सम्पादकीय

सेना, समाज और रंग

Rani Sahu
25 March 2022 6:45 PM GMT
सेना, समाज और रंग
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बीता सप्ताह रंगों से जुड़ा रहा। होली के अलावा भी रंगों का प्रदर्शन पूरा सप्ताह देखने को मिला

बीता सप्ताह रंगों से जुड़ा रहा। होली के अलावा भी रंगों का प्रदर्शन पूरा सप्ताह देखने को मिला। होली के दिन हर गली, नुक्कड़, शहर, चौराहे पर नौजवान, बुजुर्ग और बच्चे हाथों में पिचकारी और रंगों की पुडि़या लिए एक-दूसरे को रंगते हुए प्रेम सद्भावना का संदेश बांटते हुए नजर आए। ढोल-नगाड़ों और डीजे की धुनों पर थिरकते, खुशी में मदहोश लोगों को देखकर ऐसे लग रहा था कि ऐसी खुशियां एवं माहौल हर दिन क्यों नहीं होता। यह हमारे देश की खूबसूरती है कि हमारे त्यौहार मौसम तथा फसलों से जुड़े हैं। होली सर्दी से गर्मी तथा खेतों में लहलहाती फसल को देखकर खुशियां मनाने का एक तरीका है। इसी तरह दीपावली, दशहरा, लोहड़ी, बैसाखी, ईद हर त्यौहार के पीछे मौसम और फसलों का महत्व जुड़ा हुआ है। रंगों के त्योहार होली से एक दिन पहले होलिका दहन के दिन हम प्रण लेते हैं कि आओ सारी बुराइयों, द्वेष, दुर्भावना और घृणा को होलिका दहन की पवित्र अग्नि में स्वाहा करें तथा अगले दिन, सुबह की नई किरण के साथ रंग-बिरंगे, रंगों से एक दूसरे को प्रेम भावना का संदेश दें तथा सद्भावना पूर्ण समाज का निर्माण करें। होली के अलावा जो बीते सप्ताह दूसरे रंगों की चर्चा रही, वह थी भगवा और केसरिया (बसंती)।

हां वैसे भगवा और केसरिया एक ही रंग है, पर राजनीतिक दृष्टि से जब भाजपा ने चार राज्यों में जीत के बाद हिंदुत्व के निशान भगवा को लहराया तो पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अपनी अप्रत्याशित जीत के बाद इन रंगों की लड़ाई में शहादत और वीरता के रंग केसरिया को भगत सिंह के बसंती तथा किसानों की सरसों से जोड़कर पीला बना दिया। अगर आप रंगों का आकलन करें तो हर रंग की क्षेत्र, जाति और धर्म के अनुसार अपनी विशेषता है। हरा रंग मुस्लिम का, तो भगवा हिंदुओं का, सफेद ईसाइयों का। हरा खुशहाली का, लाल शहादत का, तो सफेद उन्नति और तरक्की का। नीला लड़कों का, तो गुलाबी लड़कियों का।
नीला बहुजनों का, लाल समाजवादियों का, भगवा भाजपा का, तो अब बसंती या पीला आम आदमी पार्टी का। पर इस सबसे अलग होली में जिस तरह से किसी भी रंग में किसी धर्म, जाति, क्षेत्र के बारे में सोचे बिना, खुले मन से प्यार, भावना से एक दूसरे के गालों में कोई भी रंग लगाकर खुशियां मनाते हैं, उसी तरह सेना में भी रंगों के साथ किसी विशेष समुदाय को जोड़े बिना हर रंग को बराबर तवज्जो दी जाती है। एक सैनिक की वर्दी में पेंट और शर्ट हरी, खाकी, सफेद, काली और चितकबरी होती है तो सिर पर टोपी हरी, काली, केसरिया, मैरून एवं खाकी तथा पांव में काले व सफेद जूते, तो कमर पर काली और हरी बेल्ट के अलावा सफेद या काले बेस पर लाल, पीले, नीले, हरे आदि अलग-अलग रंग की स्ट्रिप्स के साथ कमरबंद। सैनिक अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग तरह की वर्दी पहनता है तो उसकी वर्दी के रंगों से किसी विशेष समुदाय या क्षेत्र से संबंध नहीं होता। वह सिर्फ और सिर्फ एक भारतीय सेना का सैनिक होता है। मेरा मानना है कि जिस तरह से होली में रंगों को सिर्फ खुशियों का प्रतीक माना जाता है तथा सेना में रंगों को मात्र वर्दी का हिस्सा, उसी तरह हमें अपनी निजी जिंदगी में भी रंगों को मात्र और मात्र खुशियों का प्रतीक मानें। हमारे पीर-पैगंबरों, गुरुओं-संतों ने बार-बार यह संदेश दिए हैं कि मानवता ही सर्वोपरि रंग और धर्म है, तो क्यों न होली के दिन तरह हम सब मिलजुल कर हर दुर्भावना को मिटाकर, सद्भावना पूर्ण समाज में खुशियों से रहें।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक


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