में सैद्धांन्तिक आधार पर तर्क करने की शक्ति जन्मजात रूप से प्रस्फुटित रहती थी। यही वजह है कि इसी राज्य में पिछड़े वर्ग में जन्मे श्रीनारायण गुरु ने सामाजिक आन्दोलन चला कर आम लोगों की सोच को और अधिक वैज्ञानिक बनाने में सफलता प्राप्त की। अतः केरल में कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रादुर्भाव को हम इसके धार्मिक चरित्र और सामाजिक सरोकारों से बांध कर नहीं देख सकते।

स्वतन्त्र भारत की राजनीति का यह भी एक परम सत्य है कि इस देश में केवल दो ही राजनीतिक दल ऐसे हैं जिन्हें काडर आधारित या कार्यकर्ता मूलक कहा जा सकता है। ये पार्टियां निश्चित रूप से जनसंघ (भाजपा) व कम्युनिस्ट पार्टी ही रही हैं। इन पार्टियों में बहुत छोटी उम्र से ही पार्टी कार्यकर्ता सिद्धांतों के आधार पर तैयार किये जाते हैं। इसी वजह से पूरा देश इस खबर से चौंक गया है कि केरल की राजधानी तिरुवनन्तपुरम महानगर पालिका की महापौर केवल 21 वर्ष की बीएससी. द्वितीय वर्ष की छात्रा 'आर्या राजेन्द्रन' होगी। एक साधारण 'इलैक्ट्रिशियन' की सुपुत्री आर्या इस पद पर बैठने वाली देश की सबसे युवा महापौर होंगी।

वैसे केरल को देश का सबसे युवा मुख्यमन्त्री देने का भी गौरव प्राप्त रहा है। 1978 में जब पूर्व केन्द्रीय रक्षामन्त्री श्री ए.के. अंटोनी केरल के मुख्यमन्त्री बने थे तो वह भी देश के पहले सबसे युवा मुख्यमन्त्री थे, हालांकि उनकी उम्र तब 33 वर्ष के करीब थी लेकिन 21 वर्ष की उम्र में ही आर्या को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी इसीलिए इस पद पर बैठा रही है क्योंकि वह इस पार्टी की बाल्यावस्था से ही समर्पित कार्यकर्ता रही हैं। आर्या जब कक्षा पांच में पढ़ती थीं तो वह मार्क्सवादी पार्टी की बाल शाखा 'बालासंघम्' की सदस्य थी। बाद में बड़ी कक्षा में जाने पर वह बालासंघम् की जिला अध्यक्ष बनी और पिछले दो वर्ष से इसकी राज्य अध्यक्ष हैं। शहर के कालेज में बीएससी (गणित) की द्वितीय वर्ष की छात्रा होते हुए उन्होंने नगर निगम चुनाव लड़ा और वह विजयी रहीं। इन चुनावों में संयोग से मार्क्सवादी पार्टी की महापौर पद के लिए चिन्हित अन्य महिला प्रत्याशी विजय प्राप्त नहीं कर सकीं।

केरल में स्थानीय निकायों में पचास प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित रहते हैं और क्रमवार ढंग से महिला व पुरुष महापौर पद पर पांच-पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। अतः पार्टी ने आर्या को इस पद के लिए उपयुक्त जान कर उनका नाम आगे बढ़ा दिया। वर्तमान राजनीति में यह पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में राजनीति हर सामाजिक पक्ष का महत्वपूर्ण हिस्सा है। राष्ट्र का विकास भी इसी राजनीति से गुंथा हुआ है क्योंकि अन्ततः राजनीति ही तय करती है कि देश की शिक्षा नीति से लेकर स्वास्थ्य व आर्थिक नीतियां क्या होंगी। अतः छात्र जीवन से ही राजनीति को समझना प्रत्येक नागरिक के लिए जरूरी हो जाता है। इस मामले में भाजपा व कम्युनिस्टों की दूरदर्शिता काबिले तारीफ है कि ये पार्टियां बचपन से ही भविष्य के नागरिकों को राजनीति के लिए तैयार करती हैं। बेशक इनके सिद्धान्त एक दूसरे के धुर विरोधी हों मगर ये राष्ट्र के प्रति भविष्य नागरिकों में जिम्मेदारी का एहसास बचपन से की भरने का काम करती हैं। यदि ऐसी सिद्धान्तवादी राजनीति की संरचना भारत में हो जाये तो हम अपने देश को कई प्रकार की बुराइयों से दूर रख सकते हैं। जिस दल बदल के लिए कानून बन जाने के बावजूद हम छुटकारा पाने में असमर्थ दिखाई पड़ते हैं उसका इलाज भी यही काडर आधारित राजनीति है। केरल में दल बदल के मामले इसीलिए वजह से नहीं होते हैं।

2011 में जब वाम मोर्चे को मार्क्सवादी पार्टी के मुख्यमन्त्री वी.एस. अच्युतान्नदन् को मात्र दो विधायकों के अन्तर से बहुमत नहीं मिल पाया तो इस राज्य में दल बदल की कोई हरकत नहीं हुई और अगले पांच साल तक विपक्षी यूडीएफ मोर्चे की ओमन चेंडी सरकार बेखटके चलते रही। संयोग से तिरुवन्नतपुरम महापालिका में भी इस बार वाम मोर्चा 100 सदस्यीय सदन में केवल 51 सीटें ही जीता है जो बहुमत के ठीक मुहाने पर है मगर किसी भी पार्टी को इस बात का खतरा नहीं है कि उसका कोई सदस्य किसी लालच में आकर पाला बदल सकता है। यह सब काडर आधारित राजनीति का ही परिणाम है।


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