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रूस और यूक्रेन के युद्ध को लगभग 15 दिन से ऊपर हो गए हैं और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें आ रही हैं कि जो रूस की 65 किलोमीटर लंबी टैंक कानवाय कीव के बाहर करीब 8 दिन पहले पहुंच गई थी, अभी तक भी यूक्रेन की राजधानी पर कब्जा क्यों नहीं कर पाई। इस संदर्भ में विश्व में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं कि यह सब पश्चिमी देशों तथा यूएन द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध तथा यूक्रेन के लोगों का उनके राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ खड़े होने का परिणाम है। चर्चा यह भी है कि रूसी सेना लॉजिस्टिक में कमजोर पड़ रही है। पर इस सब में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि यहां पर भारत का निर्णय क्या होना चाहिए क्योंकि अमेरिका लगातार भारत पर रूस के खिलाफ जाने का दबाव बना रहा है और हर दिन अमेरिकी संसद में इस पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। तो अगर इन सब बातों पर गंभीरता से विचार और मंथन किया जाए तो मेरा मानना है कि पश्चिमी देशों के मीडिया से आने वाली खबरें शायद दुनिया के देशों में एक प्रोपेगेंडा तथा फेक नरेटिव बनाने की कोशिश है, क्योंकि अगर हम कीव के बाहर की 65 किलोमीटर रूसी सेना की टैंक कानवाय की बात करें तो उसके लिए कीव पर कब्जा करना कोई ज्यादा बड़ी बात नहीं होगी। सेना जब लड़ाई के लिए जाती है तो वह सबसे पहले अपनी हवाई सेना का इस्तेमाल करके जिस एरिया को कब्जे में करना है उस को तहस-नहस कर देती है तथा उसके बाद अपने टैंक रसाले को वहां पर भेज कर बचा खुचा विनाश करती है तथा आखिर में पैदल सेना जाकर उस पर पूर्णतया कब्जा कर लेती है।