सम्पादकीय

सेना में थिएटर कमान

Gulabi
29 Oct 2020 3:56 PM GMT
सेना में थिएटर कमान
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भारतीय सेना को पांच थिएटर कमानों में पुनर्गठित करने की प्रक्रिया शुरू करने का जो फैसला किया गया है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय सेना को पांच थिएटर कमानों में पुनर्गठित करने की प्रक्रिया शुरू करने का जो फैसला किया गया है, उसके पीछे कुछ भूमिका मौजूदा परिस्थितियों के दबाव की भी है, लेकिन इससे सेना की कार्यशैली और नजरिये में दूरगामी प्रकृति के बदलाव देखने को मिलेंगे। देश की सेना आजकल जिन चुनौतियों से जूझ रही है वे सामान्य नहीं हैं। पड़ोस के दो देशों के साथ लगी सीमाओं पर हालात एक साथ तनावपूर्ण हो जाएं, ऐसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक नहीं हुआ था। हालांकि युद्ध किसी भी सीमा पर नहीं शुरू हुआ है, लेकिन शक्तियों का संतुलन जिस तरह का है, उसमें अगर किसी भी मोर्चे पर टकराव एक हद से आगे बढ़ा तो दोनों सरहदों पर युद्ध शुरू हो जाने की आशंका बहुत बढ़ जाएगी। स्वाभाविक है कि ऐसे में देश की सेना हर उस तरीके पर विचार करेगी जिससे उसको अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती हो। स्थल सेना, वायु सेना और नौसेना को थिएटर कमान व्यवस्था के तहत पुनर्संगठित किए जाने का फैसला इसी सोच की उपज है।

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सैन्य हलकों में थिएटर कमान का मतलब होता है एकीकृत कमान। थिएटर कमान व्यवस्था लागू करने से आशय सीधे शब्दों में यह है कि एक इलाके में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी, तीनों की यूनिटों को एक थिएटर कमांडर के अधीन लाया जाएगा। इन यूनिटों की ऑपरेशनल कमान जिस ऑफिसर के हाथ में होगी वह तीनों में से किसी भी सेना का हो सकता है। फिलहाल पूरी सेना के लिए पांच थिएटर कमान स्थापित करने की योजना है। नॉर्दर्न कमान, वेस्टर्न कमान, पेनिंसुलर कमान, एयर डिफेंस कमान और मरीन डिफेंस कमान। अभी तीनों सेनाएं स्वतंत्र ढंग से अपना काम करती हैं जिससे प्रयासों का दोहराव होता है। जैसे तीनों सेनाएं देश के वायु क्षेत्र की रक्षा का काम अपने-अपने स्तर पर करती हैं, लेकिन जो काम एक ने कर लिया, वही दूसरा भी न करे, यह सुनिश्चित करने का कोई उपाय नहीं है। नई व्यवस्था इस कमी को दूर करेगी।

अमेरिका और चीन समेत दुनिया के कई देशों की सेनाएं इसी व्यवस्था के तहत चल रही हैं। लेकिन किसी भी देश की सेना उसके इतिहास और जरूरतों की उपज होती है। संदर्भों से काटकर अन्य देशों की सेनाओं से तुलना हमेशा तर्कसंगत नहीं होती। यह भी याद रखना जरूरी है कि किसी भी आधुनिक व्यवस्था में सेना को 'फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस' नहीं माना जाता। देश अपनी कुशल कूटनीति के जरिए वैश्विक समाज में ऐसा स्थान बनाते हैं कि सुरक्षा के लिए सेना के इस्तेमाल की नौबत कभी विरले ही आ सके। इसका अर्थ यह नहीं है कि सेना खुद को चुस्त-दुरुस्त और हर चुनौती के लिए तैयार न रखे, या अपने ढांचे और कार्यशैली में समय के साथ सुधार न करे। थिएटर कमान इसी तरह का एक बड़ा सुधार है। उम्मीद करें कि इससे सेना की मारक क्षमता बढ़ेगी, लेकिन उसके उपयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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