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केंद्र सरकार को चीन की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए, वर्ना जल प्रलय का असर परमाणु बम से भी भयंकर होगा।
पिछले एक हफ्ते से जैसे ही सियांग नदी का पानी मटमैला होना शुरू हुआ, उसके किनारे बसे लोगों में आशंका और भय समा गया है। पहले भी जब-जब नदी का पानी गंदला हुआ, इस तेज गति वाली नदीं में ऊंची-ऊंची लहरें उठीं और सैकड़ों लोगों के खेत-घर उजड़ गए। इससे पहले अक्तूबर-2017, दिसंबर-2018 और वर्ष 2020 में भी इस नदी का पानी पूरी तरह काला हो गया था और इसका खामियाजा यहां के लोगों को महीनों तक उठाना पड़ा था।
सियांग नदी का उद्भव पश्चिमी तिब्बत के कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील से दक्षिण-पूर्व में स्थित तमलुंग त्सो (झील) से हुआ है। तिब्बत में 1,600 किलोमीटर के रास्ते में इसे यरलुंग त्संगपो कहते हैं। भारत में दाखिल होने के बाद इसे सियांग नाम से जाना जाता है। आगे 230 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह लोहित नदी से जुड़ती है। अरुणाचल के पासीघाट से 35 किलोमीटर नीचे उतरकर यह दिबांग नदी से जुड़ती है। फिर यह ब्रह्मपुत्र में परिवर्तित हो जाती है।
सियांग नदी में उठती रहस्यमयी लहरों के कारण लोगों में भय व्याप्त हो जाता है। आम लोग इसके पीछे चीन की साजिश मानते हैं। सभी जानते हैं कि चीन अरुणाचल प्रदेश के बड़े हिस्से पर दावा करता है और यहां वह आए दिन कुछ-न-कुछ हरकतें करता रहता है। इसी साल एक नवंबर की रात सियांग से तेज आवाजें आने लगीं और देखते ही देखते नदी का पानी गहरा काला और गाढ़ा हो गया। नदी का पानी पीने के लायक भी नहीं रहा। वहां मछलियां भी मर रही हैं।
नदी के पानी में सीमेंट जैसा पतला पदार्थ होने की बात जिला प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में कही थी। सनद रहे, सियांग नदी के पानी से ही अरुणाचल प्रदेश की प्यास बुझती है, तब संसद में भी इस पर हल्ला हुआ था। चीन ने कहा था कि उसके इलाके में 6.4 तीव्रता वाला भूकंप आया था, संभवतया यह मिट्टी उसी के कारण नदी में आई होगी। हालांकि भूगर्भ वैज्ञानिकों के रिकॉर्ड में ऐसा कोई भूकंप उस दौरान चीन में महसूस नहीं किया गया था।
सियांग नदी में यदि कोई गड़बड़ होती है, तो अरुणाचल प्रदेश की बड़ी आबादी का जीवन संकट में आ जाता है। पीने का पानी, खेती, मछली-पालन सभी कुछ इसी पर निर्भर हैं। सबसे बड़ी बात सियांग में प्रदूषण का सीधा असर ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल नदी और उसके किनारे बसे सात राज्यों के जनजीवन व अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। असम के लखीमपुर जिले में पिछले साल आई कीचड़ का असर आज भी देखा जा रहा है। वहां के पानी में आज भी आयरन की मात्रा सामान्य से अधिक पाई जा रही है।
तिब्बत में यारलुंग सांगपो (सियांग) नदी को शिनजियांग प्रांत के ताकलीमाकान की ओर मोड़ने के लिए चीन दुनिया की सबसे लंबी सुरंग के निर्माण की योजना पर काम कर रहा है। हालांकि सार्वजनिक तौर पर चीन ऐसी किसी योजना से इनकार करता रहा है। पर यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन ने इस नदी को जगह-जगह रोककर यूनान प्रांत में आठ जल-विद्युत परियोजनाएं शुरू की हैं, क्योंकि इस नदी का सारा प्रवाह नियंत्रण चीन के हाथ में है।
मई-2017 में चीन भारत के साथ सीमावर्ती नदियों की बाढ़ आदि के आंकड़े साझा करने से इनकार कर चुका है। वह जो आंकड़े हमें दे रहा है, वह किसी काम का नहीं है। वैसे यह भी सच है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर हिमालय के ऊपरी हिस्से सर्वाधिक संवेदनशील हैं और इसका असर वहां से निकलने वाली नदियों पर तेजी से पड़ रहा है। भले ही चीन के वादों के आधार पर केंद्र सरकार भी कहे कि चीन अरुणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर कोई खनन कार्य नहीं कर रहा है।
लेकिन हांगकांग से प्रकाशित साउथ चाइन मार्निंग पोस्ट की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि अरुणाचल सीमा से सटे क्षेत्र में वह खनन कार्य कर रहा है, क्योंकि उसे स्वर्ण अयस्क के करीब 60 अरब डॉलर के भंडार मिले हैं। इसलिए सियांग नदी के पानी के मटमैले होने या ऊंची होने के पीछे चीन की हरकतें हो सकती हैं। केंद्र सरकार को चीन की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए, वर्ना जल प्रलय का असर परमाणु बम से भी भयंकर होगा।
सोर्स : अमर उजाला
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